हिंदू धर्म में पूजा-पाठ और रीति-रिवाजों का विशेष महत्व है और इनमें से एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है शिवलिंग की पूजा करना। यदि हम ज्योतिष की मानें तो शिवलिंग पर विभिन्न वस्तुओं को चढ़ाने की परंपरा है और कई ऐसी चीजें हैं जिन्हें शिव पूजन से दूर रखा जाता है। इन्हीं चीजों में से एक है हल्दी, ऐसा कहा जाता है कि हल्दी एक ऐसी सामग्री है जिसका संबंध सौंदर्य से होता है और इसी वजह से शिवलिंग ओर हल्दी न चढ़ाने की सलाह दी जाती है। ऐसा माना जाता है कि शिवलिंग पर हल्दी चढ़ाने से उनकी पूजा का पूर्ण फल नहीं मिलता। हल्दी को सभी हिंदू अनुष्ठानों में शुभ गुणों के लिए जाना जाता है, लेकिन भगवान शिव की पूजा में इसका उपयोग नहीं किया जाता है? इस सवाल का जबाव जानने के लिए हमने ज्योतिर्विद पंडित रमेश भोजराज द्विवेदी से बात की। आइए उनसे इसे बारे में जानें कि शिवलिंग पर हल्दी चढ़ाने से क्या होता है और इसके शुभ-अशुभ फल क्या हो सकते हैं।
हिंदू पूजा-पाठ में हल्दी का महत्व
हल्दी एक ऐसा पीला मसाला होता है जो अपने औषधीय, पवित्र करने वाले शुद्ध गुणों के लिए प्रचलित है। आमतौर पर यह पवित्रता, समृद्धि और उर्वरता का प्रतीक है और इसका उपयोग शादी-ब्याह के साथ किसी भी शुभ अवसर की शुरुआत के लिए किया जाता है।
विभिन्न पूजा-पाठ जैसे ग्रह शांति पूजा और भगवान विष्णु की पूजा में इसका मुख्य रूप से इस्तेमाल किया जाता है। वहीं कुछ धार्मिक कारणों से हल्दी का इस्तेमाल शिव पूजन में वर्जित होता है और हल्दी शिव जी से जुड़ी किसी भी पूजा में नहीं चढ़ाई जाती है।
शिवलिंग पर हल्दी चढ़ाने से क्या होता है
भगवान शिव, हिंदू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक हैं और उन्हें त्याग, तपस्या और बुराई का विनाश करने वाले देवता के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। आमतौर पर शिव जी को शरीर पर भस्म लगाए हुए देखा जाता है और यही माना जाता है कि उन्हें भौतिकता से कोई लगाव नहीं है।
शिव जी के शरीर में लगी हुई भस्म शरीर में अहंकार और सांसारिक लगाव के विनाश का प्रतीक है। वहीं भगवान शिव का निवास स्थान कैलाश पर्वत है, जो एक सुदूर और कठोर स्थान माना जाता है। यह स्थान दुनिया के भौतिक सुखों से बहुत दूर है। हल्दी को सौंदर्य का प्रतीक माना जाता है और उसे शिव जी को चढ़ाने से पूजन अधूरा माना जाता है।
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शिवलिंग पर हल्दी चढ़ाने की मनाही क्यों होती है
शिव जी की तपस्वी जीवन शैली है वहीं हल्दी, उर्वरता और समृद्धि के साथ अपने संबंधों के साथ, शिव की तपस्वी जीवन शैली के बिल्कुल विपरीत मानी जाती है। भगवान शिव का त्याग और सांसारिक इच्छाओं के प्रति आकर्षित न होने का स्वभाव ही उन्हें हल्दी से दूर रखता है।
हल्दी को भौतिक और पारिवारिक खुशियों का प्रतीक माना जाता है। इसी वजह से शिवलिंग पर हल्दी चढ़ाना उनके आध्यात्मिक व्यक्तित्व के साथ असंगत है। इसके साथ ही, भगवान शिव भौतिक संसार से परम वैराग्य का प्रतिनिधित्व करते हैं। शिवलिंग पर हल्दी चढ़ाना, जो जीवन और जीवंतता का प्रतीक है, उनके व्यक्तित्व के विपरीत होता है।
शिवलिंग पर हल्दी चढ़ाने के नकारात्मक प्रभाव
वैदिक ज्योतिष में कोई भी सामग्री किसी न किसी ग्रह से जुड़ी होती है। हल्दी का संबंध गुरु बृहस्पति से है, जो बुद्धि, ज्ञान और समृद्धि का ग्रह माना जाता है। हालांकि बृहस्पति की ऊर्जाएं लाभकारी हैं, लेकिन वो भगवान शिव की ऊर्जाओं के अनुरूप नहीं मानी जाती हैं। इसी वजह से शिवलिंग पर हल्दी चढ़ाने की मनाही होती है।
ऐसी मान्यता है कि बृहस्पति से संबंधित वस्तुएं जैसे हल्दी चढ़ाने से समृद्धि और वृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है। लेकिन शिव जी की ऊर्जाएं शनि और जीवन के परिवर्तनकारी पहलुओं जैसे मृत्यु, पुनर्जन्म और त्याग के साथ अधिक संरेखित हैं। इसी वजह से शिवलिंग पर हल्दी चढ़ाने से मना किया जाता है।
ग्रहों की ऊर्जाओं के बेमेल होने से पता चलता है कि भगवान शिव को हल्दी चढ़ाने से असंतुलन पैदा हो सकता है, क्योंकि बृहस्पति की विशाल ऊर्जा शिव के परिवर्तनकारी और त्यागपूर्ण स्वभाव के साथ मेल नहीं खाती है। इसी वजह से शिव जी को हल्दी चढ़ाने से मना किया जाता है।
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शिवलिंग पर हल्दी न चढ़ाने का मुख्य कारण
ज्योतिष के अनुसार हल्दी का उपयोग शिवलिंग पूजा में नहीं किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि शिवलिंग के दो भाग होते हैं। एक भाग भगवान शिव से जुड़ा होता है जबकि जलाधारी देवी पार्वती का प्रतिनिधित्व करती है। भगवान शिव से जुड़ा शिवलिंग का भाग पुरुषत्व का प्रतिनिधित्व करता है और हल्दी को महिलाओं के लिए एक सौंदर्य प्रसाधन उत्पाद माना जाता है।
परुष तत्व से जुड़े होने की वजह से शिवलिंग पर हल्दी चढ़ाना शुभ नहीं माना जाता है। लेकिन यदि आप माता पार्वती को हल्दी चढ़ाना चाहते हैं तो शिवलिंग की जलाधारी का संबंध महिलाओं से है और आप जलाधारी पर हल्दी चढ़ा सकते हैं।
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