भगवान परशुराम को तो सभी जानते हैं। वे जगत के पालन करने वाले भगवान विष्णु के छठे रूप माने जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि भगवान परशुराम ने इक्कीस बार सभी क्षत्रिय राजाओं को मारकर धरती को क्षत्रियों से खाली कर दिया था। यह बात पुराने ग्रंथों में भी लिखी है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान परशुराम ने ऐसा क्यों किया था। भगवान परशुराम ने इक्कीस बार क्षत्रियों का संहार क्यों किया, इसके पीछे एक दिलचस्प कहानी है। आइए, इस बारे में ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से जानते हैं।
क्यों भगवान परशुराम ने 21 बार क्षत्रियों को उतारा था मृत्यु के घाट?
महिष्मती नगर के राजा सहस्त्रार्जुन क्षत्रिय समाज के हैहय वंश के राजा कार्तवीर्य और रानी कौशिक के पुत्र थे। सहस्त्रार्जुन का असली नाम अर्जुन था। कहते हैं कि उन्होंने भगवान दत्तात्रेय की तपस्या करके उन्हें प्रसन्न किया और उनसे 10,000 हाथों का आशीर्वाद प्राप्त किया। इसी के बाद अर्जुन का नाम सहस्त्रार्जुन पड़ा।
कहते हैं कि महिष्मती का राजा सहस्त्रार्जुन अपने अहंकार में इतना अंधा हो गया था कि उसने धर्म के सभी नियम तोड़ दिए थे। उसके अत्याचारों से लोग बहुत दुखी थे। वह वेद, पुराण और धार्मिक ग्रंथों को गलत कहता था और ब्राह्मणों का निरादर करता था। उसने ऋषियों के आश्रमों को नष्ट कर दिया और बिना किसी वजह के उन्हें मार डाला।
यह भी पढ़ें:असुर होते हुए भी इन राक्षसों ने क्यों की थी भगवान विष्णु की पूजा?
वह अपनी प्रजा पर लगातार जुल्म करता रहा, यहां तक कि उसने अपने शौक के लिए शराब पीकर औरतों की इज्जत भी लूटना शुरू कर दिया था। एक बार ऐसे ही सहस्त्रार्जुन अपनी पूरी सेना के साथ जंगल से जा रहा था और जमदग्नि ऋषि के आश्रम में आराम करने के लिए ठहरा। महर्षि जमदग्नि ने भी सहस्त्रार्जुन को अपने आश्रम का मेहमान समझकर बहुत अच्छे से उसका स्वागत किया। कहते हैं कि ऋषि जमदग्नि के पास इंद्र देव से मिली हुई अनोखी शक्तियों वाली कामधेनु नाम की एक जादुई गाय थी।
जमदग्नि ऋषि ने कामधेनु गाय की मदद से पल भर में सहस्त्रार्जुन की पूरी सेना के लिए खाने का इंतजाम कर दिया। कामधेनु गाय की ऐसी गजब की ताकत देखकर सहस्त्रार्जुन के मन में उसे पाने की लालसा आ गई। उसने ऋषि जमदग्नि से कामधेनु को माँगा, लेकिन ऋषि ने यह कहकर उसे देने से मना कर दिया कि यही गाय उनके जीने का एकमात्र सहारा है। पर सहस्त्रार्जुन कहां मानने वाला था।
सहस्त्रार्जुन को बहुत गुस्सा आया और उसने ऋषि जमदग्नि के आश्रम को तोड़-फोड़ दिया। वह कामधेनु गाय को अपने साथ ले जाने लगा, लेकिन तभी कामधेनु उसके हाथों से छूट गई और स्वर्ग की ओर उड़ गई। जब भगवान परशुराम अपने आश्रम लौटे तो उन्होंने अपने आश्रम को बिखरा हुआ देखा और अपने माता-पिता के अपमान के बारे में सुना। यह सुनकर उन्हें बहुत क्रोध आया और उन्होंने उसी पल सहस्त्रार्जुन और उसकी सेना को खत्म करने का फैसला कर लिया।
परशुराम भगवान शिव से मिले हुए अपने महाशक्तिशाली फरसे को लेकर सहस्त्रार्जुन के नगर महिष्मती पहुंचे। वहां परशुराम और सहस्त्रार्जुन की सेना के बीच बहुत भयानक लड़ाई हुई। इस लड़ाई में परशुराम ने अपनी अपार ताकत से सहस्त्रार्जुन की हजारों भुजाएं और उसके शरीर को अपने फरसे से काटकर उसे मार डाला।
सहस्त्रार्जुन को मारने के बाद परशुराम अपने पिता ऋषि जमदग्नि के कहने पर अपने पाप धोने के लिए घूमने निकल गए। उसी समय का फायदा उठाकर सहस्त्रार्जुन के बेटों ने दूसरे क्षत्रिय राजाओं के साथ मिलकर तपस्या कर रहे ऋषि जमदग्नि का उनके ही आश्रम में सिर काट दिया। सहस्त्रार्जुन के बेटों ने आश्रम के सारे ऋषियों को भी मार डाला और आश्रम में आग लगा दी। तभी माता रेणुका ने मदद के लिए रोते हुए अपने बेटे परशुराम को बुलाया।
यह भी पढ़ें:भगवान विष्णु को 12 रुपए चढ़ाने से क्या होता है?
जब परशुराम अपनी मां की आवाज़ सुनकर आश्रम पहुंचे तो उन्होंने देखा कि उनकी मां रो रही हैं। पास ही उनके पिता का सिर कटा हुआ पड़ा था और उनके शरीर पर इक्कीस जख्म थे। यह देखकर परशुराम को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने कसम खाई कि वह सिर्फ हैहय वंश को ही नहीं, बल्कि सारे क्षत्रिय वंशों को इक्कीस बार मारकर इस धरती को क्षत्रियों से खाली कर देंगे। उन्होंने अपनी यह कसम सच में पूरी की थी, ऐसा पुरानी किताबों में भी लिखा है।
अगर हमारी स्टोरीज से जुड़े आपके कुछ सवाल हैं, तो वो आप हमें कमेंट बॉक्स में बता सकते हैं और अपना फीडबैक भी शेयर कर सकते हैं। हम आप तक सही जानकारी पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे। अगर आपको ये स्टोरी अच्छी लगी है, तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से।
image credit: herzindagi
HerZindagi ऐप के साथ पाएं हेल्थ, फिटनेस और ब्यूटी से जुड़ी हर जानकारी, सीधे आपके फोन पर! आज ही डाउनलोड करें और बनाएं अपनी जिंदगी को और बेहतर!
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों