मासिक धर्म चक्र से हर महिला को गुजरना पड़ता है। इस चक्र के दौरान महिला के अंडाशय में अंडा बनता है, जो महिला को गर्भवती होने के लिए तैयार करता है। मगर, कभी-कभी ऐसा नहीं हो पाता है। इस परिस्थिति को एनोव्यूलेशन कहा जाता है। एनोव्यूलेशन वह स्थिति है जिसमें अंडाश्य मासिक धर्म के दौरान अंडा नहीं बनाता है। जिससे महीने में एक मिस ओव्यूलेशन होता है।
कभी-कभी महिला को एक महीने एनोवुलेटरी चक्र से गुजरना पड़ता है तो अगले ही माह उसे नियमित मासिक धर्म चक्र हो सकते हैं। कभी-कभी यह समस्या पुरानी हो जाती हैं और महीनों , यहां तक की पूरे साल भर अंडाशय में अंडे नहीं बन पाते हैंं। क्रोनिक एनोव्यूलेशन ही महिलाओं में बांझपन का कारण बनता है। यह बांझपन का प्रथम कारण भी हो सकता है। एनोव्यूलेशन के कारण होने वाले बांझपन को 'एनोवुलेटरी इनफर्टिलिटी' कहा जाता है।
कई कारक होते हैं जो महिलाओं में एनोव्यूलेशन को जन्म दे सकते हैं। उनमें से कुछ नीचे सूचीबद्ध किए गए हैं।
नीचे दिए गए आंकड़े हमें ओव्यूलेटरी और एनोवुलेटरी चक्र में हार्मोन की स्थिति दिखाते हैं:
एनोवुलेटरी चक्र में एस्ट्रोजन कर स्तर ज्यादा होता है मगर इसे चक्र में प्रोजेस्टेरोन नहीं होता है। प्रोजेस्टेरोन नहीं होने का मतलब होता है कि आपके शरीर में “unopposed estrogen” हैं, जो एंडोमेट्रियल लाइपरप्लासिया (गर्भाशय की परत के मोटे होने) और ज्यादा रक्तस्त्राव का कारण बन सकता है। यह रक्तस्त्राव ज्यादा दिन तक चल भी सकता है।
ओवुलेशन इंडक्शन से लेकर क्लीनिकल एप्रोच तक एनोव्यूलेशन के कारणों की समझ आवश्यक होती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने एनोव्यूलेशन की विभिन्न श्रेणियों को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया है:
● डब्ल्यूएचओ वर्ग 1: हाइपोगोनाडोट्रोपिक हाइपोगोनाडल एनोव्यूलेशन (हाइपोथैलेमिक अमेनोरिया (एचए))
● डब्ल्यूएचओ वर्ग 2: नॉर्मोगोनडोट्रोपिक नॉरटोएस्ट्रोजेनिक एनोव्यूलेशन (इस श्रेणी की लगभग सभी महिलाओं में पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम [पीसीओएस]) होता है, तब पीसीओएस की जांच के लिए रॉटरडैम मानदंड का उपयोग किया जाता है।
● डब्ल्यूएचओ वर्ग 3: हाइपरगैनाडोट्रोपिक हाइपोएस्ट्रोजेनिक एनोव्यूलेशन (प्राथमिक डिम्बग्रंथि अपर्याप्तता (पीओआई: प्रीमेच्योर ओवरियन फेलियर) )
हालांकि, अधिकांश विशेषज्ञाे ने इस शब्दावली को छोड़ दिया है और महिलाओं में चार सबसे आम ओवेरियन डिसऑर्डर में से एक हाइपोगोनैडोट्रोपिक हाइपोगोनाडिज्म (एचए), पीसीओएस, पीओआई या हाइपरप्रोलैक्टिनीमिया को असाइन किया है।
ग्रुप I: हाइपोथैलेमस - पिट्यूटरी विफलता
ग्रुप II : पीसीओएस
ग्रुप III : ओवेरियन फेलियर (Ovarian Failure)
ग्रुप IV: हाइपरप्रोलैक्टिनीमिया
एनोव्यूलेशन का उपचार आमातौर पर उसके कारण पर निर्भर करता है। यदि रोगी अधिक वजन वाला है तो उसे यही सुझाव दिया जा सकता है कि वह 10 प्रतिशत अपना वजन कम कर लें। यह फिर से ओव्यूलेशन की प्रक्रिया को शुरू करने में मदद कर सकता है। अपनी जीवनशैली में बदलाव और अच्छा आहार लेने से भी पॉजिटिव रिजल्ट्स नजर आ सकते हैं। लेकिन इस समस्या का सबसे आम उपचार है प्रजनन की दवाएं। हालाकि इन दवाओं का सेवन केवल डॉक्टर के प्रिस्क्रिप्शन पर ही किया जा सकता है। बांझपन से निपटने के लिए डोनर एग्स के साथ आईवीएफ से उपचार का भी सुझाव दिया जा सकता है।
महिला के हार्मोनल संतुलन और मासिक धर्म चक्र को कई कारक प्रभावित कर सकते हैं। कई महिलाओं में एनोव्यूलेशन के कारण बांझपन होता है जो कि एक तनावपूर्ण बात है। अगर महिला के अंदर इनमें से किसी भी तरह के लक्षण नजर आ रहे हैं तो उसे तुरंत ही चिकित्सक की सलाह पर इसका उचित उपचार शुरू कर देना चाहिए।
एक्सपर्ट सलाह के लिए डॉ. नेहारिका मल्होत्रा (M.D, FICMCH, FMAS, डिप्लोमा इन रिप्रोडक्टिव मेडिसिन एंड अल्ट्रासाउंड) का विशेष धन्यवाद।
https://www.medicalnewstoday.com/articles/318552#Treatment
https://www.verywellfamily.com/anovulation-and-ovulatory-dysfunction-1959926
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