बोर्ड एग्‍जाम के दौरान बच्‍चों को स्‍ट्रेस फ्री रखना है बेहद जरूरी, एक्‍सपर्ट से जानें कैसे

बोर्ड एग्‍जाम के प्रेशर के चलते बच्‍चों का पढ़ाई पर ध्‍यान देना मुश्किल हो गया है। इसलिए बच्‍चों को स्‍ट्रेस फ्री रखना बेहद जरूरी है।

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कंपटीशन के इस दौर में बच्‍चों पर पढ़ाई, एग्‍जाम के साथ-साथ अच्‍छा रिजल्‍ट आने का प्रेशर भी बहुत ज्‍यादा हो गया है। यह प्रेशर वह खुद से तो लेते ही हैं साथ पेरेंट्स और टीचर भी उनपर थोड़ा प्रेशर बनाते हैं। इस प्रेशर के चलते बच्‍चों का पढ़ाई पर ध्‍यान देना मुश्किल हो गया है। हर समय सबसे अच्‍छा करने और अच्‍छा रिजल्‍ट पाने की चिंता में वे कुछ भी सही तरीके से नहीं कर पाते हैं।

ऐसा ही कुछ पिछले साल मेरी बेटी के साथ भी हुआ था। जी हां पिछले साल 10 वीं क्‍लास के लिए 10 साल बाद बोर्ड एग्‍जाम शुरू हुए थे। इससे पहले 10 क्‍लास के एग्‍जाम स्‍कूल में ही होते थे। ऐसे में स्‍कूल वालों ने बच्‍चों पर इतना प्रेशर बना दिया था कि मेरी बेटी बहुत ज्‍यादा डर गई थीं। एक तरफ स्‍कूल टीचर का प्रेशर रोज-रोज टेस्‍ट, दूसरी तरफ ट्यूशन टीचर का प्रेशर ये भी करो और वो भी करो। साथ ही उसका खुद का प्रेशर कि मुझे एग्‍जाम में अच्‍छे नम्‍बर लाने हैं। इस सभी चीजों के चलते वह बहुत ज्‍यादा कंफ्यूज हो गई थी। उसका कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। फिर मैंने उसे प्‍यार से समझाया कि जो भी करो आराम से करो कुछ प्रेशर लेने की जरूरत नहीं है।

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क्‍या कहते है डॉक्‍टर

इस बारे में मनोचिकित्सक डॉक्‍टर अनुनीत साभरवाल का कहना हैं, "एक विद्यार्थी जब बोर्ड एग्‍जाम के प्रेशर और तनाव में आता है तो उसमें शारीरिक, व्यावहारिक, भावनात्मक और संज्ञानात्मक परिवर्तन आ जाते हैं। इन्हें देखना और पहचानना उसके पेरेंट्स और उससे जुड़े लोगों का काम है।"

दरअसल, किसी भी तरह के डर या मांग के बदले में बॉडी इसी तरह से प्रतिक्रिया करती है और हम स्‍ट्रेस में आ जाते है। उसके नर्वस सिस्टम से स्‍ट्रेस हार्मोन्स एड्रेनालाईन और कॉर्टिसोल का स्राव होने लगता है, जो बॉडी को इमरजेंसी एक्शन लेने के लिए उकसाता है।

एडीएचडी से है एग्‍जाम स्‍ट्रेस का संबंध

'अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिव सिंड्रोम' से पीड़ित बच्चों की हेल्‍प करने वाली संस्था 'मॉम्स बिलीफ' से जुड़ीं क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉक्‍टर मालविका समनानी कहती हैं, "विद्यार्थियों में एग्‍जाम स्‍ट्रेस का संबंध एडीएचडी से हैं। यह संबंध पॉजिटीव नहीं है, बल्कि यह छत्तीस का आंकड़ा है। लिहाजा, इन दोनों का एक साथ होना खतरनाक हो सकता है।"

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एडीएचडी से प्रभावित बच्चों का ध्यान बहुत जल्द भटक जाता है। इसके बावजूद उन्हें भी आम स्‍टूडेंट की तरह हर चुनौती का सामना करना होता है। जैसे- अपनी चीजें सही जगह पर रखना, समय का ध्यान रखना और सवालों का हल करना। यह सब इन बच्चों के जीवन को अधिक कठिन और चुनौतीपूर्ण बनाता है।



डॉक्‍टर सममानी आगे कहती हैं, "एग्‍जाम के दौरान तो विशेष तौर पर एडीएचडी से परेशान बच्चों का स्‍ट्रेस कई गुना बढ़ जाता है। इन्हें कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जो सुनने में तो आम लगती हैं, लेकिन इनके लिए किसी चुनौती से कम नहीं हैं।"

ये हैं समस्याएं

  • डाटा या कॉन्सेप्ट को पहचानने में कठिनाई
  • विचार बनाने या व्यक्त करने में कठिनाई
  • समय का ध्यान नहीं रहना
  • एकाग्रता में कमी, ध्यान का भटकना
  • निर्देर्शो का पालन नहीं कर पाना
  • जल्दबाजी में गलतियां कर देना

एग्‍जाम के दौरान इन बच्चों का तनाव कम करने के लिए उनके माता-पिता उन्हें ट्यूशन या रेमेडी क्लास भेजकर उनके स्‍ट्रेस को कुछ कम जरूर कर सकते हैं। स्कूल भी अगर अपनी जिम्मेदारी समझकर कक्षाएं समाप्त होने के बाद एडीएचडी स्‍टूडेंट्स के लिए विशेष प्रोग्राम का आयोजन कर सकते हैं।

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वहीं, डॉक्‍टर साभरवाल कहते हैं कि प्रेशर और स्‍ट्रेस लेवल को कंट्रोल में रखने के लिए जरूरी है कि स्‍टूडेंट हर पौने घंटे की पढ़ाई के बाद दस-बीस मिनट तक का ब्रेक लें। इस ब्रेक के दौरान आउटडोर गेम्स खेले जा सकते हैं। खेल ऐसा जरिया है, जो बॉडी को ऑक्सीटॉनिक्स हार्मोन निकालने में हेल्‍प करता है। पढ़ाई के दौरान होने वाले स्‍ट्रेस फ्री रहने के लिए ये हार्मोन बॉडी और ब्रेन के लिए रिलैक्सेशन थेरेपी का काम करते हैं। साथ ही पेरेंट्स को चाहिए कि वे लगातार अपने बच्चे से बात करते रहें, ताकि उसके अंदर चल रही बातों का पता चल सके।

Source: IANS

Image Courtesy: Freepik & Pxhere.com

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