'जिंदगी कैसी है पहेली हाय...' पुराना गाना सुनते हुए वॉचमैन अपनी साइकिल से सुशांत के घर के सामने से गुजरा ही था कि अचानक अलार्म बज पड़ा। सुशांत की ट्रेन सुबह 4 बजे की थी और स्टेशन घर से 1 घंटे दूर। सुशांत को रात दो बजे उठा और तैयार होकर स्टेशन के लिए निकल पड़ा। वो बस निकला ही था कि वॉचमैन उसे वापस दिख गया, 'साहब आज बाहर मत निकलो, आज आपके राशिफल में खतरा था...'। सिगरेट और कभी कभार एक आध बियर की बोतल देकर सुशांत ने वॉचमैन को अपना फैन बना रखा था। इस कारण वॉचमैन भी सुशांत के छोटे-बड़े काम कर दिया करता था। वॉचमैन की आदत थी कि वो सुशांत को रोजाना राशिफल पढ़कर सुनाता था। सुशांत भी चुप-चाप सुन लेता और कुछ नहीं बोलता।
सुशांत ने वॉचमैन की बात को हंसकर टाला और निकल पड़ा। स्टेशन में सन्नाटा था। रात के 3.15 बज गए थे। जो एक आध स्टॉल थे उनमें भी हलचल नहीं थी। वैसे तो बहुत सर्दी नहीं थी, लेकिन नवंबर के महीने का मौसम बदलने लगा था। रातें सर्द हो चली थीं और सुशांत को लग रहा था कि कहीं से चाय मिल जाए। पर उसकी किस्मत इतनी अच्छी नहीं थी और वह बैठे-बैठे ट्रेन का इंतजार करने लगा। सुशांत तीन साल से दिल्ली में अकेला रह रहा है, लेकिन अभी तक इस शहर को ठीक से अपना नहीं कह पाया है वह। रतलाम से वकालत पढ़ने के बाद सुशांत ने दिल्ली आकर अपने एक परिचित हाई कोर्ट लॉयर के साथ प्रैक्टिस शुरू कर दी थी। पर यहां अकेलेपन से जूझ रहे सुशांत को कुछ अच्छा नहीं लगता था।
ट्रेन शुरुआत से ही 3 घंटे लेट हो गई। सुशांत बैठे-बैठे अपने दोस्तों का इंतजार करने लगा। रित्विक और चरण दोनों ही चार बजे तक पहुंच गए थे, लेकिन इंतजार करते-करते तीनों को नींद लग गई। इतनी जल्दी स्टेशन पहुंचने के बाद भी सुशांत को ट्रेन भागते हुए पकड़नी पड़ी। जैसे-तैसे B3 कोच में अपनी सीट तक तीनों पहुंच पाए। वहां एक लोअर सीट पर कोई चादर ओढ़े सो रहा था।
तीनों बैठ गए और मिडिल सीट खाली थी। तीनों ने बातें करना शुरू किया, सुबह के साढ़े सात बजे तीनों ट्रेन में सेटल होने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन उनकी हलचल से उस सो रहे इंसान की नींद खुल गई। रीमा ने अपने चेहरे से चादर हटाई और सुशांत को गुस्से से देखा। बिखरे हुए बाल गोल चेहरा, थोड़ा सा फैला हुआ काजल और चेहरे पर झुंझलाहट। रीमा की जगह कोई और होता, तो पागल लग रहा होता, लेकिन रीमा इसके बाद भी खूबसूरत लग रही थी।
'मैम हम अभी चढ़े हैं, थोड़ा समय दीजिए, रतलाम तक सोते हुए ही जाएंगे...' चरण ने बोला। रीमा ने कहा, 'मैं भी वहीं जा रही हूं।' इतना कहते ही रित्विक ने बात शुरू कर दी, 'अरे आपका भी घर वहां है क्या? आप कहां से चढ़ी हैं? निजामुद्दीन से तो हम बैठे हैं, आप जरूर नई दिल्ली से आई होंगी। आप यहां पढ़ती हैं क्या?' इतने सवालों के बीच उनींदी रीमा थोड़ा झुंझला गई। उसने चादर को गले से ओढ़ा और उठकर बैठ गई।
सुशांत तो सिर्फ उसे देख रहा था, बिना बात भी उसकी आंखें कई सवाल पूछ रही थीं। तीनों जब तक सेटल हुए, रीमा की नींद पूरी तरह से चली गई थी और आसमान में रौशनी दिखने लगी थी। बातों का सिलसिला शुरू हुआ और फिर सुशांत और रीमा ने भी बात की। रीमा लॉ इंटर्न थी और सुशांत लॉयर, दोनों ने कानून के दायरे में रहकर ही बातें शुरू कीं। टेक फील्ड से होने के कारण रित्विक और चरण दोनों ही उनकी बातों को समझ नहीं पा रहे थे, लेकिन सुशांत के बचपन के दोस्त होने के कारण यह जरूर समझ गए थे कि उनका दोस्त अब किसी लड़की में दिलचस्पी ले रहा है।
चरण देवास से था, लेकिन बाकी तीनों रतलाम और उसके पास के गांव से ताल्लुक रखते थे। रीमा का घर धौलपुर में था जो रतलाम का अगला स्टेशन था। सुशांत और रीमा की बातों से ऐसा लग रहा था जैसे दोनों एक दूसरे को बरसों से जानते हों, लेकिन दोनों अभी कुछ देर पहले ही तो मिले थे। बातों में वो इतना खो गए कि वॉल्यूम कम करना ही भूल गए। साइड लोअर बर्थ पर सो रहे एक अधेड़ व्यक्ति ने आखिर उन्हें टोक ही दिया।
दोनों अपना सा मुंह लेकर चुप हो गए। सुशांत ने कनखियों से देखा, तो चरण और रित्विक मुस्कुरा रहे थे। बिल्कुल अब घर पहुंच कर बहुत खिल्ली उड़ाई जाएगी। 'तुम तो सबसे बाद में उतरोगी ना...' सुशांत ने रीमा से पूछा। 'नहीं मैं रतलाम स्टेशन पर उतरूंगी और वहां से टैक्सी करके घर जाऊंगी,' रीमा ने झिझकते हुए जवाब दिया। इस बात को सुनकर तीनों को थोड़ी हैरानी सी हुई। ट्रेन से आधे घंटे में धौलपुर आ जाता, लेकिन रीमा टैक्सी लेकर 1 घंटे से ज्यादा का सफर करके धौलपुर क्यों जा रही है?
'जब तक ट्रेन धौलपुर पहुंचेगी, अंधेरा हो जाएगा। और रात में वहां उतरने से मना किया जाता है।' रीमा ने अपनी सफाई में कहा। 'क्यों? ऐसा क्या है वहां?' रित्विक ने पूछा। 'और ट्रेन जब तक वहां पहुंचेगी तब तक तो सिर्फ 7.30 बजेंगे। पैसेंजर ट्रेन तो 12 घंटे ले भी रही है, किसी एक्सप्रेस से जाती तो 10 घंटे में पहुंच जाती।' रित्विक ने ये बताकर अपनी ट्रेन की जानकारी का परिचय दिया।
'धौलपुर में पिछले 1 साल से रात के वक्त कोई रेलवे स्टेशन पर नहीं उतरता है। यहां तक कि स्टेशन मास्टर और सारा स्टाफ भी स्टेशन के बाहर ही रहता है। कोई जरूरत पड़ने पर ही लोग अंदर जाते हैं।' रीमा ने बताया। 'भला ऐसा क्या है जो रात होते ही लोग स्टेशन से दूर भाग जाते हैं। ये बात थोड़ा गले नहीं उतर रही,' सुशांत ने कहा।
'रेलवे स्टेशन पर कोई साया है। पिछले 6 महीने में तीन लोग मारे जा चुके हैं। लोगों को लगता है कोई भूत है। पिछले 1 साल से अजीब घटनाएं हो रही थीं, लेकिन 6 महीने पहले से तो लोग अजीब तरह से मरे हुए मिलते हैं। तीनों पटरी पर एक ही जगह मिले थे। ट्रेन के गुजरने के कारण उनकी लाश के टुकड़े हो गए। तब से लोग डरने लगे हैं। सीसीटीवी कैमरा चलते हैं, लेकिन जब भी कोई ऐसी घटना होती है अचानक बंद हो जाते हैं। कई लोगों को अजीब आवाजें सुनाई देती हैं। कुछ को अजीब साया दिखता है। लोग कहते हैं स्टेशन के पास जो महिला और उसका बेटा रहता था, उनकी आत्मा है।
तीनों ने ये बात सुनी और जोर से ठहाका लगा दिया, 'अजी हां, स्टेशन ना हो गया भूतों का डेरा हो गया। ऐसा भी क्या है वहां। और ये महिला कौन है जो अपने बेटे के साथ भटक रही है?' , चरण ने पूछा।
'लगभग 2 साल पहले स्टेशन के पास वाले बागीचे में दोनों की लाश मिली थी। वो दोनों बागीचे के बीच बने घर में रहते थे। धौलपुर का वो बागीचा स्टेशन से बहुत पास है, लेकिन प्राइवेट प्रॉपर्टी होने के कारण सबको वहां जाने की इजाजत नहीं। उस जगह का मालिक तो लंबे समय से विदेश में रहता है। ये मां बेटा दोनों ही बागीचे को देखते थे। हालांकि, एक दिन आस-पास वालों ने उस बागीचे में एक छोटी बच्ची को बेहोश पाया। सबने आरोप लगाया कि यहां तंत्र-मंत्र हो रहा था। बेटे की उम्र 14 साल थी और लोगों ने उसे दोषी मान लिया। उसे खूब पीटा कि उसकी मौत हो गई। उस महिला ने भी पटरी पर उसी जगह कटकर अपनी जान दे दी जहां बाकी तीन लोग मिले। तब से ही वहां दहशत है।' रीमा ने बताया।
'अरे जाने दो, लोगों ने कुछ देखा और कुछ सोचा और बस कहानी बना दी। ऐसा कुछ भी नहीं है।' सुशांत ने कहा। 'चलो हम भी तुम्हारे साथ धौलपुर उतर जाएंगे। वहां उतर कर शायद उस महिला से मिल लें। तुम्हें अकेले जाने में डर भी नहीं लगेगा और घर भी पहुंच जाओगी। हम दूसरी ट्रेन से वापस रतलाम।' चरण ने कहा।
रित्विक समझ गया था कि चरण सुशांत और रीमा को एक साथ थोड़ा और समय देना चाहता है। 'तुम्हें इन बातों पर यकीन नहीं करना चाहिए.. चलो हम भी वहीं उतरते हैं। देखते हैं कौन मारता है हमें...' रित्विक ने कहा।
ट्रेन लेट होती जा रही थी और अब समय के हिसाब से ट्रेन रात साढ़े नौ बजे धौलपुर पहुंचती... प्लान तो बन गया था, लेकिन किसी को यह नहीं पता था कि उनके सामने अब कैसा खतरा आने वाला है..
अगले पार्ट में पढ़िए कि स्टेशन पर उतरते ही चारों को ऐसा क्या दिखा कि सुशांत के होश उड़ गए। उनका एक दोस्त जल्द ही उनसे दूर होने वाला था....
इंतजार करें अगले भाग का…
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