भगवान जगन्नाथ, जिन्हें 'कलियुग के भगवान' के रूप में भी जाना जाता है, सनातन धर्म में एक अत्यंत महत्वपूर्ण और पूजनीय देवता हैं। भगवान जगन्नाथ की महिमा का सबसे बड़ा और जीता जागता प्रदर्शन रथ यात्रा है। यह वार्षिक उत्सव आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया को आयोजित होता है। इस दिन भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के विशाल रथों को लाखों भक्तों द्वारा खींचा जाता है।
यह यात्रा पुरी के मुख्य मंदिर से शुरू होकर गुंडिचा मंदिर तक जाती है, जिसे भगवान जगन्नाथ की मौसी का घर माना जाता है। आपको बता दें, जिस तरह भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा रहस्यमयी है। ठीक वैसी ही भगवान जगन्नाथ का मंदिर है। यहां कई ऐसी चीजे हैं। जो आज भी रहस्य से भरी हुई है।
अब ऐसे में आपमें कोई जानता है कि भगवान जगन्नाथ का श्रृंगार रात्रि में किया जाता है। आखिर इसका क्या रहस्या है। आइए इस लेख में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं।
भगवान जगन्नाथ का श्रृंगार रात में क्यों किया जाता है?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि भगवान जगन्नाथ दिनभर पुरी में अपने भक्तों को दर्शन देने और उनकी प्रार्थनाएं सुनने के बाद वह रात्रि में वृंदावन चले जाते हैं। वृंदावन में वे राधा रानी और गोपियों के साथ महारास और अन्य लीलाओं में भाग लेते हैं। इसीलिए, रात्रि में उनका अद्भुत श्रृंगार किया जाता है, ताकि वे वृंदावन में अपनी लीलाओं के लिए तैयार हो सकें। यह श्रृंगार उनके राजसी और अनुपम स्वरूप को और भी दिव्य बना देता है।
आपको बता दें, भगवान जगन्नाथ की आंखें बड़ी और खुली हुई होती हैं, उन पर पलकें नहीं होतीं हैं। इसके पीछे एक मान्यता यह है कि भगवान हमेशा अपने भक्तों को देखते रहते हैं, ताकि कोई भी भक्त भीड़भाड़ के कारण उनके दर्शन से वंचित न रह जाए। लेकिन जब रात होती है और ठाकुर जी के विश्राम का समय आता है, तब उन्हें पुष्पों से बनी पलकें लगाई जाती हैं और उनका विशेष श्रृंगार किया जाता है। यह श्रृंगार इस बात का प्रतीक है कि अब भगवान विश्राम करेंगे और उनके नेत्रों को भी आराम मिलेगा। यह उनके भक्तों के प्रति उनकी करुणा को भी दर्शाता है।
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भगवान जगन्नाथ का रात्रि में श्रीमुख श्रृंगार
रात के समय, जब मंदिर के पट बंद होने का समय आता है, तब भगवान का विश्राम से पूर्व विशेष श्रृंगार किया जाता है। यह श्रृंगार इस बात का प्रतीक है कि भगवान भी मनुष्य की भांति विश्राम करते हैं और अगले दिन के लिए तैयार होते हैं। श्रीमुख श्रृंगार की विधि अत्यंत गोपनीय और विशेष होती है।
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