लाइफस्टाइल में बदलाव के चलते आजकल लोग बीमारियों से बहुत ज्यादा परेशान रहते हैं। लेकिन कुछ बीमारियां ऐसी भी हैं जो पुरुषों की तुलना में महिलाओं को ज्यादा परेशान करती है। उन बीमारियों में से एक एसएलई है, पुरुषों की तुलना में महिलाएं इससे अधिक प्रभावित होती हैं। जी हां इस बीमारी का पूरा नाम सिस्टेमिक ल्यूपस एरिथेमेटोसस है यह एक ऑटोइम्यून डिजीज है, जिसमें हालत बिगड़ जाने पर रोग की सक्रियता अलग-अलग चरणों में सामने आती है। इस बीमारी में हार्ट, लंग्स, किडनी और ब्रेन भी प्रभावित होते हैं और इससे जीवन को खतरा हो सकता है। भारत में इस बीमारी की मौजूदगी प्रति 10 लाख लोगों में 30 के बीच होती है। लेकिन आपको परेशान होने की जरूरत नहीं क्योंकि हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया (एचसीएफआई) के अध्यक्ष पद्मश्री डॉक्टर के.के. इसके लक्षणों से निपटने के कुछ उपाय बता रहे हैं। लेकिन हम सबसे पहले उनसे इस बीमारी के बारे में जानकारी ले लेते हैं।
इसे जरूर पढ़ें: आखिर आपकी skin को दर्द देने क्यों आते हैं pimples? जानिये ये हैं कारण
डॉक्टर के.के. अग्रवाल बताते हैं कि एसएलई एक ऑटो-इम्यून डिजीज है। इम्यून सिस्टम को संक्रामक एजेंटों, बैक्टीरिया और बाहरी माइक्रोब से लड़ने के लिए डिजाइन किया गया है। यही एक तरीका है जिसकी मदद से इम्यून सिस्टम इंफेक्शन से लड़ता है और एंटीबॉडीज का उत्पादन करती है, जो माइक्रोबज को जोड़ते हैं। उन्होंने कहा कि ल्यूपस वाली महिलाएं अपने ब्लड में असामान्य ऑटोएंटीबॉडीज का उत्पादन करते हैं, जो विदेशी इंफेक्शन एजेंटों के बजाय बॉडी के अपने ही हेल्दी टिश्यु और अंगों पर हमला करते हैं। जबकि असामान्य ऑटोइम्यून का सटीक कारण अज्ञात है, लेकिन यह जीन और पर्यावरणीय कारकों का मिश्रण हो सकता है। सूरज की रोशनी, इंफेक्शन और एंटी-सीजर दवाओं जैसी कुछ दवाएं एसएलई को ट्रिगर कर सकती हैं।
डॉक्टर अग्रवाल के अनुसार, ल्यूपस के लक्षण समय के साथ अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन सामान्य लक्षणों में थकान, जोड़ों में दर्द व सूजन, सिरदर्द, गालों व नाक पर तितली के आकार के दाने, त्वचा पर चकत्ते, बालों का झड़ना, एनीमिया, ब्लड क्लॉट बनने की प्रवृत्ति में वृद्धि और खराब सर्कुलेशन प्रमुख हैं। हाथों पर पैरों की उंगलियां ठंड लगने पर सफेद या नीले रंग की हो जाती हैं, जिसे रेनाउड्स फेनोमेनन कहा जाता है।
डॉक्टर अग्रवाल यह भी कहना हैं कि एसएलई का कोई इलाज नहीं है। हालांकि, उपचार लक्षणों को कम करने या कंट्रोल करने में मदद कर सकता है और गंभीरता के आधार पर भिन्न हो सकता है। सामान्य उपचार विकल्पों में जोड़ों के दर्द और जकड़न के लिए नॉनस्टेरॉइडल एंटी-इनफ्लेमेटरी मेडिसिन (एनसेड्स), चकत्ते के लिए कॉर्टिकोस्टेरॉइड क्रीम, त्वचा और जोड़ों की समस्याओं के लिए एंटीमलेरियल ड्रग्स, इम्यून प्रतिक्रिया को कम करने के लिए ओरल कॉर्टिकॉस्टिरॉइड्स और इम्यूनोसप्रेसेन्ट ड्रग्स दी जाती हैं।
इसे जरूर पढ़ें: डार्क सर्कल और लटकती त्वचा को एक हफ्ते में करें ठीक
सबसे जरूरी बात, ल्यूपस पीड़ित युवा महिलाओं को पीरियड्स डेट्स के हिसाब से प्रेग्नेंसी की योजना बनानी चाहिए, जब ल्यूपस एक्टिविटी कम होती है। प्रेग्नेंसी की सावधानीपूर्वक निगरानी की जानी चाहिए और कुछ दवाओं से बचना चाहिए।
यह विडियो भी देखें
Herzindagi video
हमारा उद्देश्य अपने आर्टिकल्स और सोशल मीडिया हैंडल्स के माध्यम से सही, सुरक्षित और विशेषज्ञ द्वारा वेरिफाइड जानकारी प्रदान करना है। यहां बताए गए उपाय, सलाह और बातें केवल सामान्य जानकारी के लिए हैं। किसी भी तरह के हेल्थ, ब्यूटी, लाइफ हैक्स या ज्योतिष से जुड़े सुझावों को आजमाने से पहले कृपया अपने विशेषज्ञ से परामर्श लें। किसी प्रतिक्रिया या शिकायत के लिए, [email protected] पर हमसे संपर्क करें।