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कहीं दौलत की चाट तो कहीं मलाई मक्‍खन के नाम से मशहूर है यह मिठाई

ओस से भी हल्‍की और मुंह में घुल जाने वाली इस नवाबी मक्‍खन मलाई का स्‍वाद यदि‍जीभ में एक बार लग जाता है तो लोग इसे कभी भूल नहीं पाते।
Her Zindagi Editorial
Updated:- 2018-10-25, 18:20 IST

मौसम बदल रहा है और मौसम के साथ ही खाने-पीने के व्‍यंजन भी बदल रहे हैं। मौसम में तरावट आ गई है। सुबह का हलका कोहरा बता रहा है कि ठंड के मौसम ने दस्‍तक दे दी है। अब तो सुबह आलस्‍य के कारण चद्दर से निकलने का मन भी नहीं होता। मगर, यूपी के कुछ शहरों में आज भी फेरीवाले के केवल ‘मक्‍खन मलाई ले लो’ कहने पर लोगों का आलस्‍य भाग जाता है। आखिर ऐसा क्‍या है ‘मक्‍खन मलाई’ में जो लोग केवल उसके नाम से ही उठ खड़े होते हैं? इसका नाम सुनते ही लोगों के मुंह में पानी आने लगता है और लोग उठकर फेरीवाले के पास पहुंच जाते हैं? मक्‍खन मलाई वाले के पास भीड़ लग जाती है और देखते ही देखते उसकी पूरी बाल्टी खाली हो जाती है? जवाब यह है कि, ओस से भी हल्‍की और मुंह में घुल जाने वाली इस नवाबी मक्‍खन मलाई का स्‍वाद यदि‍जीभ में एक बार लग जाता है तो लोग इसे कभी भूल नहीं पाते। चलिए आज हम आपको इस नवाबी मिठाई के बारे में बताते हैं। 

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क्‍या मक्‍खन मलाई की खासियत 

यह मिठाई नवाबों के समय से बनती चली आ रही है। इस मिठाई की खासियत यह है कि यह केवल सर्दियों के मौसम में जब ओस पड़ना शुरू होती है और जब तक पड़ती रहती है तब तक बाजार में मिलती रहती है। इस मिठाई को हर कोई नहीं बना सकता है। इस मिठाई की खासियत यह भी है कि यह कानपुर, लखनऊ, वाणानसी, दिल्‍ली और मथुरा में ही मिलती है। कहीं इसे दौलत की चाट कहा जाता है, तो कहीं इसे मक्‍खन मिश्री कह कर पुकारा जाता है। यूपी के कानपुर और लखनऊ में तो यह मिठाई लोगों के लिए सुबह के नाश्‍ते की तरह होती है। यह खाने में बेहद हलकी होती है, मगर इसे खाने के बाद पेट भर जाता है। 

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इस प्रकार बनता है मक्‍खन मलाई

अवध के खास नवाबी व्यंजनों में शामिल मक्‍खन मलाई का नाम जितना शाही है उतने शाही तरह से इसे बनाया भी जाता है। मक्‍खन मलाई आमा मिठाइयों की तरह घंटे भर में नहीं बनती बल्कि इसे बनाने का प्रोसेस रात भर का होता है। कानुपर में शुक्‍ला मक्‍खन बहुत फेमस। यह दुकान लगभग 100 वर्ष पुरानी है। यहां का मक्‍खन मलाई खाने लोग दूर-दूर से आते हैं। इसके मालिक रमेश शुक्‍ला कहते हैं, ‘मक्‍खन मलाई ओस से बनती है। इसलिए यह केवल सर्दियों में ही मिलती है। हम इसे सुबह से बेचना शुरू करते हैं और रातभर बेजते हैं। मगर हमें इसे बहुत संभाल कर रखना होता है वरना इसे पिघलने में भी देर नहीं लगती।’ देखा जाए तो, मक्खन मलाई को बनाने का तरीका समय और धैर्य दोनों मांगता है। रमेश शुक्‍ला के अनुसार, ‘ भैंस के दूध में सबसे पहले थोड़ा-सा ताजा सफेद मक्खन मिला देते हैं। इसके बाद ठंडा होने के लिए रात भर खुले आसमान में रख दिया जाता है। चार-पांच घंटे ठंडा होने के बाद यानि, रात में दो से तीन बजे इस मिश्रण को मथना शुरू किया जाता है। जैसे-जैसे इसमें झाग उठता है, उसे दबाया जाने लगता है। यह प्रक्रिया कई बार दोहराई जाती है। पर्याप्त मात्रा में झाग इकट्ठा होने के बाद उसे ओस में रख दिया जाता है।’

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केवड़ा, इलायची और चीनी मि‍लाई जाती है

रमेश शुक्‍ला बताते हैं कि इसे खुले में रखने की एक बड़ी वजह सुबह की ओस की नमी होती है। नमी में इसे रखने पर जो इसमें झाग बनता है वह फूलने लगता है। इस तरह मक्खन का हल्‍का और मुंह में घुलने वाला मिश्रण तैयार हो जाता है। आखिरी में इसमें केवड़ा, इलायची और चीनी इत्यादि पड़ता है। हालांकि‍, अब समय की कमी के कारण ओस की जगह बर्फ का इस्‍तेमाल करते हैं ताकि मक्‍खन जल्‍दी बन जाए।

 

अगर आपको भी इस अनोखी नवाबी मिठाई का स्‍वाद चखना है तो आपको दिल्‍ली, कानपुर, लखनऊ, मथुरा या फिर वाणानसी आना होगा। यकीन मानिए आप एक बार इस मिठाई को खाएंगी तो आप इसका स्‍वाद भूल नहीं पाएंगी। 

 

 

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