पंचांग के अनुसार हर साल भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन जन्माष्टमी का पर्व विशेष रूप से मनाया जाता है। वहीं इस साल जन्माष्टमी का पर्व 26 अगस्त को मनाया जाएगा। इस दिन सभी भक्त व्रत रखते हैं और रात 12 बजे भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के बाद अपना व्रत पूजा-पाठ करने के साथ खोलते हैं। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप की पूजा करने का विधान है। आपको बता दें, ब्रज में गोकुल में कृष्ण जन्माष्टमी से पहले यानी कि भगवान श्रीकृष्ण के जन्म से एक दिन पहले उनकी छठी पूजा की जाती है। वैसे छठी बच्चे के जन्म के बाद ही पूजी जाती है। अब ऐसे में आखिर गोकुल में कान्हा के जन्म से पहले उनकी छठी क्यों पूजी जाती है। इसके बारे में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं।
गोकुल में जन्माष्टमी से पहले क्यों होती है कान्हा की छठी?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ, तो वासुदेव जी ने उन्हें बारिश के बीच टोकरी में रखकर गोकुल में नंदजी के यहां छोड़ कर आए थे। जिसके बाद कंस कान्हा को मारने के लिए राक्षसी पूतना को आदेश दिया कि वह मथुरा और गोकुल के आस-पास रहने वाले उन सभी बच्चों को मार डाले। जिनका जन्म बीते 6 दिनों में हुआ हो। कंस के आदेश के अनुसार पूतना ने ऐसा किया।
जब मां यशोदा को यह बात पता चली, तो वह काफी डर गई और श्रीकृष्ण को पूतना से बचाने के बारे में सोचने लगी। इस बीच उन्हें यह भी याद नहीं रहा कि कान्हा जी की छठी भी पूजनी है, लेकिन लाख कोशिशों के बाद पूजना श्रीकृष्ण को उठाकर ले जाने लगी। लेकिन जब स्तनपान कराया तो उन्होंने इसे इतनी जोर से काटा कि पूतना की वहीं मृत्यु हो गई।
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पूतना को मारने के बाद श्रीकृष्ण ने अपना बाल स्वरूप धारण किया। उन्होंने कई लीलाएं दिखाई और राक्षसों का संहार किया। जब वह एक साल के हुए, तो यहां मां यशोदा ने गोकुलवासियों को उनके जन्मदिन का न्योता दिया। लेकिन गोकुल की सभी बुजुर्ग महिलाओं ने माता यशोदा से कहा कि अभी तक कान्हा की छठी नहीं पूजी गई है। अब ऐसे में जन्मदिन कैसे मनाया जाएगा। इसके बाद बुजुर्गों और ब्राह्मणों ने सलाह दी कि कान्हा के जन्मदिन से एक दिन पहले उनकी छठी पूजी जाए। तभी जन्मदिन मनाया जा सकता है। कान्हा के जन्मदिन से एक दिन पहले छठी पूजी गई और फिर उनका जन्मदिन मनाया गया। गोकुल में यह परंपरा आज भी निभाई जा रही है।
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Image Credit- HerZindagi
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