जब हम प्राकृतिक खूबसूरती की कल्पना करते हैं, तब हमारे जहन में कश्मीर की खूबसूरत वादियां, ऊंचे पहाड़, बर्फ और पश्मीना शॉल की छवि उभर आती है। वैसे पहाड़, बर्फ और खूबसूरत वादियां तो आपको देश में कई जगह देखने को मिल जाएंगी मगर पश्मीना जेसी उत्कृष्ट हस्तशिल्प कला आपको केवल कश्मीर में ही देखने को मिलेगी।
आपने पश्मीना के बारे में बहुत कुछ सुना होगा। दिखने में बेशक यह एक आम शॉल की तरह ही लगता है, मगर इसमें इतनी खूबियां हैं जो इसे सबसे अलग बना देती हैं। ऐसा कहा जाता है कि पश्मीना की पतली शॉल यदि ओढ़ ली जाए तो तापमान शून्य ही क्यों न हो जाए आपको ठंड नहीं लगेगी। वैसे पश्मीना में यह एकलौता गुण नहीं है बल्कि इसमें और भी कई खूबियां हैं, जिनके बारे में हम आज बात करेंगे।
आज हम आपको इस आर्टिकल में बताएंगे कि आखिर पश्मीना कैसे तैयार किया जाता है, इसका इतिहास क्या है और वर्तमान में फैशन इंडस्ट्री में इसका क्या महत्व है। तो चलिए जानते हैं पश्मीना से जुड़े रोचक तथ्य ।
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पश्मीना का इतिहास
जब हम लग्जीरियस आउटफिट की बात करते हैं, तो उस लिस्ट में पश्मीना का नाम सबसे ऊपर आता है मगर पश्मीना की पहचान केवल इतनी ही नहीं है बल्कि इसका एक समृद्ध इतिहास है। यह कहना गलत नहीं होगा कि जितना पुराना कश्मीर का इतिहास है उतना ही पुरानी पश्मीना की कहानी भी है। सबसे पहले तो यह जान लें कि पश्मीना एक पारसी शब्द पाशम से प्रेरित है। पाशम का अर्थ "नर्म सोना " होता है। मुगल काल में पश्मीना का आविष्कार हुआ। बादशाह अकबर ने कश्मीरी कारीगरों से एक विशेष प्रकार के ऊन का निर्माण कराया और इससे पश्मीना शॉल बुना गया। आपको बता दें कि मुगल काल में राजा-महाराजा हमेशा रेश्म के वस्त्र पहनते थे और जब सर्दियां पड़ती थीं, तो जानवरों की खाल से बने वस्त्रों को धारण करते थे। हालांकि, यह वस्त्र उतने खूबसूरत नहीं होते थे जितने रेश्म के वस्त्र होते थे। इसलिए ऊनी वस्त्रों में भी रॉयल लुक लाने के लिए पश्मीना का आविष्कार किया गया। यह दिखने में रेशम की तरह ही चमकदार लगता था और इस पर कश्मीरी एंब्रॉयडरी की जाती थी जो इसकी सुंदरता को चार गुना बढ़ देती थी। आज भी आपको पश्मीना में बहुत खूबसूरत-खूबसूरत एम्ब्रॉयडरी मिल जाएंगी। अब तो फैशन और आधुनिकता के रंग पश्मीना पर भी नजर आने लगे हैं और बाजार में आपको कई तरह के पश्मीना शॉल मिल जाएंगे। इतनी कीमत भी आपको ज्यादा और कम दोनों मिल जाएंगी। मगर आप यदि असली पश्मीना खरीदने के बारे में सोच रही हैं, तो उसकी अच्छी कीमत चुकाने के लिए भी तैयार हो जाइए क्योंकि असली पश्मीना आपको 50 हजार रुपये से लेकर 1 लाख रुपये से भी ज्यादा में मिल जाएगा।
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कैसे बनता पश्मीना?
पश्मीना एक प्रकार का कश्मीरी ऊन है और यह बहुत ही दुर्लभ प्रजाति की बकरियों के बाल से तैयार होता है। यह हिमालयन बकरियां होती हैं, जिन्हें चांगथंग के नाम से पुकारा जाता है और अधिकतर यह बकरियां लद्दाख में मिलती हैं। हालांकि, अब यह बकरियां बहुत ज्यादा ही दुर्लभ होती जा रही हैं, इस लिए पश्मीना के अस्तित्व पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। वैसे अब पश्मीना में और भी वैरायटी आ गई हैं और अब तीन नस्ल की बकरियों के बाल इसे बनाने में लगते हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि एक बकरे से 170 ग्राम तक ऊन प्राप्त हो सकता है और पश्मीना का एक धागा हमारे सिर पर उगने वाले एक बाल की मोटाई से भी 6 गुना पतला होता है। इस ऊन को चरखे से तैयार किया जाता है। पहले तो हाथ वाले ही चरखे होते थे, मगर आप इलेक्ट्रिक चरखों की वजह से इस ऊन को तैयार करना थोड़ा आसान हो गया है।
वर्तमान समय में पश्मीना का महत्व?
जब बात टाइमलेस एलिगेंस की आती हैं, तो पश्मीना का नाम भी लिया जाता है। आज हम लग्जीरियस फैब्रिक्स की बात करें तो पश्मीना को भी उसी में गिना जाने लगा है। पहले तो पश्मीना की चादर और शॉल ही बनते थे, अब आपको पश्मीना की साड़ी, कुर्ती, जैकेट आदि सभी कुछ देखने को मिल जाएगा। पश्मीना के साथ प्रयोग भी कम नहीं किए गए हैं। अब पश्मीना के ऊन को दूसरे ऊन के साथ मिलाकर भी गर्म कपड़े तैयार किए जा रहे हैं। ऐसे में पश्मीना से तैयार कपड़े आपको बाजार में 5000 रुपये से लेकर लाखों रुपये तक में मिल जाएंगे।
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