सोने का रूटीन और मेंटल हेल्थ बिगाड़ रहा है स्मार्टफोन पर बढ़ता स्क्रीन टाइम

आपका स्क्रीन टाइम भी बढ़ रहा है, लेकिन हालिया शोध में यह बात सामने आई कि इससे स्लीपिंग रूटीन और मेंटल हेल्थ पर बुरा असर पड़ा है। 

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आजकल स्मार्टफोन के एक क्लिक पर कई सहूलियतें मिल जाती हैं। चाहे दोस्तों से चैट करना हो या ऑफिशियल मेल, सोशल मीडिया फीड देखनी हो या न्यूज ट्रेंड्स या फिर अपने पसंद की फिल्में शो और कॉमेडी शोज, सबकुछ स्मार्टफोन पर देखा जा सकता है। जाहिर है अपने स्मार्टफोन पर आप ज्यादा वक्त बिता रही होंगी।

स्मार्टफोन, टीवी, इंटरनेट आदि पर बढ़ता स्क्रीन टाइम लोगों की जिंदगी को अपेक्षा से ज्यादा प्रभावित कर रहा है। अमेरिकन एकेडमी ऑफ स्लीप मेडिसिन की एक ताजा स्टडी के मुताबिक ज्यादा समय तक स्क्रीन के सामने बने रहने से नींद ना आने की समस्या हो सकती हैं और टीनेजर्स के स्लीपिंग ड्यूरेशन में कमी आ सकती है।

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इस स्टडी के नतीजों में पाया गया कि सोशल मैसेजिंग, वेब सर्फिंग, टीवी/मूवी वॉचिंग के कारण स्क्रीन आधारित एक्टिविटीज बढ़ती हैं, जिनसे लोगों में डिप्रेसिव लक्षण दिखाई देते हैं। रिसर्चर जियान स्टेला ली का कहना था, ''टीनेजर्स में डिप्रेसिव लक्षणों का ज्यादा होना स्क्रीन बेस्ड एक्टिविटीज की वजह से था, जो हाई क्वालिटी स्लीप के साथ इंटरफेयर करती है।'

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प्रधान रिसर्चर लॉरेन हाले का कहना था, 'ये नतीजों इस बात की ओर संकेत करते हैं कि पेरेंट्स, एजुकेटर्स और हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स को टीजेनर्स को एजुकेट करने और उनका स्क्रीन टाइम रेगुलेट करने की जरूरत है ताकि उन्हें बेहतर नींद आए और डिप्रेशन के लक्षणों में कमी आए।' उन्होंने यह भी कहा, 'हमारी दिलचस्पी यह जानने में थी कि सोशल मीडिया और स्क्रीन यूज के नींद और हमारी मेंटल हेल्थ पर बुरा असर क्या टीजेन के बाद बड़े होने पर भी बना रहता है। इस स्टडी में 2865 टीनेजर्स को शामिल किया गया।' टीनेजर्स ने बताया कि वे रोजाना लगभग चार स्क्रीन बेस्ड एक्टिविटीज में औसतन चार घंटे दे रहे थे, जिनमें सोशल मैसेजिंग, वेब सर्फिंग, टीवी/फिल्में देखना और गेमिंग शामिल हैं। यह स्टडी स्लीप जर्नल में प्रकाशित हुई हैं।

जेपी हॉस्पिटल की गायनकोलॉजिस्ट व आईवीएफ एक्सपर्ट डॉक्टर श्वेता गोस्वामी ने बताया, 'स्मार्ट फोन के इस्तेमाल से बेशक बहुत सारी चीजें आसान हो गई है, कई चीजों की जानकारी भी मिलती है पर ये भी सच है स्मार्ट फोन सेहत पर बुरा प्रभाव डाल रहा है। इसमें प्रमुख है मोटापा, क्योंकि हम जितना खाते है, उतनी फिजिकल एक्टिविटी नहीं करते हैं, जो आगे चलकर गंभीर समस्या बन जाती है। मोटापे के कारण इनफर्टिलिटी की समस्या महिलाओं के साथ-साथ पुरुषों में भी बढ़ रही है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि पुरुषों में स्पर्म काउंट कम हो जाते हैं और महिलाओ में ओवुलेशन की प्रक्रिया असामान्य हो जाती है और वो कपल माता पिता के सुख से वंचित रह जाते हैं।'

स्मार्टफोन का सबसे ज्यादा इस्तेमाल आज कल के लड़के-लड़कियां कर रहे हैं लेकिन वे इससे होने वाले नुकसान की समझ नहीं रखते हैं। मोटापा बढ़ना और फिजिकल एक्टिविटी का कम होना आगे चलकर कई बड़ी बीमारियों को जन्म देते हैं इसीलिए महिलाओं को इस बारे में सतर्क रहना चाहिए।

शांता आईवीएफ सेंटर की गायनाकाॅलेजिस्ट व आईवीएफ एक्सपर्ट डाॅक्टर अनुभा सिंह का कहना है,'मोटापा पुरुषों में सुक्राणुओं की गतिशीलता कम कर देता है जो बांझपन की समस्या के रूप में सामने आता है। मोटापे का प्रजनन क्षमता पर भी गंभीर असर होता है। यही नहीं मोटापा सेक्स के प्रति रुझान को भी कम देता है और इसके साथ ही मोटी औरतों में गर्भ ठहरने की भी समस्या हो जाती है। अगर इनफर्टिलिटी की समस्या से दूर रहना है तो स्मार्टफोन की स्क्रीनिंग को लिमिट कर हेल्दी लाइफस्टाइलअपनाना होगा।

टेक्नोलॉजी इन्फर्टिलिटी की समस्या बढ़ाती है लेकिन इसी के माध्यम से यह समस्या कुछ हद तक दूर भी की जा सकती है जैसे की एग फ्रीजिंग की प्रक्रिया या फिर जो नेचुरल तरीके से मां नहीं बन पा रही हैं, वे आईवीएफ तकनीक के जरिए मां बनने का सुख मिल उठा सकती हैं।

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