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traditional kitchen utensils that we still use

जानें उन पारंपरिक भारतीय बर्तनों के बारे में जो आज तक रसोई में होते हैं इस्तेमाल

आपकी दादी-नानी को आपने कुछ प्राचीन किचन के बर्तनों में खाना बनाते हुए देखा होगा। उन्हीं में से कुछ पारंपरिक और प्राचीन बर्तनों का इस्तेमाल हम लोग अब भी करते हैं। चलिए उनके बारे में जानें।&nbsp; <div>&nbsp;</div>
Editorial
Updated:- 2023-05-10, 13:17 IST

अगर आप 90 के दशक में पैदा हुए हैं तो आपने अपने घरों में पारंपरिक बर्तनों में खाना बनाते देखा होगा। हमारी दादी या नानी खाना बनाने की कुछ पारंपरिक तकनीक का इस्तेमाल करती थीं। तभी खाने का फ्लेवर एकदम अलग और स्वादिष्ट होता है। वह स्वाद आज मिल पाना मुश्किल है, क्योंकि उस समय जिन बर्तनों का इस्तेमाल होता था वह अब नहीं होता है। ये पारंपरिक कुकवेयर भारतीय विरासत की समृद्ध संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।

हालांकि कुछ गांवों या हमारी रसोई में आज भी इन बर्तनों को इस्तेमाल किया जाता है। उन पुरानी तकनीक से आज भी खाने को स्वादिष्ट बनाने की परंपरा है। आज भी हममें से कुछ घरों की रसोई में भले ही उनका काम न हो, लेकिन वह एक कोने में नजर जरूर आते हैं। आइए इस लेख में जानते हैं भारत के 6 पारंपरिक बर्तनों के बारे में।

सिल बट्टा

sil batta

मेरे घर में आज भी चटनी बनाने का एक ही तरीका है कि उसे सिल बट्टे में पीसकर तैयार किया जाए। हो सकता है सिल बट्टे का इस्तेमाल आपके यहां भी होता हो। पुराने समय में जब ग्राइंडर नहीं होते थे, तो यही ग्राइंडर की तरह काम करता था। पत्थर से बना एक फ्लैट स्लैब होता है जिसे 'सिल' कहते हैं और सिलिंड्रिकल आकार में बने भारी मैशर को 'बट्टा' कहते हैं। स्लैब को इस तरह से ठोककर बनाया जाता है कि उसमें रखी चीज़ों को अच्छी तरह से पीस सकें। बट्टे को हाथों से धीरे-धीरे आगे पीछे मोशन करके चीज़ों को पीसा जाता है। यही कारण है कि इसमें बनी चटनी या पीसी गई दाल का स्वाद एकदम अलग होता है।

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मटका

earthen pot

मुझे लगता है कि यह पानी ठंडा रखने का एक ऐसा तरीका है जो आज भी लोग इस्तेमाल करते हैं। अब भले ही किचन में फ्रिज ने जगह ले ली है, लेकिन पहले लोग मटके का ही इस्तेमाल करते थे। मिट्टी का मटका घंटों पानी को ठंडा रखता था और गर्मी के दिनों में प्यास बुझाने में मदद करता था। चूंकि मिट्टी का घड़ा या मटका हवा को आर-पार कर सकता है और इसकी यही क्वालिटी इसे पानी रखने के लिए अच्छा विकल्प बनाती थी। इसलिए फ्रिज होने के बावजूद आज फिर बड़ी मात्रा में इसे बनाया और बेचा जाता है। कुछ जगहों पर आज भी लोग इसका पानी पीना पसंद करते हैं।

मथनी

mathani aka churner

आज मिक्सर में दूध और दही डालकर उसे मिनटों में गाढ़ा कर दिया जाता है। हालांकि पहले इसके लिए मथनी का इस्तेमाल होता था और घंटों दूध और दही जैसी चीज़ों को गाढ़ा और स्वादिष्ट बनाने के लिए मथनी का प्रयोग (कॉमन घरेलू आइटम्स के नाम) किया जाता था। मक्खन निकालने के लिए खासतौर से लड़की की मथनी का इस्तेमाल किया जाता था। उसके नीचे का बेस गोलाकार में होता है, जिसमें चौड़े गैप होते हैं और लकड़ी का लंबा हैंडल होता है। आज भी गांवों में इसी के इस्तेमाल से मक्खन निकाला जाता है। अब लकड़ी के साथ-साथ स्टील की मथनी आने लगी है।

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खल दस्ता

इसे अंग्रेजी में मोर्टार एंड पेस्टल कहते हैं। दादी और नानी के मुंह से आपने खल दस्ता या मूसल चुना होगा। यह हमारे किचन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। वर्षों पहले जब मिक्सर और ग्राइंडर उपलब्ध नहीं थे, तो लोग सूखे मसालों और हर्ब्स को पीसने के लिए पत्थर के नक्काशीदार मोर्टार और मूसल का इस्तेमाल करते थे। ये सिल बट्टा की तुलना में कम जगह लेते हैं और आसानी से इस्तेमाल भी किए जा सकते हैं। आज उनके छोटे-छोटे वर्जन भी उपलब्ध हैं।

क्या आपने कभी इनमें से किसी भी बर्तन का इस्तेमाल किया है या अपने घर के बुजुर्गों को खाना बनाने के लिए इनका उपयोग करते देखा है? अगर हां, तो अपने अनुभव भी हमारे साथ शेयर करें। अगर यह लेख अच्छा लगा तो इसे लाइक और शेयर करना न भूलें। ऐसे ही लेख पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी के साथ।

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