ऑनलाइन गेम्स की दीवानगी बच्चों और युवाओं में बढ़ती ही जा रही हैं। कोई भी नई गेम इंटरनेट पर वायरल होते ही स्मार्टफोन यूजर इसे डाउनलोड करने लग जाते हैं। इन दिनों बच्चों और युवाओं में 'पबजी गेम' का क्रेज काफी छाया हुआ है। दिन-रात इस गेम को खेल-खेलकर बच्चों और युवाओं को इसकी लत लग चुकी है। ये क्रेज युवाओं में गंदी लत बनकर सामने आ रहा है।
जी हां पिछले दो वर्षों में ऑनलाइन गेम्स का क्रेज बढ़ता ही जा रहा है। पिछले वर्ष ऑनलाइन गेम ब्लू व्हेल काफी ज्यादा वायरल हुआ था, जिसकी वजह से कई लोगों ने आत्महत्या कर ली थी। इस गेम की वजह से विश्वभर में करीब 30 लोगों ने अपनी जान दे दी थी। वहीं इसी वर्ष मोमो गेम की वजह से भी कई लोगों ने आत्महत्या करने की कोशिश की थी। और अब पबजी गेम का क्रेज युवाओं में बुरी तरह से छाया हुआ है। युवा और बच्चों में इस गेम को खेलने की इतनी लत है कि वह दिन-रात फोन से ही चिपके रहते हैं। और गेम के टास्क को पूरा करने के लिए ना खाने की परवाह करते हैं और ना ही नींद की। यहां तक कि आस-पास बैठे लोगों की भी परवाह करना छोड़ देता है। अगर आपका बच्चा भी पबजी खेलते समय आपको नजरअंदाज कर रहा है तो आपको सतर्क होने की जरूरत है।
युवाओं में इस गेम को लेकर काफी क्रेज देखा जा रहा है। मगर इस गेम का बच्चों और युवाओं के मेंटल और फिजिकल हेल्थ पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। पिछले कुछ दिनों में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंस में 120 से ज्यादा मामले रिपोर्ट किए गए, जिनमें बच्चों के मेंटल हेल्थ पर इस गेम का विपरीत प्रभाव देखा गया। जानें क्या हैं इस गेम से होने वाले हेल्थ संबंधी खतरे। लेकिन सबसे पहले ये जान लेते हैं कि पबजी गेम क्या है।
क्या है पबजी गेम
ये एक ऐसी गेम है जिसमें 100 प्लेयर्स एयरप्लेन से एक आइलैंड पर उतरते हैं। यहां पहुंचने पर उन्हें वहां मौजूद अलग-अलग घरों व जगहों पर जाकर आर्म्स, दवाइयां और कॉम्बेट के लिए जरूरी चीजों को कलेक्ट करना होता है। प्लेयर्स को बाइक, कार और बोट मिलती है ताकि वह हर जगह जा सकें और दूसरे अपोनन्ट को गेम में मारकर आगे बढ़ सकें। 100 लोगों में आखिर तक जिंदा रहने वाला प्लेयर गेम का विनर बनता है।
पबजी गेम का असर
पिछले कुछ समय में ये गेम भारत में बहुत तेजी से पॉपुलर हुआ है। और इस पबजी गेम का बच्चों पर बुरा असर हो रहा है। घंटों एक ही पोजिशन में बिना मूवमेंट के बैठने व आंखें गढ़ाए बैठने से ना केवल आंखों पर बुरा असर हो रहा है बल्कि बच्चे मोटापे का शिकार भी हो रहे हैं। इसके अलावा गर्दन झुकाकर बैठने से गर्दन में दर्द की परेशानी भी झेलनी पड़ती है। साथ ही भूख की कमी, मानसिक परेशानी, आपसी तालमेल की कमी और चिड़चिड़ापन भी इसकी कारण हो सकता है। जी हां सही नींद न ले पाने के कारण ब्रेन को नुकसान पहुंच रहा है, जिससे याददाश्त की कमजोरी, एकाग्रता की कमी, पढ़ाई में बाधा, बौद्धिक विकास में बाधा जैसी समस्याएं बढ़ रही हैं। कई बार खाने-पीने और सोने आदि की आदतों में बदलाव के कारण बच्चों का शारीरिक विकास भी प्रभावित हो रहा है।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट
- बच्चों पर सोशल मीडिया के प्रभाव और पेरेंट्स इस तरह के मामलों को संभालने के लिए क्या कर सकते हैं, के बारे में जानने के लिए हमने जीसस एंड मैरी कॉलेज, दिल्ली यूनिवर्सिटी में सहायक प्रोफेसर (बाल विकास) राशी मुखोपाध्याय से बात की तब उन्होंने हमारे साथ कुछ टिप्स शेयर किए।
- सभी उम्र के बच्चों के साथ रेगुलर बात करना बेहद जरूरी है और ऐसा तब और भी जरूरी हो जाता है जब बच्चे किशोरावस्था में पहुंच जाते हैं। यह बातचीत दो तरफा होनी चाहिए।
- आपके बच्चे क्या देख रहे हैं इससे अवगत रहें। अपने बच्चों को सिखाएं कि वास्तविक क्या और स्टेज क्या है और इससे क्या नुकसान हो सकता है।
- डर के कारक को मैनेज करने में उनकी मदद करें। इन चुनौतियों का प्रयास करते समय, बच्चों को आमतौर पर धमकी दी जाती है और उन्हें परिवार की सुरक्षा के लिए डर लगता है और वे भी बाहर जाने से डरते हैं। एक अभिभावक के रूप में, इन आशंकाओं को दूर करना आपका कर्तव्य है और हमेशा आपका बच्चे की पहुंच होना जरूरी है।
- विश्वास का वातावरण बनाना बेहद जरूरी है, सहानुभूति रखें (अपने बच्चे की जगह खुद की कल्पना करें) और अपने बच्चों के लिए नियमों की सख्ती से स्थापना करते हुए वास्तविक बने रहें। आप अपने नियमों पर खरे नहीं उतर रहें और उम्मीद करते हैं कि आपके बच्चे आपकी बात मानेंगे।
इस तरह आप अपने बच्चों को आसानी से संभाल सकती हैं।
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