लंबे समय से फिश को न्युट्रिशस डाइट में शामिल किया जाता रहा है। फिश में प्रोटीन, विटामिन और हेल्दी ऑयल भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। ऑयली फिश में ओमेगा थ्री फैटी एसिड्स अच्छी क्वांटिटी में होते हैं। मेडिकल रिसर्चर्स और सप्लीमेंट मैन्युफेक्टरर्स ने इस बात की तरफ प्रमुखता से ध्यान दिलाया है। अन्य स्टडीज में ओमेगा थ्री फैटी एसिड्स से मेंटल हेल्थ, एजिंग और विजन के लिंक्ड होने की बात कही गई है। इस पर काम जारी है और अन्य स्टडीज के नजीते आने पर इसे और भी ज्यादा बल मिलेगा।
फिश खाएं तो इस बात के लिए रहें सतर्क
होटल-रेस्तरां में जो फिश आप खाते हैं या बाजार से जो फिश खरीदते हैं, वह निश्चित तौर पर फ्रेश नहीं होती। हर साल ईस्ट और वेस्ट कोस्ट पर 2 महीने के लिए प्रतिबंध लगा दिया जाता है। जब प्रतिबंध लगा होता है, उस दौरान एक कोस्ट पर दूसरे कोस्ट और देश के अन्य हिस्सों से मछलियां आती हैं। ट्रेन और रोड के माध्यम से ये मछलियां देशभर में पहुंचाई जाती हैं और इन मछलियों को अपने डेस्टिनेशन पर पहुंचने में कम से कम 24 या 48 घंटे लगते हैं। इसमें एक मुश्किल ये होती है कि मछलियां अगर फ्रीज जैसे ठंडे तापमान पर ना रखी जाएं तो मरने के दो घंटे बाद ही सड़नी शुरू हो जाती हैं। ऐसे में मछलियों को प्रजर्व करना जरूरी हो जाता है। मछुआरों और इस काम में जुड़े बिचौलियों के लिए मछलियों के लिए ठंडे स्टोरेज की व्यवस्था करना काफी महंगा पड़ता है, बर्फ की कीमत लगभग 3-4 रुपये प्रति किलो पड़ती है और चूंकि ये पिछल जाती है तो हर आठ घंटों में इसे बदलने की जरूरत होती है। ऐसे में वे एक सस्ते से केमिकल फॉरमलिन का प्रयोग करते हैं, जिससे मछलियों लंबे वक्त तक ताजी दिखाई देती हैं।
18 रुपये प्रति किलो मिलने वाला फॉरमलिन के सॉल्युशन में मछली रखने से उसकी आंखों, गिल्स और स्केल्स ताजा नजर आते हैं, लेकिन यह कैमिकल सेहत के लिए काफी हानिकारक है। दरअसल फॉरमलिन (फॉर्मल्डिहाइड का 37 फीसदी सॉल्यूशन) कैंसर पैदा करने वाला एक क्लासिफाइड तत्व माना गया है, जिसका इस्तेमाल लाशों को लंबे समय तक खराब होने से बचाने के लिए किया जाता है। इस केमिकल के घोल में रखी मछलियों पर यह केमिकल रह जाता है और इसके सेवन से कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है।
ऐसे करें केमिकल की पहचान
फिशरीज टेक्नोलॉजी ने मछलियों पर फॉर्मल्डिहाइड और अमोनिया के स्तर की पहचान के लिए रेपिड डिटेक्शन किट तैयार की है, जिससे आप पता लगा सकती हैं कि मछली ताजा है या नहीं और उस पर जहरीले कैमिकल्स का लेप तो नहीं है। इस किट में 25 पेपर स्ट्राइप्स, रीजेंट सॉल्युशन और एक चार्ट होते हैं। चार्ट देखकर आप रिजल्ट्स को कंपेयर कर मिलावट का पता लगा सकती हैं। केमिकल का पता लगाने के लिए आप पेपर को मछली पर रगड़ें, इसके बाद स्ट्रिप पर सॉल्युशन की एक बूंद डालें और दो मिनट तक छोड़ दें। अगर पेपर डार्क ब्लू हो जाए तो समझ लें कि मछली जहरीली हो चुकी है और खाने लायक नहीं है। चार्ट में कलर इंडिकेशन दिए गए हैं, जिससे आप हर तरह के रिजल्ट के मायने समझ सकते हैं।
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