Interesting Facts:बिहार की इस पारंपरिक सुजनी एंब्रॉयडरी से जुड़ी रोचक बातें जानें

बिहार की सुजनी आर्ट दिखने में जितनी सिंपल-सोबर है, इससे जुड़े तथ्‍य बहुत ही रोचक हैं। फैशन इंडस्ट्री में सूजनी एंब्रॉयडरी के महत्‍व को समझने के लिए आप यह लेख पढ़ सकती हैं। 

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सुई और धागे का रिश्ता बड़ा ही अलबेला होता है। जहां एक तरफ सुई सख्त होती है वहीं धागा मुलायम होता है, मगर जब दोनों मिलते हैं, तो अद्भुत परिणाम सामने आते हैं। बिहार की सुजनी एम्ब्रॉयडरी भी इसी का एक खूबसूरत परिणाम है। वैसे तो बिहार में आपको एक से बढ़कर एक रंग-बिरंगी लोक कलाएं एवं हस्तशिल्प कलाएं देखने को मिलेंगी। मगर इन सब में सुजनी सबसे अनोखी है। बस कला की समझ और सुई धागे के खेल से इस एम्ब्रॉयडरी को साकार रूप दिया जाता है। इस कला के बारे में विस्तार से जानने और फैशन इंडस्‍ट्री में इसके योगदान के बारे में पता लगाने के लिए हमने बात की आर्टिस्ट आशा देवी से।

आशा जी पटना की रहने वाली हैं और बचपन से सुजनी कला में निपुण हैं। वह कहती हैं, "यह कला केवल औरते ही करती हैं और हमारे घर की भी सारी महिलाएं इस कला में निपुण थीं। मैं भी यह काम काफी समय से कर रही हूं। यह केवल मेरे रोजी रोटी नहीं है बल्कि इसे करने से मुझे आत्‍मसंतुष्टि मिलती है।"

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कहां से आई सूजनी?

सूजनी एम्ब्रॉयडरी को समझना बहुत आसान है। इसमें रनिंग स्टिच, बैक स्टिच और चेन स्टिच का पूरा कमाल होता है। यह बंगाल की 'कांथा' कढ़ाई से भी थोड़ा बहुत मिलती है। कई लोगों का मानना है कि यह बंगाल से बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के भुसुरा नाम के गांव के आस-पास के कुछ क्षेत्रों में वहीं के कुछ रहने वाले आर्टिस्ट के साथ-साथ आई और यहां स्थापित हो गई। आशा जी बताती हैं, "सूजनी एम्ब्रॉयडरी को पहले घर में इस्तेमाल किए जाने वाले बिछौनों और ओढ़ने वाली चादरों पर किया जाता था।" सोशल मीडिया पर मिली एक और जानकारी के आधार पर सूजनी एम्ब्रॉयडरी वर्ष 1920 में राजपूत महिलाओं द्वारा घर की साज-सज्जा के उद्देश्य से घर के बिछौनों, चादरों और पर्दों पर की जाती थी। जब राजपूत बंगाल और बिहार आकर बसे, तब उनके माध्‍यम से ही इस एम्ब्रॉयडरी को बिहार और बंगाल के क्षेत्रों में पहचान मिली। जहां राजपूत इस एम्ब्रॉयडरी को रेशम के धागों से करते थे, वहीं दूसरी तरफ गरीब तबके की महिलाएं इसे सूती धागों से करने लगीं।

कैसी होती है सूजनी आर्ट?

सूजनी एम्ब्रॉयडरी आर्ट बहुत ही सिंपल और सोबर होती है और इसमें गांव, घर, त्योहार और प्राकृतिक चित्र बनाएं जाते हैं। इसकी छपाई भी महिलाएं घर पर ही करती हैं। इस बारे में आशा जी बताती है, " पहले हम कागज पर डिजाइन बनाते हैं और फिर उस पर सुई से छेद करते हैं। यह छपाई पहले मिट्टी के तेल से की जाती थी मगर अब हम इसे नील पाउडर से करते हैं।" इस कढ़ाई में सिंपल कलर के धागे और शेडेड धागों का प्रयोग किया जाता है। इनसे रनिंग, बैक और चेन स्टिच करी जाती है। आशा जी बताती हैं, "इस एंब्रॉयडरी में अब कुछ बदलाव भी हो रहे हैं । अब इसमें दूसरी एम्ब्रॉयडरी को भी हम जोड़ रहे हैं और इससे बहुत ही खूबसूरत काम कपड़े पर नजर आ रहा है। अब तो साड़ी, सलवार सूट और दुपट्टे पर भी इस तरह की एंब्रॉयडरी की जा रही है। "

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फैशन इंडस्ट्री में सूजनी एम्ब्रॉयडरी?

फैशन इंडस्ट्री में सुजनी आर्ट को अब काफी महत्व दिया जा रहा है। आशा जी बताती हैं, "इस एम्ब्रॉयडरी को पारंपरिक रूप से यह जैसी दिखती है, वैसे उतना प्यार नहीं मिला है। हालांकि, रेशम के धागों से जब इस एम्ब्रॉयडरी को किया जाता है, तब यह बहुत ही ज्यादा खूबसूरत दिखती है। मगर इसमें अब भरवा एंब्रॉयडरी और अन्य कई तरह से हम बदलाव लाने का प्रयास कर रहे हैं, तो लोगों यह पसंद आ रही हैं। पहले तो हम केवल सूती कपड़ों पर यह एम्ब्रॉयडरी किया करते थे। अब इसे रेशम और टसर जैसे फैब्रिक पर भी किया जा रहा है।"

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