kya hota hai kutup kaal

Pitru Paksha Kutup Kaal Muhurat 2025: क्या होता है कुतुप काल? क्यों पितृपक्ष के दौरान सिर्फ यही मुहूर्त देखकर किया जाता है तर्पण और श्राद्ध

Kutup Kaal Muhurat 2025: गरुड़ पुराण से लेकर अन्य सभी पुराणों और ग्रंथों में कुतुप काल का वर्णन मिलता है। शास्त्रों में बताया गया है कि सिर्फ एक कुतुप काल ही है जिसमें श्राद्ध या तर्पण या पिंडदान आदि करने से पितृपक्ष के दौरान पितरों का आशीर्वाद बरसता है।
Editorial
Updated:- 2025-09-04, 15:35 IST

पितृपक्ष में पितरों को याद कर उनका श्राद्ध और तर्पण करने का विशेष महत्व है। 16 दिनों तक चलने वाले पितृपक्ष के दौरान पितरों के निमित्त श्राद्ध या तर्पण एक विशेष समय में करना सबसे ज्यादा शुभ माना जाता है जिसे कुतुप काल के नाम से जानते हैं। गरुड़ पुराण से लेकर अन्य सभी पुराणों और ग्रंथों में इस काल का वर्णन मिलता है। शास्त्रों में बताया गया है कि सिर्फ एक कुतुप काल ही है जिसमें श्राद्ध या तर्पण या पिंडदान आदि करने से पितृपक्ष के दौरान पितरों का आशीर्वाद बरसता है और आपके द्वारा की गई पूजा उन्हें स्वीकार होती है। ऐसे में ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से आइये जानते हैं कुतुप काल के महत्व के बारे में और पितृ पक्ष के दौरान किस दिन कब रहेगा ये मुहूर्त।

क्या होता है कुतुप काल?

कुतुप काल दिन के मध्य का समय होता है। यह दिन का आठवां मुहूर्त माना गया है। शास्त्रों में इस काल को अत्यंत पवित्र और पुण्यदायी बताया गया है। 'कुतुप' शब्द का अर्थ है पाप का शमन करने वाला और यह माना जाता है कि इस समय में किए गए कर्मों का फल सीधे पितरों तक पहुंचता है। यह मुहूर्त पितृपक्ष के 16 दिन ही सिर्फ पड़ता है।

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क्या है पितृपक्ष में कुतुप काल का महत्व?

ऐसा माना जाता है कि दिन के इस प्रहर में सूर्य की छाया पैरों पर पड़ने लगती है जो पितरों के लिए सबसे उपयुक्त समय होता है। इस समय पितर पृथ्वी पर अपने वंशजों को आशीर्वाद देने के लिए आते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कुतुप काल में की गई पूजा और तर्पण से उत्पन्न ऊर्जा सीधे पितरों तक पहुंचती है जिससे उनकी आत्मा को शांति और मुक्ति मिलती है।

significance of kutup kaal for pitru paksha

इस समय को श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान के लिए सबसे शुभ माना जाता है। ऐसा विश्वास है कि इस अवधि में किए गए सभी धार्मिक कार्य बिना किसी बाधा के पूर्ण होते हैं और उनका पूर्ण फल प्राप्त होता है। शास्त्रों में यह स्पष्ट रूप से बताया गया है कि श्राद्ध कर्म दोपहर के बाद ही करना चाहिए और कुतुप काल इस दोपहर के समय का सबसे महत्वपूर्ण भाग है।

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पितृपक्ष के 16 दिन का कुतुप काल मुहूर्त?

7 सितंबर से पितृपक्ष शुरू होंगे और 21 सितंबर तक चलेंगे। ऐसे में 16 दिन किस समय कब से कब तक कुतुप काल रहेगा, इसकी लिस्ट आप यहान से देख सकते हैं:

significance of kutup kaal for tarpan

  • 7 सितंबर, रविवार: 11:31 सुबह से 12:21 शाम
  • 8 सितंबर, सोमवार: 11:53 सुबह से 12:44 शाम
  • 9 सितंबर, मंगलवार: 11:53 सुबह से 12:43 शाम
  • 10 सितंबर, बुधवार: 11:53 सुबह से 12:43 शाम
  • 11 सितंबर, गुरुवार: 11:53 सुबह से 12:42 शाम
  • 12 सितंबर, शुक्रवार: 11:53 सुबह से 12:42 शाम
  • 13 सितंबर, शनिवार: 11:52 सुबह से 12:42 शाम
  • 14 सितंबर, रविवार: 11:52 सुबह से 12:41 शाम
  • 15 सितंबर, सोमवार: 11:52 सुबह से 12:41 शाम
  • 16 सितंबर, मंगलवार: 11:52 सुबह से 12:40 शाम
  • 17 सितंबर, बुधवार: 11:52 सुबह से 12:40 शाम
  • 18 सितंबर, गुरुवार: 11:51 सुबह से 12:40 शाम
  • 19 सितंबर, शुक्रवार: 11:51 सुबह से 12:40 शाम
  • 20 सितंबर, शनिवार: 11:27 सुबह से 12:15 शाम
  • 21 सितंबर, रविवार (सर्वपितृ अमावस्या): 11:26 सुबह से 12:15 शाम

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FAQ
पितृपक्ष के दौरान क्या दान करें?
पितृपक्ष के दौरान चावल, दाल, अनाज, गुड़, नमक, तिल, घी, वस्त्र, जूते-चप्पल, छाता, सोने-चांदी जैसी वस्तुओं का दान कर सकते हैं।
तर्पण के लिए किस दिशा में बैठना चाहिए?
तर्पण पूर्व या दक्षिण दिशा की ओर मुख करके किया जाना चाहिए।
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