बॉडी में विटामिन-डी की कमी से किडनी का गंभीर रोग हो सकता है और खासकर बच्चों में इसका खतरा बहुत ज्यादा होता है। एक पुराने अध्ययन में इस बात का खुलासा हुआ था कि किडनी की गंभीर बीमारी (सीकेडी) से पीड़ित बच्चों में आमतौर पर विटामिन-डी की कमी पाई गई है। लंबे समय तक बीमारी रही तो किडनी के खराब होने का खतरा बढ़ जाता है। लेकिन क्या आप जानती हैं कि बॉडी में विटामिन डी ज्यादा होना भी आपकी किडनी को नुकसान पहुंचा सकता हैं। ये बात एक नई रिसर्च से सामने आई है। इसलिए बॉडी में इसी सही मात्रा को बनाए रखना बेहद जरूरी हैं। बॉडी में विटामिन डी ज्यादा होने पर किडनी को कैसे नुकसान हो सकता है, आइए इस नई रिसर्च के बारे में जानें। लेकिन सबसे पहले जान लेते हैं कि विटामिन डी हमारी बॉडी के लिए क्यों जरूरी है।
आज के समय में हर किसी में विटामिन डी की कमी पाई जाती है। आज बड़े हो या बच्चे अगर आप किसी का भी विटामिन डी चेक करवाएंगे तो कम ही आएगा। ऐसा इसलिए क्योंकि हम पूरा दिन ऑफिस और घर में अंदर ही रहते हैं। हमें लगता हैं कि अगर हम धूप में निकलेंगे तो काले हो जाएंगे, ब्यूटी के प्रति इसी चिंता ने हमारी हेल्थ को प्रभावित किया है। इसके अलावा हम पतली और छरहरी दिखने की चाह में सोशल मीडिया की किसी भी डाइट प्लान को अपने मन से फॉलो करती हैं। जबकि डाइटिशियन से मिलकर अपनी हेल्थ के हिसाब से डाइट चार्ट बनवाना चाहिए। इसके चलते बॉडी में विटामिन डी की कमी हो जाती है और थकान, मसल्स में कमजोरी और अन्य कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं।
विटामिन डी की जरूरत
हमारे संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए विटामिन डी बहुत जरूरी है। यह बॉडी में कैल्शियम के लेवल को कंट्रोल में करने का काम करता है, जो नर्वस सिस्टम के काम और हड्डियों की मजबूती के लिए जरूरी है। साथ ही ये बॉडी के इम्यून सिस्टम को भी बढ़ाता है, जिससे हम कई तरह की बीमारियों से बच रह सकते हैं। लेकिन बॉडी में इसकी कमी होने से मोटापा बढ़ने के साथ ही डिप्रेशन, हड्डियों में दर्द, इम्यूनिटी सिस्टम कमजोर, थकावट, एनर्जी लेवल कम होना आदि हो सकती हैं।
विटामिन डी अधिक होने से बॉडी पर असर
एक मामले में, एक 54 वर्षीय व्यक्ति में दक्षिण-पूर्व एशिया से ट्रेवल लौटने के बाद, जहां उसने अपनी छुट्टियां धूप सेंकने में बिताई थी। किडनी खराब होने का पता तब चला जब उसने सालों तक विटामिन डी की हाई डोज ली थी। कनाडा के मेडिकल एसोसिएशन जर्नल में प्रकाशित एक स्टडी के अनुसार, एक किडनी एक्सपर्ट के परीक्षण के बाद, यह पता चला कि उस व्यक्ति को प्राकृतिक चिकित्सक द्वारा विटामिन डी की हाई डोज निर्धारित की गई थी।
क्या कहती है रिसर्च
दो-ढाई साल में, रोगी, जिनके पास हड्डी की हानि या विटामिन डी की कमी का इतिहास नहीं था, उन्होंने विटामिन डी की 8-12 बूंदें रोजाना लीं, कुल मिलाकर 8,000-12,000 IU। नतीजतन, उसके ब्लड में कैल्शियम का लेवल बहुत ज्यादा हो गया, जिसने उसकी किडनी को नुकसान पहुंचा।
हालांकि विटामिन डी की रोजाना 400-1000 IU खुराक लेनी चाहिए, लेकिन ऑस्टियोपोरोसिस के हाई जोखिम वाले बड़ी उम्र के लोगों और अन्य बड़ी उम्र के लोगों में विटामिन डी 800-2000 IU अनुशंसित किया गया है। टोरंटो यूनिवर्सिटी के बॉर्न अगस्टे ने कहा "हालांकि, विटामिन डी की विषाक्तता एक बड़ी चिकित्सीय सीमा के कारण दुर्लभ है, लेकिन विभिन्न ओवर-द-काउंटर में इसकी व्यापक उपलब्धता असंक्रमित रोगियों के लिए एक बड़ा खतरा पैदा कर सकती है,"
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हाइपरलकसीमिया से संबंधित जटिलताओं को सीमित करने के लिए चिकित्सकों को विटामिन डी के उपयोग के जोखिमों के बारे में पता होना चाहिए। पूरक सप्लीमेंट के बाद भी रोगियों में बेहतर होने से पहले कैल्शियम का लेवल खराब हो सकता है, क्योंकि विटामिन डी फैट में घुलनशील होता है। शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया, "हमारा अनुभव हमें बताता है कि रोगियों और चिकित्सकों को विटामिन डी के अधूरे उपयोग के जोखिमों के बारे में बेहतर जानकारी दी जानी चाहिए।"
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