महिलाओं और पुरुषों के फैशन में जमीन आसमान का अंतर होता है और ये हमारे पहनावे पर निर्भर करता है। महिलाओं के पहनावे में कई लड़कियों की एक बड़ी समस्या होती है और वो ये कि इनमें जेब नहीं होती। हां, जीन्स आदि में जेब दिखती तो है, लेकिन वो कितनी छोटी और बिना काम की होती है ये तो हम सभी जानते हैं। पर क्या आपने कभी सोचा है कि ये अंतर आखिर क्यों है?
फैशन की दुनिया में आखिर महिलाओं के साथ ऐसा क्यों किया गया कि आखिर उन्हें जेब नसीब नहीं हुई। ये बदलाव शुरुआत से ही है और इसका कारण कहीं न कहीं विक्टोरियन जमाने से जुड़ा हुआ है। महिलाओं की जीन्स में जेब न होने के पीछे की कहानी आज हम आपको बताते हैं।
अगर आपको फैशन के बारे में नॉलेज है तो फिर विक्टोरियन जमाने के कॉर्सेट्स के बारे में भी आपको पता ही होगा। इसे कहीं न कहीं पुरुषवाद से भी जोड़कर देखा जा सकता है। दरअसल, विक्टोरियन जमाने में महिलाओं को ऐसे ड्रेस पहनने पड़ते थे जिससे उनका फिगर अलग से दिखे। कॉर्सेट्स के कारण उनके ब्रेस्ट्स को अलग दिखाया जाता था और उन्हें काफी भारी ड्रेसेज पहननी होती थीं। उनकी कमर से एक धागे से पोटली को बांधा जाता था जो उनके लिए पॉकेट का काम करता था।
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पर जैसे-जैसे समय बदला कॉर्सेट और महिलाओं के फैशन में भी बदलाव आया। महिलाओं की फ्लफी ड्रेसेज की जगह पतले गाउन आ गए जिनमें उनका फिगर अच्छे से दिखता है। ऐसे समय में जहां फिगर हगिंग गाउन्स का फैशन था वहां पर आखिर सामान रखने के लिए एक पैकेट जैसी चीज़ उनके ड्रेसेज में कैसे बनाई जा सकती थी।
इस दौर में महिलाओं के छोटे हैंड पर्स का चलन बढ़ा क्योंकि उनके ड्रेसेज में कोई भी पोटली नहीं रह गई थी। हर महिला अपने साथ सीक्वेंस से सजा हुआ खूबसूरत पर्स लेकर घूमती थी। ये वो दौर था जब महिलाओं के फैशन में तेज़ी से बदलाव हो रहा था। पर यहां भी ये पर्स काफी छोटे हुआ करते थे।
दरअसल, उस दौर में विदेशों में महिलाओं ने बाहर काम करना भी शुरू कर दिया था और अगर वो बड़ा बैग लेकर जातीं तो उन्हें वर्किंग वुमन समझा जाता और उस समय महिलाओं के लिए वर्किंग वुमन होना आदर की बात नहीं मानी जाती थी। हालांकि, कई लोग तो आज भी वर्किंग महिलाओं पर ताने कस देते हैं तो वो दौर तो कुछ और ही था।
1800 सदी के अंत तक महिलाओं का फैशन बहुत हद तक बदल गया जहां पर महिलाओं ने पैंट्स पहनना शुरू कर दिया था। हालांकि, ये पैंट्स कुछ-कुछ ऐसे थे जैसे पुरुषों द्वारा पहने जाते थे और महिलाओं की पैंट्स में भी वैसी ही जेब थी पर यहां एक समस्या थी। वो समस्या ये थी कि महिलाओं का फिगर इस तरह के गेटअप में अच्छा नहीं लगता था। महिलाओं के फिगर में वो पॉकेट्स बहुत ही मर्दाना लगते थे और उनके निचले हिस्से को फुला देते थे।
ऐसे में फैशन की मांग ये होने लगी कि उनके पॉकेट्स छोटे होने लगे। धीरे-धीरे महिलाओं ने बिना पॉकेट के ही पैंट्स पहनना शुरू कर दिया।
ऐसा माना जाने लगा कि अगर वो अपनी पैंट्स की पॉकेट में कुछ रख देंगी तो उनका पैंट बढ़ा हुआ सा लगने लगेगा और इससे उनका फिगर खराब हो जाएगा। इससे वो भारी भी दिखने लगेगा और ऐसा लगेगा कि उनका नीचे का हिस्सा बेडौल है। इसके बाद से ही महिलाओं की स्कर्ट्स और जीन्स में पॉकेट्स या तो होते ही नहीं थे या फिर ये बहुत छोटे होने लगे थे। आज भी आप अगर जेगिंग्स खरीदते हैं तो डिजाइन के लिए ऐसा दिखाया जाता है कि इसमें पॉकेट है, लेकिन ये होता नहीं है।
अगर फैशन डिजाइनर्स पॉकेट डालते भी हैं तो भी ये ऐसे डालते हैं कि वो अहसान कर रहे हों क्योंकि ये पॉकेट्स आपके अंगूठे जितने बड़े ही होते हैं और उनमें कुछ भई रखा नहीं जा सकता। महिलाओं का ये फैशन न सिर्फ उनके फिगर को ठीक दिखाता था प्लस पॉकेट के बिना जीन्स या पैंट्स आदि बनाना सस्ता भी पड़ता था। इसलिए शायद इन्हें नहीं बनाया गया।
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आज के फैशन की बात करें तो सिर्फ कार्गो पैंट्स, ब्वॉयफ्रेंड जीन्स आदि में ही बड़े पॉकेट्स मिलते हैं। आज जब लेगिंग्स और जेगिंग्स आदि का जमाना है तो टाइट फिट वाले इन कपड़ों में आखिर कैसे पॉकेट्स लगाए जाएं।
हालांकि, अब कई ब्रांड्स कुर्तों, स्कर्ट्स और यहां तक की साड़ियों में भी पॉकेट्स की जरूरत को समझ रहे हैं और हम उम्मीद कर सकते हैं कि धीरे-धीरे ये पॉकेट्स का चलन वापस से जरूरत बन जाएगा।
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