शारदीय नवरात्रि पूरे देश में भक्ति और उत्साह के साथ मनाई जाती है और ये हिन्दुओं के महत्वपूर्ण पर्वों में से एक है। शारदीय नवरात्रि में माता दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा का विधान है और इसे कई अलग तरीकों से मनाया जाता है।
इस पर्व को कई अलग अनुष्ठानों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है जिसमें कलश स्थापना प्रमुख है। कलश स्थापना को नवरात्रि पूजन का सबसे अहम चरण माना जाता है। यह अनुष्ठान दिव्य ऊर्जा के आह्वान का प्रतीक माना जाता है और यह घर में समृद्धि, स्वास्थ्य और सकारात्मक ऊर्जा लाता है।
कलश स्थापना करते समय आपको कई ज्योतिष और वास्तु से जुड़ी बातों का ध्यान रखने की सलाह दी जाती है, जिससे आपके जीवन में खुशहाली बनी रहे। सही स्थान और दिशा में कलश की स्थापना करने से जीवन में खुशहाली बनी रहती है और समृद्धि आती है। इस साल शारदीय नवरात्रि का आरंभ 3 अक्टूबर, बृहस्पतिवार के दिन हो रहा है। आइए ज्योतिर्विद पंडित रमेश भोजराज द्विवेदी से जानें कलश स्थापना के लिए वास्तु टिप्स के बारे में।
वास्तु के अनुसार शारदीय नवरात्रि में घर में कलश की स्थापना का अत्यधिक महत्व है। घर में सकारात्मक ऊर्जा के प्रवाह को बनाए रखने के लिए आपको कलश हमेशा उत्तर-पूर्व दिशा या ईशान कोण में ही रखना चाहिए। कलश स्थापना के लिए सबसे शुभ स्थान आपके घर या पूजा कक्ष का उत्तर-पूर्व कोना माना जाता है। इस दिशा को भगवान शिव की दिशा माना जाता है, जो इसे किसी भी धार्मिक गतिविधि के लिए आदर्श दिशा बनाता है।
शारदीय नवरात्रि के दौरान इस दिशा में रखा गया कलश दैवीय आशीर्वाद को आकर्षित करता है और आपके घर में समृद्धि बनाए रखता है। यदि आप उत्तर-पूर्व दिशा में कलश नहीं रख सकते हैं, तो पूर्व दिशा भी आपके लिए एक अच्छा विकल्प है। यह दिशा उगते सूरज से जुड़ी है, जो नई शुरुआत, आशा और ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करती है। कलश की स्थापना के लिए आपको दक्षिण दिशा से बचना चाहिए।
आपको हमेशा कलश स्थापना सही समय पर करने की आवश्यकता है। आपको हमेशा शुभ मुहूर्त में कलश स्थापित करना चाहिए जिससे इसके पूरे लाभ मिलें। कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त जानने के लिए किसी ज्योतिषी या पंचांग से परामर्श लें।
आमतौर पर कलश की स्थापना प्रातः काल की जाती है। कलश स्थापना से पहले उस स्थान को अच्छी तरह से साफ करना जरूरी है। यदि आप किसी गंदे स्थान पर कलश स्थापित करते हैं तो आपको इसके शुभ फल नहीं मिलते हैं। कलश की स्थापना नवरात्रि के प्रथम दिन यानी कि प्रतिपदा तिथि को करना सबसे ज्यादा शुभ माना जाता है।
नवरात्रि के अनुष्ठान के लिए आपको तांबे या पीतल के कलश का उपयोग करना चाहिए। इन धातुओं को हिंदू धर्म में पवित्र माना जाता है और ये सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करने के लिए जाने जाते हैं।
कलश की स्थापना के लिए आप प्लास्टिक, लोहे या किसी अन्य कृत्रिम सामग्री का उपयोग करने से बचें। कलश को ताजे आम या पान के पत्ते, कलश के ऊपर नारियल और उसके उसमें लाल कपड़ा या पवित्र कलावा बांधकर स्थापित करें। लाल कपड़ा शुभता का प्रतीक माना जाता है और आम के पत्ते पवित्रता और समृद्धि का प्रतीक हैं।
वास्तु शास्त्र के अनुसार कलश स्थापना के दौरान उस पर स्वास्तिक चिन्ह बनाना अत्यंत शुभ माना जाता है। स्वास्तिक एक प्राचीन और पवित्र प्रतीक है, जो समृद्धि, कल्याण और जीवन के शाश्वत चक्र का प्रतीक है। इसे बनाकर घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त होती है।
स्वास्तिक चिन्ह कलश को दिव्य शक्ति से भर देता है और इसे शुभता का प्रतीक माना जाता है। इस चिन्ह को बनाते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि इसे सटीक और सही तरीके से बनाया जाए ताकि इसकी पूर्ण सकारात्मक ऊर्जा का लाभ मिल सके। यह शुभ चिन्ह न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है बल्कि वास्तु दोषों को दूर करने में भी सहायक होता है।
अखंड ज्योत को नवरात्रि पूजन का एक अभिन्न अंग माना जाता है। वास्तु के अनुसार पूजा कक्ष की उत्तर-पूर्व दिशा में कलश के पास अखंड ज्योत जलाने से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बना रहता है। यह परमात्मा की उपस्थिति का प्रतीक मानी जाती है और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करती है। वहीं यदि आप कलश के पास अखंड ज्योत जला रहे हैं तो इसे कलश के दाहिनी ओर रखना चाहिए। सुनिश्चित करें कि इसे हमेशा ऐसे रखा जाए कि उसकी लौ बुझे न। इस ज्योत को पूरे नौ दिनों तक प्रज्वलित रखना चाहिए।
अगर आप नवरात्रि के दौरान घर में कलश की स्थापना कर रही हैं तो वास्तु के कुछ विशेष नियमों का पालन करना जरूरी होता है।
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