Expert Tips: बच्‍चों में कैंसर से जुड़े ये फैक्‍ट्स हर पेरेंट्स को जानने चाहिए

बच्चों में पाया जाने वाला सबसे आम कैंसर ल्यूकेमिया है। आइए इससे जुड़े फैक्‍ट्स के बारे में विस्‍तार से एक्‍सपर्ट से जानें। 

child hood cancer

भारत में सालाना लगभग 14 लाख वयस्कों की तुलना में बच्चों में कैंसर के तकरीबन के 75000 मामले देखने को मिलते हैं। हालांकि, बच्चों के कैंसर के मामले कम हैं, लेकिन इन्हें नज़रअंदाज भी नहीं किया जा सकता है। बच्चों के कैंसर के ज्यादातर मामलों में इसका इलाज संभव है।

भारत में कैंसर के इलाज की प्रमुख परेशानियों की बात करें तो बीमारी का देर से पता लगने से लेकर, दूरदराज के क्षेत्रों में उपचार ना पहुंच पाने जैसी समस्याओं के साथ इलाज बीच में छोड़ देना और इलाज के लिए आर्थिक रूप से सक्षम ना होना जैसे मुख्य कारण हैं।

बच्चों में पाया जाने वाला सबसे आम कैंसर ल्यूकेमिया (ब्लड कैंसर) है, जो भारत में बच्चों के कैंसर के सभी मामलों में लगभग एक तिहाई (33%) तक पाया जाता है, इसके बाद ब्रेन ट्यूमर (20%) और लिम्फोमा (10%) का स्थान है।

बच्चों में देखे जाने वाले अन्य कैंसर विल्म्स ट्यूमर (किडनी में), न्यूरोब्लास्टोमा (एड्रेनल ग्लैंड में), सार्कोमा (मसल्‍स और हड्डियों में), जर्म-सेल ट्यूमर (गोनाड में) और रेटिनोब्लास्टोमा (आंखों में) हैं। बच्‍चों में कैंसर से जुड़े फैक्‍ट्स के बारे में हमें जेपी अस्पताल, नोएडा के पीडियाट्रिक हेमेटो-ऑन्कोलॉजिस्ट और बीएमटी फिजिशियन, डॉ सिल्की जैन जी बता रहे हैं।

बच्‍चों में कैंसर के लक्षण

facts about childhood cancer

  • ब्लड कैंसर के लक्षण कम हीमोग्लोबिन के कारण पीली त्वचा और थकान के कारण उत्पन्न होते हैं, साथ ही सफेद कोशिकाओं की कम संख्या के कारण बार-बार संक्रमण/ बुखार या कम प्लेटलेट काउंट के कारण ब्‍लीडिंग होना भी कैंसर का संकेत हो सकता है।
  • ब्लड कैंसर या लिम्फोमा से जूझ रहे व्यक्ति की गर्दन/बगल/ग्रोइन में बढ़े हुए लिम्फ नोड्स भी पाए जा सकते हैं।
  • ठोस ट्यूमर आम तौर पर दर्द रहित गांठ या सूजन के साथ होता है, इसमें कोई दर्द महसूस नहीं होता। जैसे विल्म्स ट्यूमर और न्यूरोब्लास्टोमा के मामले में पेट में गांठ हो सकती है।
  • गंभीर सिरदर्द और उल्टी कभी-कभी ब्रेन ट्यूमर का संकेत हो सकती है। कैंसर के अन्य सामान्य लक्षणों में थकान, एनोरेक्सिया, हड्डियों में दर्द, बुखार, वजन घटना शामिल हैं।

बच्‍चों में कैंसर के कारण

लगभग 90% बच्चों के कैंसर का कोई कारण नहीं होता है। यह वयस्कों की तुलना में बिल्‍कुल अलग है। वयस्कों में कैंसर ज्यादातर लाइफस्टाइल कारणों जैसे स्मोकिंग, मोटापा और तंबाकू चबाने की वजह से होता है। हालांकि, बच्चों के कैंसर के 10% मामलों में, इसका कारण जेनेटिक इन्हरिटेड हो सकता है जो माता-पिता के DNA से ट्रांसफर हो जाती है।

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बच्‍चों में कैंसर के निदान

वयस्कों के विपरीत अधिकांश मामलों में इसका इलाज संभव है। ब्लड कैंसर के रोगियों में, बॉन मैरो टेस्ट के द्वारा इसका निदान किया जाता है। ब्लड कैंसर के प्रकार को जानने के लिए फ्लो साइटोमेट्री जैसा स्पेशल टेस्ट उपयोगी साबित होता है।

ट्यूमर के मामले में, ट्यूमर की सही जगह का पता लगाने के लिए प्रभावित हिस्से की इमेजिंग (अल्ट्रासाउंड/सीटी स्कैन/एमआरआई) की जाती है, इसके बाद ट्यूमर की बायोप्सी (टुकड़े की जांच) की जाती है। कैंसर सेल्स के प्रकार को देखने के लिए माइक्रोस्कोप से बायोप्सी सैंपल की जांच की जाती है।

विभिन्न प्रकार के ट्यूमर के बीच अंतर करने के लिए स्पेशल मार्कर (इम्यूनोहिस्टोकेमिस्ट्री) का उपयोग किया जाता है। रिस्क स्ट्रेटि फिकेशन के लिए अक्सर जेनेटिक टेस्ट की आवश्यकता होती है।

ट्रीटमेंट

childhood cancer expert

प्रत्येक कैंसर का उपचार उसके प्रकार को ध्यान में रखकर किया जाता है। विभिन्न प्रकार के कैंसर में उपचार के 3 प्रमुख तरीके हैं:

कीमोथेरेपी (दवाएं जो कैंसर कोशिकाओं को मारती हैं), सर्जरी और रेडिएशन।

ब्लड कैंसर का इलाज कीमोथेरेपी से किया जाता है। ट्यूमर को सर्जरी से हटाया जाता है। उनमें से कुछ को रेडिएशन की आवश्यकता भी होती है। यह समझना महत्वपूर्ण है कि ज्यादातर बच्चों के ट्यूमर में सर्जरी के अलावा कीमोथेरेपी की जरूरत भी होती है, भले ही ट्यूमर को सर्जरी द्वारा पूरी तरह से हटा दिया गया हो। सही समय पर कैंसर का पता लगना और पूरा इलाज ही इस बीमारी से बचने का सटीक उपाय है।

ट्रीटमेंट के बाद सावधानियां

एक बार कैंसर से ठीक हो जाने के बाद, बच्चे अपने जीवन में जो चाहें कर सकते हैं या बन सकते हैं। वे अन्य बच्चों के साथ खेल सकते हैं, वे अपने साथियों की तरह स्कूल जा सकते हैं। वे शादी भी कर सकते हैं और उनके अपने बच्चे भी हो सकते हैं।

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यदि कैंसर ठीक हो जाता है, तो वह सामान्य जीवन जी सकते हैं। शायद ही कभी, कुछ साइड इफेक्ट लंबे समय तक देखे जा सकते हैं, जिससे बचने के लिए इलाज पूरा होने के बाद नियमित रूप से क्लिनिकल फॉलो अप की ज़रुरत होती है।

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Image Credit: Shutterstock.com

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