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संतरे के छिलके से वायु प्रदूषण के मरीजों के लिए बनेगी सस्ती दवा

अस्थमा के मरीजों के लिए बाजार में मिलने वाली दवाएं फिलहाल काफी महंगी हैं। एक नई स्टडी में कहा गया है कि संतरे के छिलके की दर्ज पर अस्थमा के मरीजों के लिए सस्ती दवाएं तैयार की जा सकती हैं।
Her Zindagi Editorial
Updated:- 2018-06-14, 17:40 IST

टेस्टी-टेस्टी संतरा आपके पसंदीदा फ्रूट्स में से एक है। मजेदार बात ये है कि इसके छिलके में भी कई एंटी ऑक्सिडेंट गुण होते हैं। स्किन को ग्लोइंग और बेदाग बनाए रखने के साथ यह पोर्स को खुला रखने में भी मदद करता है। इससे आपकी स्किन के ब्लैक हेड्स साफ हो जाते हैं। कील-मुंहासों की रोकथाम, धाग-धब्बों के लिए भी संतरे के छिलके का खूब इस्तेमाल किया जाता है। आपको यह जानकर खुशी होगी कि संतरे के छिलके के मैकेनिज्म के आधार पर अब अस्थमा जैसी हेल्थ प्रॉब्लम के लिए दवाएं विकसित की जाएंगी।

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एक नई रिसर्च में कहा गया है कि संतरे के छिलकों के रस की तरह दवाएं दिए जाने के तरीके पर विचार किया जा रहा है। यूनिवर्सिटी ऑफ सेंट्रल फ्लोरिडा के इंजीनियरिंग एसिस्टेंट प्रोफेसर एंड्रयु के डिकरसन ने अपनी स्टडी के जरिए बताया है कि संतरे के छिलके को दबाने पर उसमें से खुशबूदार ऑयल निकलता है। जिस तरह से संतरे का मैकेनिज्म काम करता है, उसी के आधार पर स्प्रे विकसित करके अस्थमा की प्रॉब्लम से बचा जा सकता है। डिकरसन का कहना था, 'हम रियल वर्ल्ड प्रॉब्लम्स के सॉल्यूशन के लिए प्रकृति से इंस्पिरेशन लेते हैं।'

अगर संतरे की संरचना देखी जाए तो इसकी बाहरी परत संतरे को सुरक्षित रखती है। इसके बाद एक व्हाइट स्पंजी लेयर छिलके के ठीक नीचे होती है, उसमें तेल के माइक्रोस्कोपिक भंडार होते हैं। बाहर की स्पंजी लेयर को जैसे ही दबाया जाता है, वैसे ही उसमें से एक खुशबूदार रस निकलता है जो आंखों में बहुत चुभता है, जिससे आंसू आने लगते हैं। ये माइक्रोजेट्स काफी तेजी से काम करते हैं। इसी से इंस्पिरेशन लेते हुए वायु प्रदूषण से प्रभावित होने वाले मरीजों के लिए मैकेनिज्म बनाए जा सकते हैं। उदाहरण के लिए अस्थमा के मरीजों के लिए एरोजोलाइज इमरजेंसी मेडिकेशन दिया जा सकता है, जो फिलहाल काफी खर्चीला है और जिसे कई बार में इन्हेल किया जाता है। यह तरीका सस्ता होगा और इससे कुदरत को भी नुकसान नहीं पहुंचेगा। लेकिन रिसर्चर्स का कहना है कि ऑरेंज पील की तर्ज पर दवाएं दिए जाने के तरीके पर अभी और रिसर्च की जरूरत है।यह स्टडी नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेस में प्रकाशित हुई है।

 

 

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