भारत के खाने की सबसे अच्छी बात यह है कि हर डिश, हर व्यंजन की अपना एक खास महत्व है। अब रोटियों को ही ले लीजिए। भारत के कितने शहर हैं, जहां अलग-अलग तरह की रोटियां बनती हैं। उनकी अपनी एक खासियत है और हम भारतीयों को अपनी-अपनी रोटी से बहुत प्यार भी है। रोटी, पराठा, नान और कुलचा ही नहीं इसके अलावा और भी कई तरह की रोटियां हैं जो हम खाते और खिलाते हैं।
नान एक ऐसी चीज है जिसकी दीवानगी बीते कई सालों बढ़ी। इसे कुछ 2500 साल पहले बनाया जाने लगा और फिर इसी तर्ज पर कुलचे का जन्म हुआ। नान धीरे-धीरे हर घर में लोकप्रिय हुआ और जो नान ने किया उससे मदद मिली उससे मिलती जुलती एक और रोटी को बनने में। नान का हुलिया लिए ये थोड़ा ज्यादा क्रंची होने लगी, जिसे कुलचा कहा गया। मगर यह कुलचा बनाने का स्टाइल किसके मन में पहले आया होगा क्या आपको पता है? चलिए आज आपको हम इन कुलचों की शानदार कहानी बताएं।
कहां से आया अमृतसरी कुलचा?
तंदूर और तंदूरी खाना पकाने की उत्पत्ति देखी जाए तो आप पाएंगे कि सिंधु घाटी सभ्यता के समय से इस तकनीक का उपयोग किया जाता रहा है। और वह नान ही है जिसे स्टफ्ड कुलचे का क्रेडिट दिया जा सकता है। ऐसा माना जाता है कि नान पर्सिया से भारत आया। ऐसा माना जाता है कि एक रसोइए को एक दिन लगा कि नान रोज-रोज बनाना काफी बोरिंग हो गया है। उसने सोचा क्यों न नान में थोड़ा एक्सपेरिमेंट किया जाए और उसने नान में कुछ इंग्रीडिएंट्स डालकर इसे कुलचे का रूप दे दिया। इसे समझिए कि यह क्रंची तंदूरी आलू जैसा ही है।
क्या पेशावरी और कश्मीरी नान से है प्रेरित?
ऐसा कहा जा सकता है कि यह कश्मीरी और पेशावरी नान का ही वेरिएशन है। ये दोनों तरह की नान ड्राई फ्रूट्स (हेल्थ के लिए बेस्ट ड्राई फ्रूट्स) और फ्रूट्स से बनाई जाती थी। इसके साथ ही नान में मीट भरा जाता था। शाही रसोई में खानसामा अक्सर प्रसिद्ध नान के स्थान पर सब्जियों और मीट से भरे कुलचे परोसते थे जिसने शाहजहां के नाश्ते और दोपहर के भोजन में रोटी की जगह ले ली। वहीं, औरंगजेब भी नान के शौकीन थे क्योंकि यह सभी शाकाहारी भोजन के साथ अच्छी तरह से मेल खाने लगा।
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निजाम के बाहों में किस तरह शामिल हुआ कुलचा?
हैदराबाद के नवाब को कुलचा इतना पसंद था कि यह उनके स्टेट फ्लैग तक का सिंबल बना। शोरबा, निहारी और कबाब के लिए पहचाने जाने वाला स्टेट में जल्दी ही कुलचा अन्य खाद्य पदार्थों से ज्यादा लोकप्रिय हो गया। कुलचा न केवल उनके कोट ऑफ आर्म्स में शामिल हुआ बल्कि हैदराबाद के आधिकारिक झंडे पर भी लग गया। इस तरह नान की बजाय रॉयल कुजीन में कुलचे का दर्जा ऊंचा हो गया।
इसी तरह अभी भी जनता की पहली पसंद कुलचा ही है। इतना ही कि 1930 में, रीजेंट स्ट्रीट की हलचल को देखते हुए, ब्रिटेन के सबसे पुराने भारतीय रेस्तरां 'वीरास्वामी' ने अपने मेनू में नान परोसने के साथ-साथ कुलचे भी पेश किए थे।
तो इस तरह कुला पॉपुलर हो गया और आज छोले कुलचे, मटर कुलचे, स्टफ्ड कुलचे और ऐसे ही अन्य वेरिएशन में यह सर्व किया जाता है। आपको यह जानकारी कैसी लगी, हमें जरूर बताएं। इसी तरह अपने शहर के लोकप्रिय खाने की दिलचस्प कहानी सुनने के लिए पढ़ते रहें हरजिंदगी।
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