Hariyali Teej 2024 Rituals: हरियाली तीज के दिन झूला झूलने का क्या है महत्व? जानें धार्मिक मान्यता

Hariyali Teej Par Kyon Jhulte hain Jhula: ज्योतिष के अनुसार, झूला झूलना हरियाली तीज का अहम हिस्सा है। क्योंकि यह प्रसन्नता का प्रतीक माना जाता है। आइए इसके महत्व को समझते हैं।

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हरियाली तीज का व्रत भारतीय संस्कृति में अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। वैदिक पंचांग के अनुसार, हर साल सावन माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरियाली तीज का पर्व मनाया जाता है। इस खास दिन पर भगवान शिव संग माता पार्वती की पूजा की जाती है। साथ ही, सुहागन महिलाएं वैवाहिक जीवन की खुशहाली पाने और अपने पति की लंबी आयु के लिए इस दिन व्रत भी रखती हैं। वहीं, कुंवारी कन्याएं भी ये व्रत अच्छा वर पाने की कामना करने के लिए रखती हैं। हरियाली तीज पर पूजा-पाठ के अलावा, झूला झूलने का भी विधान है। लेकिन क्या आपको ये पता है इसके पीछे का कारण क्या है? अगर नहीं जानते तो चलिए ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी जी से हरियाली तीज के दिन से जुड़ी परंपरा और धार्मिक मान्यता के बारे में जानते हैं।

हरियाली तीज का झूला झूलने से क्या संबंध?

Hariyali Teej  Rituals

हरियाली तीज खासतौर पर उत्तर भारत में मनाई जाती है। इसे प्रकृति के सौंदर्य के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं हरे कपड़े पहनकर और श्रृंगार करके एक साथ गीत गाती हैं और झूला झूलकर इस पर्व को बड़े धूमधाम से मनाती हैं। ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी के मुताबिक हरियाली तीज पर झूला झूलना काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह त्योहार प्रकृति के साथ समरसता और प्रसन्नता का प्रतीक माना जाता है। ऐसे में, झूला झूलने से महिलाओं को बेहद खुशी होती है, जो उनके व्रत को सफल बनाते हैं और सुख की कामना में भी सहायक होते हैं।

हरियाली तीज पर झूला झूलने का महत्व

What is the importance of swing on Hariyali Teej

ज्योतिषाचार्य के अनुसार, हरियाली तीज का व्रत और उत्सव दोनों ही बिना झूला झूले अधूरा माना जाता है। इस अवसर पर झूला झूलना न सिर्फ एक सांस्कृतिक परंपरा है, बल्कि इसका आध्यात्मिक महत्व भी है। झूला झूलने से महिलाओं के मन को शांति मिलती है। व्रत के दौरान ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलती है। इसलिए, हरियाली तीज पर झूला झूलना बेहद शुभ और महत्वपूर्ण माना जाता है।

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हरियाली तीज क्यों मनाई जाती है?

हरियाली तीज माता पार्वती और भगवान शिव से संबंधित है। इसकी पुष्टि एक कथा में भी की गई है। पौराणिक कथा के अनुसार देवी पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए 107 जन्म लिए और हर जन्म में उन्होंने कठिन तपस्या की थी। माता पार्वती की यह तपस्या भक्ति का प्रतीक माना जाता है। पार्वती अपने108वें जन्म में कठिन तपस्या से शिव को प्रसन्न किया और उन्हें पति के रूप में प्राप्त किया था।

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Image credit- Herzindagi

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