भारत के साथ-साथ दुनियाभर में डायबिटीज के मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है। डायबिटीज यानी ब्लड शुगर एक ऐसी बीमारी है, जो अपने साथ कई अन्य परेशानियां लेकर आती है। डायबिटीज का सबसे ज्यादा असर किडनी, हार्ट, आंखों और हड्डियों पर होता है। डायबिटीज के मरीज की हड्डियां एक समय के बाद कमजोर होनी शुरू हो जाती हैं, जिससे बोन फ्रैक्चर का खतरा भी बढ़ जाता है। इसी वजह जोड़ों में दर्द और मूवमेंट में परेशानी जैसी समस्याएं भी हो जाती हैं। ऐसे में डायबिटीज के मरीजों को अपने ज्वाइंट्स और बोन्स को लेकर खूब सावधानी बरतने की जरूरत होती है। आइए, यहां एक्सपर्ट से जानते हैं कि डायबिटीज किस-किस तरह से हड्डियों पर असर डालती है। इस बारे में हड्डी रोग विशेषज्ञ/सीनियर ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉ. हिमांशु गौड़, एमबीबीएस, एमएस (ऑर्थोपेडिक) ने बताया है। डॉ. हिमांशु गौड़ का दिल्ली में ऑर्थो शोल्डर नाम का क्लीनिक है।
एक्सपर्ट के मुताबिक, डायबिटीज का हड्डियों पर खूब प्रभाव पड़ता है और यह विभिन्न प्रकार की हड्डी से जुड़ी समस्याओं का कारण भी बनता है। डायबिटीज यानी ब्लड शुगर की वजह से हड्डियों के निर्माण, क्वालिटी और मेटाबॉलिज्म पर असर पड़ता है। एक्सपर्ट ने कुछ ऐसी हड्डियों की समस्याएं बताई हैं, जो डायबिटीज की वजह से हो सकती हैं।
- ऑस्टियोपोरोसिस (Osteoporosis)- इंसुलिन एक एनाबोलिक हार्मोन है, जो हड्डियों के बनने में मदद करता है। इसकी कमी की वजह से हड्डियों का बनना कम हो सकता है और बोन मिनरल डेंसिटी भी कम हो सकती है। डायबिटीज के मरीजों में बोन डेंसिटी कम होने की वजह से हड्डियां कमजोर हो सकती हैं और ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा बढ़ सकता है।
- हड्डियों का फ्रैक्चर (Bone Fracture)- एक्सपर्ट के मुताबिक, लंबे समय तक हाई ब्लड शुगर लेवल रहने पर शरीर में एडवांस्ड ग्लाइकेशन एंड प्रोडक्ट्स (AGEs) का निर्माण होता है, जो हड्डियों के कोलाजेन में जमा होकर उन्हें कमजोर कर देते हैं। AGEs बोन मैट्रिक्स को कठोर बनाते हैं, जिसकी वजह से हड्डियां कमजोर होने लगती हैं। इसकी वजह से डायबिटीज के मरीजों में फ्रैक्चर का खतरा बढ़ जाता है, विशेषकर कूल्हे, कलाई और रीढ़ की हड्डी पर असर पड़ता है।

- ऑस्टियोआर्थराइटिस (Osteoarthritis)- ऑस्टियोआर्थराइटिस एक तरह का गठिया रोग है, डायबिटीज वाले व्यक्तियों में इसका खतरा भी ज्यादा हो सकता है। ऑस्टियोआर्थराइटिस, जोड़ों में दर्द और सूजन का कारण भी बनता है।
- हड्डियों की चोट का धीमा ठीक होना (Slow Bone Healing)- डायबिटीज की वजह से शरीर में ब्लड शुगर का लेवल भी हाई हो सकता है, जो हड्डियों और अन्य टिश्यूज की हीलिंग प्रोसेस को धीमा कर सकता है।
- हड्डियों का इन्फेक्शन (Bone Infection)- डायबिटीज के मरीजों को पैर या शरीर के किसी भी अन्य हिस्से में लगे घाव का भी खूब ध्यान रखने की जरूरत होती है। ऐसा इसलिए, क्योंकि डायबिटीज की वजह से हड्डियों में इन्फेक्शन का खतरा भी बढ़ जाता है।
- ओस्टियोब्लास्ट और ओस्टियोक्लास्ट के कार्यों में असंतुलन- ओस्टियोब्लास्ट और ओस्टियोक्लास्ट स्पेशल सेल्स होते हैं, जो हड्डियों के बढ़ने और विकास करने में मदद करते हैं। हाइपोग्लाइसीमिया (बल्ड शुगर कम होना), ओस्टियोब्लास्ट्स के कार्यों को कम कर देता है और ओस्टियोक्लास्ट को एक्टिव कर देता है। इसी असंतुलन की वजह से हड्डियों को नुकसान हो सकता है।
- दवाइयों का असर (Effects of Diabetes Medication)- एक्सपर्ट के मुताबिक, कुछ डायबिटीज की दवाएं भी हड्डियों पर असर कर सकती हैं। इससे हड्डियों के निर्माण में गड़बड़ी और बोन टिश्यू पर भी असर पड़ सकता है, जिससे फ्रैक्चर का खतरा बढ़ जाता है।

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एक्सपर्ट के मुताबिक, हड्डियों की इन परेशानियों से बचने के लिए ब्लड शुगर के लेवल का सही मैनेजमेंट, शुगर स्पेशलिस्ट डॉक्टर के द्वारा किया जाना चाहिए। इसी के साथ-साथ हड्डी रोग विशेषज्ञ यानी ऑर्थोपेडिक डॉक्टर से सलाह लेकर नियमित रूप से बोन हेल्थ की जांच करानी चाहिए। ऑस्टियोपोरोसिस की जांच, विटामिन डी, कैल्शियम और खून की जांच समय-समय पर कराते रहना चाहिए। हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉक्टर की सलाह से कैल्शियम और विटामिन डी के सेवन से ऑस्टियोपोरोसिस से बचाव संभव है। वहीं, अगर ऑस्टियोपोरोसिस जैसी गंभीर समस्या हो गई है, तो उसका सही समय पर इलाज, नियमित व्यायाम और सही डाइट मददगार साबित हो सकती है।
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