कबीर खान के निर्देशन और कार्तिक आर्यन स्टारर फिल्म चंदू चैंपियन जब से सिनेमा घरों में रिलीज हुआ है तब से तबाही मचा रहा है। लोगों को कार्तिक आर्यन चंदू चैंपियन की भूमिका में खूब भा रहे हैं। हर कोई फिल्म देखने की सिफारिश कर रहा है। फिल्म एक सच्ची घटना पर आधारित है और फिल्म देखने के बाद हर कोई जानना चाह रहा है कि आखिर मुरलीकांत पेटकर यानी कि चंदू चैंपियन कौन थे? अगर आप भी इस सवाल का जवाब ढूंढते-ढूंढते यहां तक आए हैं तो हम आपको इसका जवाब अपने आर्टिकल के जरिए दे रहे हैं।
कौन थे असली चंदू चैंपियन?
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चंदू चैंपियन यानी कि मुरलीकांत पेटकर 1 नवंबर 1944 को महाराष्ट्र के सांगली जिले के पेट इस्लामपुर में पैदा हुए। मुरलीकांत पेटकर का बचपन से ही सपना था कि वह अपने देश का नाम रोशन करेंगे, देश के लिए गोल्ड मेडल जीतेंगे लेकिन तब का जमाना कुछ और था। मुरलीकांत पेटकर की बातों को सुनकर उन पर विश्वास जताने की बजाय लोग उन पर हंसा करते थे और यही चीज उन्हें उनके मुकाम तक लेकर आई।
मुरलीकांत पेटकर पहले कुश्ती लड़ा करते थे, लेकिन गांव वाले और परिवार के प्रेशर में आकर वह इस सपने को पूरा नहीं कर पाए। कुश्ती लड़ने के चलते उन्हें कई तरह की मुसीबतों का सामना करना पड़ा। इसके कारण उन्हें अपना घर बार और गांव तक छोड़ना पड़ा। रोजी-रोटी की तलाश में मुरलीगंज ने आर्मी जॉइन कर ली, यहां वह कुश्ती तो कंटिन्यू नहीं कर पाए लेकिन अपने मैटर के कहने पर बॉक्सिंग जरूर शुरू कर दी। बॉक्सिंग में भी उन्होंने अच्छा किया। 1964 में मुरली टोक्यो में इंटरनेशनल सर्विसेज स्पोर्ट्स मीट में गोल्ड मेडल जीता।
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9 गोलियां खाकर देश को दिलाया गोल्ड मेडल
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इसके बाद मुरलीकांत को जम्मू कश्मीर भेज दिया गया। सितंबर 1965 में भारत-पाकिस्तान के बीच जंग तेज हो रही थी। उस वक्त मुरलीकांत सियालकोट के आर्मी कैंप में थे। पाकिस्तान ने अचानक से भारत पर हवाई हमला कर दिया। इस हमले में अपने कोच को बचाने के दौरान मुरलीकांत को 9 गोलियां लगी। इनमें से एक गोली रीढ़ की हड्डी में, एक सिर पर, एक जांघ पर, एक गाल पर लगी। 2 साल तक मुरलीकांत अस्पताल में बेहोश रहे। इतना कुछ होने के बावजूद मुरलीकांत को मृत्यु छू ना सकी। लेकिन मुरलीकांत चलने फिरने के काबिल न रहे, उन्हें लगा की गोल्ड मेडल का सपना,सपना ही रह जाएगा, लेकिन वह कहते हैं जहां चाह वहां राह
पद्मश्री से हुए सम्मानित
मुरलीकांत ने तब भी गोल्ड मेडल जीतने का सपना नहीं छोड़ा। उन्होंने 1972 में जर्मनी में हुए पैरा ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीता था वह पहले गोल्ड मेडलिस्ट है उन्होंने 50 मीटर फ्री स्टाइल स्विमिंग में 37.33 सेकंड के समय के साथ इतिहास रचा साल 2018 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया।
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Image Credit:Social Media
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