गूगल से पता लगा सकती हैं कि जिंदा रहने की कितनी है गुंजाइश

आजकल हम हर छोटी से छोटी जानकारी लेने के लिए गूगल सर्च का यूज़ करते हैं लेकिन क्या आपने कभी यह सोचा था कि गूगल के जरिए यह भी पता चल पाएगा कि कोई मरीज कब तक जिंदा रह सकेगा।

google tool tell patients death

आजकल हम हर छोटी से छोटी जानकारी लेने के लिए गूगल सर्च का यूज़ करते हैं लेकिन क्या आपने कभी यह सोचा था कि गूगल के जरिए यह भी पता चल पाएगा कि कोई मरीज कब तक जिंदा रह सकेगा। जी हां, अगर आपने कभी ऐसा नहीं सोचा तो अब सोच लीजिए। बहुत जल्द ही आप गूगल के जरिए जान पाएंगी कि कोई मरीज कब तक जिंदा रह सकता है। मतलब अगर आपके आसपास कोई बीमार चल रहा है तो आप गूगल के जरिए यह पता कर सकती हैं कि उसकी जिंदा रहने की कितनी उम्मीद है।

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गूगल ने हाल ही में एक ऐसा टूल डिवेलव किया है जिसके जरिए मरीज की बीमारी के लक्षणों को स्टडी कर उसके आधार पर बताया जा सकेगा कि उसके पास जिंदा रहने का कितना चांस है। इस टूल पर आर्टिफशल इंटेलिजेंस के चीफ जेफ डीन की कंपनी मेडिकल ब्रेन काम कर रही है। यह टूल मरीज की बीमारी के लक्षणों का परीक्षण करेगा और उसके आधार पर निष्कर्ष देगा। डीन ने ब्लूमबर्ग को हाल ही दिए एक इंटरव्यू में इस टूल के बारे में बताया है।

गूगल बताएगा जिंदा रहने की गुंजाइश

गूगल ने हाल ही में एक ऐसा टूल डिवेलव किया है जिसके जरिए मरीज की बीमारी के लक्षणों को स्टडी कर उसके आधार पर बताया जा सकेगा कि उसके पास जिंदा रहने का कितना चांस है। इस टूल का एक महिला पर हाल ही में परीक्षण भी किया गया। ब्रेस्ट कैंसर से पीड़ित एक महिला जब एक सिटी हॉस्पिटल गई तो वहां उसने दो डॉक्टरों को दिखाने के बाद रेडियोलॉजी स्कैन कराया। स्कैन के दौरान जो लक्षण नजर आए उसके आधार पर उस महिला को बता दिया गया कि उसके जिंदा रहने के सिर्फ 9.3 पर्सेंट चांस हैं। बस यहीं से शुरू हुआ गूगल का काम।

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डीन की कंपनी मेडिकल ब्रेन ने गूगल के लिए यह नई नियम प्रणाली बनाई है जिसके आधार पर मरीज की जिंदगी और मौत को लेकर सही आंकलन किया जा सकेगा। इस नए algorithm ने कैंसर से पीड़ित महिला की केस स्टडी को पढ़ा और बताया कि उस महिला के बचने के सिर्फ 19.9 पर्सेंट चांस हैं। इसके कुछ दिनों बाद ही उस महिला की मौत हो गई।

यह देख मेडिकल एक्सपर्ट हैरान रह गए कि जिन आंकड़ों और रिपोर्ट्स तक वे नहीं पहुंच पाए गूगल ने वहां तक पहुंचकर रिजल्ट भी दिखा दिया।

यहां तक कि गूगल ने वे रिपोर्ट्स भी दिखाईं जिनके जरिए वह अपने निष्कर्ष पर पहुंचा। जेफ डीन का कहना है, “अब गूगल का अब अगला कदम इस सिस्टम को दुनियाभर के क्लिनिक में पहुंचाने की है ताकि ज्यादा से ज्यादा मरीजों को इसका फायदा हो सकें।“

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