आपको यह जानकर खुशी होगी कि आप अपने लाडले को आने वाले समय में होने वाली कई तरह की हेल्थ प्रॉब्लम्स से बचा सकती हैं और वह भी उसके दूध के दांतों को सुरक्षित रखकर। जिस तरह गर्भनाल के जरिए बच्चों को भविष्य में होने वाली कई बीमारियों से बचाया जा सकता है, उसी तरह बच्चों के दूध के दांतों से बनी स्टेम कोशिकाएं भी उन्हें आने वाले समय में कई खतरनाक बीमारियों से बचा सकते हैं। साल 2000 में डॉ. सोग्ताओ शी ने दांतों के स्टेम सेल्स का पता लगाया। उन्हें यह भी पता चला कि बच्चों के दूध के दांत, जिनमें स्टेम सेल होती हैं, उनमें कई तरह की खूबियां भी होती हैं।
स्टेम सेल थेरेपी के जरिए कई तरह की बीमारियों का इलाज संभव है। दूध के दांतों में स्टेम सेल्स की प्रचुर मात्रा होती है। बच्चे के पांच साल की उम्र का होने तक आमतौर पर उसके दूध के 12 दांत गिर जाते हैं। इन दांतों को आसानी से संरक्षित किया जा सकता है। इनके कुदरती रूप से निकल जाने की वजह से स्टेम सेल्स पाने के लिए किसी तरह की सर्जरी की जरूरत भी नहीं पड़ती।
गर्भनाल की स्टेम कोशिकाओं से शरीर में खून बनाया जा सकता है। अम्बलिकल कॉर्ड रक्त सम्बंधी कोशिकाओं के लिए एक अच्छा स्रोत है। खून से जुड़ी बीमारियों जैसे ब्लड कैंसर में इनका इस्तेमाल हो सकता है। वहीं दांत के सेल्स, जिन्हें डेंटल पल्प स्टेम सेल्स कहते है, उनसे नए कोशिकाएं बनाई जा सकती हैं। इसलिए ये दोनों अपने आप में अलग हैं। आमतौर पर सभी बीमारियों में रक्त से जुड़ी बीमारियां केवल चार प्रतिशत होती हैं। शेष 96 प्रतिशत कोशिकाओं से संबंधित होती है। इसीलिए स्टेम सेल्स से बनीं कोशिकाएं हासिल करने के लिए दूध के दांत अच्छे स्रोत हैं।
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आपको यह जानकर खुशी होगी कि बच्चे के दूध के दांतों से कई तरह के सेल्स का निर्माण किया जा सकता है। उदाहरण के लिए कुछ सेल्स को टिशु बनाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है तो कुछ को कार्टिलेज और कुछ को बोन मैरो बनाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। कुछ स्टेम सेल्स कार्डिएक टिशु के निर्माण में भी काम आते हैं। इसका अर्थ यह है कि दूध के दांतों से मिलने वाले स्टेम सेल्स कई तरह से उपयोग में लाए जा सकते हैं। मसलन अगर आंखों में चोट लगने पर अगर नजर आने में परेशानी हो रही है तो इससे आई साइट को ठीक किया जा सकता है और अगर हार्ट अटैक आ जाए तो प्रभावित कार्डिएक मसल को भी ठीक किया जा सकता है। साथ ही इससे आंखों के कॉर्निया, मस्तिष्क की बीमारी, डायबिटीज, नए बाल उगाना, गुर्दे और लीवर की बीमारियां, पार्किंसन, मस्क्युलर डिस्ट्रॉफी और रीढ़ की हड्डी में समस्या इस तरह के स्टेम सेल्स से ठीक की जा करती हैं।
अगर किन्हीं वजहों से जल जाने या चोट लगने की वजह से सर्जरी कराने की जरूरत पड़ जाए तो दूध के दांतों से मिलने वाले स्टेम सेल्स को स्किन ग्राफ्टिंग के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है। डायबिटीज के मरीजों के लिए भी यह एक बेहतर इलाज साबित हो सकता है। दूध के दांतों से मिलने वाले स्टेम सेल्स की अलग-अलग तरह के टिशु, ऑर्गन, कार्टिलेज और बोन मैरो में विकसित होने की खूबी के चलते आने वाले समय में यह बहु उपयोगी साबित हो सकता है।
अगर आपके बच्चे के दूध के दांत जल्द ही टूटने वाले हैं, तो उन्हें फेंकने की बजाए आप उन्हें डेंटल स्टेम सेल बैंक में भविष्य में इस्तेमाल के लिए सुरक्षित रख लें। बच्चे के आगे के जीवन में किसी गंभीर बीमारी होने की स्थिति में ये दांत स्टेम कोशिकाओं के निर्माण में इस्तेमाल किए जा सकते हैं। भारत में डेंटल स्टेम सेल बैंकिंग अभी नई है, लेकिन फिर भी इसे अम्बलीकल कॉर्ड ब्लड बैंकिंग की तुलना में ज्यादा कारगर विकल्प माना जा रहा है। स्टेम सेल थेरेपी के जरिए मरीज के शरीर के डैमेज्ड सेल्स या किसी गहरी चोट में स्वस्थ व नई कोशिकाएं स्थापित की जा सकती है।
स्टेम सेल बैकिंग में दांतों के पास के मांसल हिस्से से स्टेम सेल्स लिए जाते हैं। इन सेल्स को 30 साल की अवधि तक सुरक्षित रखा जा सकता है। यह तथ्य है कि उम्र बढ़ने के साथ ही स्टेम सेल्स की संख्या भी कम होने लगती है। फिलहाल डेंटल सेल्स से उसी व्यक्ति का इलाज संभव है, जिसका दूध का दांत सुरक्षित रखा गया हो।
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