साड़ी का महत्व भारतीय संस्कृति में क्या है इसे बताने की कोई जरूरत नहीं है। साड़ी शब्द असल में संस्कृत शब्द 'सट्टिका' से आया है जिसका अर्थ होता है कपड़े की पट्टी। असल में साड़ी का इतिहास तस्वीरों और लेखों में मुगल और ब्रिटिश काल में ही मिलता है। उसके पहले तो गुप्त या मौर्य काल में महिलाओं के चित्र में वो कम कपड़ों में दिखती थीं और नीचे धोती जैसा कपड़ा होता था पूरी साड़ी नहीं।
कुछ फैशन इतिहासकार मानते हैं कि धोती ही सबसे पुराना लपेटने वाला कपड़ा होता था, उस समय पुरुष और महिलाएं सभी इसे पहनते थे। लेकिन धीरे-धीरे ये आगे बढ़ता चला गया।
ऊपर दी हुई दोनों तस्वीरों में से पहली में महिला मराठी साड़ी में दिखाई गई है और दूसरी तस्वीर में पारसी महिलाएं अपने तरीके से साड़ी पहने हुए हैं।
इसे जरूर पढ़ें- World Saree Day: भारतीय महिलाओं का पहनावा है साड़ी, जानिए साड़ियों के नाम से जुड़ा उनका दिलचस्प इतिहास
पुराणों में साड़ी का जिक्र..
असल मायने में पुराणों में साड़ी का जिक्र सिर्फ महाभारत में आया था जहां कौरवों ने द्रौपदी का चीर हरण किया था। अब ऐसे देखें तो साड़ी 5000 साल पुरानी है। जो सभी इतिहासकारों के दावों से अलग जाता है। साड़ी को लेकर कई महिलाओं ने इतिहास में कुछ न कुछ अलग किया है। एक बार उनके इतिहास के बारे में भी जान लेते हैं।
पहली मलयाली महिला जिसने साड़ी पहनी थी-
कुछ रिपोर्ट्स बताती हैं कि केरल में पहली महिला जिसने साड़ी पहनी थी वो कलयानी पिल्लई (1839-1909) थीं। ये ट्रैवेनकोर (अब त्रिवेंद्रम) के महाराजा की पत्नी थीं। वो नाटककार और कवित्री भी थीं। चर्चित पेंटर राजा रवि वर्मा ने उनका चित्र भी बनाया था। राजा रवि वर्मा की कई पेंटिंग्स में महिलाएं साड़ी पहने हुई थीं। हालांकि, इस फैक्ट को लेकर कई लोगों में मतभेद भी है, उनका मानना है कि पहले भी साड़ी पहनती थीं मलयाली महिलाएं।
पहली बंगाली महिला जिसने ब्लाउज पहना-
बंगाल में ही नहीं बल्कि पूरे भारत में ब्रिटिश राज से पहले कई जगहों पर बिना ब्लाउज के साड़ी पहनी जाती थी, लेकिन विक्टोरियन जमाने में बिना ब्लाउज की साड़ी पहनना खराब माना जाता था। उसके बाद जनानदानंदिनी देनी (Jnanadanandini Debi) जो रविंद्र नाथ टैगोर के भाई सत्येंद्र नाथ टैगोर की पत्नी थीं। वो पहली बंगाली महिला मानी जाती हैं जिन्होंने ब्लाउज पहना था। उन्हें किसी बिल्डिंग में एंट्री नहीं दी गई थी क्योंकि उन्होंने अपने ब्रेस्ट के ऊपर साड़ी लपेटी थी। उसके बाद टैगोर परिवार में महिलाओं ने साड़ी के साथ ब्लाउज पहनना शुरू किया था।
ब्लाउज और पेटीकोट हैं अंग्रेजों की देन!
दरअसल, ये शब्द अंग्रेजी शब्द हैं और विक्टोरियन काल में ही ये भारतीय शब्दावली का हिस्सा बने थे। उस काल में शर्ट के ऊपर साड़ी पहना जाना हाई फैशन माना जाता था। ये ब्रिटिश जमाने की देन है जिसे हम आदिकालीन भारतीय संस्कृति का हिस्सा मानने लगे हैं।
ब्रिटिश जमाने से साड़ी का फैशन बदल गया और ये उस समय हाई सोसाइटी की सभी महिलाएं अंग्रेजी कपड़ों को अपनी साड़ी का हिस्सा बनाने लगीं। धीरे-धीरे ये निचले तब्के की महिलाओं के सामने भी आया और उसके बाद तो साड़ी पहनने का तरीका ही बदल गया। साड़ी के साथ महिलाएं पर्स भी लेकर चलने लगीं। वैसे भी साड़ी के साथ बेहतरीन क्लच या पर्स लुक को काफी बढ़ा देता है। ये क्लासी भी लगता है और जरूरत का सारा सामान इसमें होता है। तो अगर आप भी ऐसा कुछ खरीदना चाहें तो एक साड़ी क्लच आपके लिए बेहतर ऑप्शन बन सकता है। खरीदने के लिए यहां क्लिक करें।
मॉर्डन साड़ी और व्यापार-
मराठी साड़ी, बंगाली साड़ी, कांजीवरम साड़ी, सिल्क, कॉटन, बनारसी और न जाने कितनी तरह की साड़ियां आज भारत में पहनी जाती हैं। देश-विदेश के लोगों में ये बहुत प्रचलित है। पहले इसे सिर्फ एक सादा कपड़ा माना जाता था, लेकिन अब हेवी एम्ब्रॉइडरी वाली हैंडमेड साड़ियां भी आने लगी हैं। बनारसी साड़ी की बात ही कुछ और होती है। बनारसी सिल्क काफी ग्रेसफुल लगती है। अगर आप भी इसे डिस्काउंट में खरीदना चाहें तो यहां क्लिक कर सकते हैं।
नए जमाने में साड़ी का फैशन बदलता जा रहा है। अब पेटीकोट की जगह साड़ी स्कर्ट ने ले ली है जो पहनने में आसान है और बार-बार नाड़ा बांधने के झंझट से बचाता है। इसी के साथ ये साड़ियों को पहनने का ट्रेंडी तरीका भी है क्योंकि इससे शरीर सुडौल लगता है। अगर आप भी अपने लिए ऐसा ही साड़ी शेपवियर खरीदना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें।
और डिजाइनर साड़ियां जो पहले से ही प्लीट्स के साथ आती हैं और अब इसके साथ कई तरह का एक्सपेरिमेंट किया जा रहा है। Textile Ministry Annual Report 2016 की सालाना रिपोर्ट कहती है कि करीब 11 मिलियन लोग साड़ी के व्यापार से किसी न किसी तरह से जुड़े हुए हैं।
इसे जरूर पढ़ें- शादी में पहनना चाहती हैं साड़ी, बॉलीवुड दीवाज की तरह ब्लाउज को बनाएं स्टाइलिश
फैशन आइकन श्वेता चित्रोदे लद्दाक गईं थीं महाराष्ट्रियन साड़ी पहन कर। उन्होंने अपनी तरह का ये पहला एक्सपेरिमेंट किया था। ऐसे न जाने कितने एक्सपेरिमेंट साड़ी को लेकर किए जाते हैं। साड़ी जिसे पहनने के 100 से भी ज्यादा तरीके हैं उसे हर कोई अपनी पसंद और सहूलियत के हिसाब से पहनता है। इसे पहनने के लिए किसी भी तरह के सपोर्ट की जरूरत नहीं होती, लेकिन लोग फिर भी सेफ्टी पिन लगा ही लेते हैं। हाल ही में #SareeTwitter ट्रेंड भी सामने आया था और महिलाओं ने ट्विटर पर बहुत सी तस्वीरें शेयर की थीं। तो कुल मिलाकर साड़ी का इतिहास हो या साड़ी पहनने के तरीके सब कुछ बहुत ही रोचक है।
HerZindagi ऐप के साथ पाएं हेल्थ, फिटनेस और ब्यूटी से जुड़ी हर जानकारी, सीधे आपके फोन पर! आज ही डाउनलोड करें और बनाएं अपनी जिंदगी को और बेहतर!
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों