पंचांग के अनुसार, हर साल भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जाता है। इस साल यह पर्व 16 अगस्त को है। इस दिन भक्त उपवास रखते हैं और रात 12 बजे भगवान श्री कृष्ण के जन्म के बाद पूजा करके अपना व्रत खोलते हैं। इस दौरान भगवान श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप की पूजा का विधान है।
आपको बता दें कि ब्रज के गोकुल में कृष्ण जन्माष्टमी से एक दिन पहले ही उनकी छठी पूजा की जाती है, जबकि आमतौर पर छठी बच्चे के जन्म के बाद मनाई जाती है। इसके पीछे कुछ खास ज्योतिषीय और पौराणिक मान्यताएं जुड़ी हैं, जो यह बताती हैं कि गोकुल में कान्हा के जन्म से पहले उनकी छठी क्यों मनाई जाती है। आइये जानते हैं इस बारे में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ, तो वासुदेव जी ने उन्हें बारिश के बीच टोकरी में रखकर गोकुल में नंदजी के यहां छोड़ कर आए थे। जिसके बाद कंस कान्हा को मारने के लिए राक्षसी पूतना को आदेश दिया कि वह मथुरा और गोकुल के आस-पास रहने वाले उन सभी बच्चों को मार डाले। जिनका जन्म बीते 6 दिनों में हुआ हो। कंस के आदेश के अनुसार पूतना ने ऐसा किया।
जब मां यशोदा को यह बात पता चली, तो वह काफी डर गई और श्रीकृष्ण को पूतना से बचाने के बारे में सोचने लगी। इस बीच उन्हें यह भी याद नहीं रहा कि कान्हा जी की छठी भी पूजनी है, लेकिन लाख कोशिशों के बाद पूजना श्रीकृष्ण को उठाकर ले जाने लगी। लेकिन जब स्तनपान कराया तो उन्होंने इसे इतनी जोर से काटा कि पूतना की वहीं मृत्यु हो गई।
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पूतना को मारने के बाद श्री कृष्णने अपना बाल स्वरूप धारण किया। उन्होंने कई लीलाएं दिखाई और राक्षसों का संहार किया। जब वह एक साल के हुए, तो यहां मां यशोदा ने गोकुलवासियों को उनके जन्मदिन का न्योता दिया। लेकिन गोकुल की सभी बुजुर्ग महिलाओं ने माता यशोदा से कहा कि अभी तक कान्हा की छठी नहीं पूजी गई है। अब ऐसे में जन्मदिन कैसे मनाया जाएगा। इसके बाद बुजुर्गों और ब्राह्मणों ने सलाह दी कि कान्हा के जन्मदिन से एक दिन पहले उनकी छठी पूजी जाए। तभी जन्मदिन मनाया जा सकता है। कान्हा के जन्मदिन से एक दिन पहले छठी पूजी गई और फिर उनका जन्मदिन मनाया गया। गोकुल में यह परंपरा आज भी निभाई जा रही है।
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Image Credit- HerZindagi
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