मां के गर्भ-धारण करने से लेकर बच्चे के जन्म तक कई बातों का ध्यान रखा जाता है। शिशु के जन्म लेने के दौरान बनने वाले नक्षत्रों की दशा और स्थिति को लेकर ऐसा कहा जाता है कि इसका प्रभाव उनके जीवन पर पड़ता है। इसके अलावा जब किसी शिशु का जन्म मूल नक्षत्र में होता है तो अक्सर माता-पिता के मन में कई तरह की शंकाएं और चिंताएं उत्पन्न हो जाती हैं। भारतीय ज्योतिष में मूल नक्षत्र को कुछ विशेष प्रभावों वाला माना गया है। इन्हें लेकर ऐसी मान्यता है कि इसके कुछ नकारात्मक प्रभाव भी हो सकते हैं, जिनके लिए शांति पूजा या विशेष उपायों को अपनाकर इसे कम किया जा सकता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, 27 नक्षत्रों में से कुछ नक्षत्रों को गंडमूल नक्षत्र की श्रेणी में रखा गया है।
मूल नक्षत्र इनमें से एक है। इन नक्षत्रों में जन्म लेने वाले बच्चों के लिए मूल शांति पूजा करवाने का विधान है। इस पूजा का मुख्य उद्देश्य बच्चे और परिवार के जीवन पर संभावित प्रतिकूल प्रभावों को शांत करना और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करना है। चलिए पंडित उदित नारायण त्रिपाठी से जानते हैं कि अगर शिशु का जन्म मूल नक्षत्र में हुआ है, तो कौन से उपाय कर सकते हैं।
क्या है मूल नक्षत्र?
ज्योतिष के अनुसार, मूल नक्षत्र 27 नक्षत्रों में से एक है। इसे गंड मूल नक्षत्रों की श्रेणी में रखा जाता है। जब किसी शिशु का जन्म चंद्रमा के अश्विनी, मघा, मूल, आश्लेषा, ज्येष्ठा या रेवती नक्षत्र में होता है, तो उसे मूल नक्षत्र में जन्मा माना जाता है। ज्योतिष मान्यताओं के अनुसार, इन नक्षत्रों में जन्म लेने वाले शिशु के कारण परिवार, खासकर माता-पिता को कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। हालांकि, कई ज्योतिषी यह भी मानते हैं कि ऐसे बच्चे असाधारण प्रतिभा और दृढ़ इच्छाशक्ति वाले होते हैं। नकारात्मक प्रभावों को शांत करने के लिए मूल शांति पूजा जैसे उपाय किए जाते हैं।
बच्चों के लिए कब करें मूल शांति पूजा
यह मूल नक्षत्र के प्रभावों को शांत करने का सबसे मुख्य और प्रभावी उपाय माना जाता है। यह पूजा आमतौर पर शिशु के जन्म के 27वें दिन की जाती है। यह वह दिन होता है जब जन्म नक्षत्र (जिस नक्षत्र में शिशु का जन्म हुआ था) फिर से आता है। यदि 27वें दिन यह संभव न हो, तो किसी शुभ मुहूर्त में इसे कराया जा सकता है।
इस पूजा में विशेष रूप से 27 कुओं या नदियों के जल का उपयोग करके शिशु और माता-पिता को स्नान कराया जाता है। इसके साथ ही 27 प्रकार की औषधियों का प्रयोग, संबंधित नक्षत्र के देवी-देवताओं और ग्रहों की विशेष पूजा, हवन और मंत्रोच्चार किया जाता है। पंडित जी नवग्रहों की शांति के लिए भी अनुष्ठान करते हैं। यह पूजा नक्षत्र के कारण उत्पन्न होने वाली दोष को दूर करने और शिशु के जीवन में पॉजिटिव एनर्जी और सौभाग्य लाने के लिए की जाती है।
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संबंधित ग्रहों को दान
मूल नक्षत्र के अनुसार, कुछ विशेष ग्रहों का प्रभाव माना जाता है। उन ग्रहों की शांति के लिए दान-पुण्य करने की सलाह दी जाती है। इसमें अनाज जैसे उड़द दाल, मूंग दाल, वस्त्र, धातु या अन्य वस्तुएं शामिल हो सकती हैं, जो संबंधित ग्रह के अनुसार तय की जाती हैं। यह दान किसी योग्य ब्राह्मण या जरूरतमंद व्यक्ति को दिया जाता है। दान करने से ग्रहों के नकारात्मक प्रभाव को कम करने और शुभ फलों को बढ़ाने का एक तरीका माना जाता है।
नामकरण में सावधानी
ज्योतिष के अनुसार, शिशु का नामकरण करते समय मूल नक्षत्र के प्रभावों को संतुलित करने के लिए विशेष अक्षरों या ध्वनियों का प्रयोग करना चाहिए। शिशु के जन्म नक्षत्र, लग्न और ग्रहों की स्थिति के आधार पर ऐसे अक्षर या नाम का चयन करें, जो शिशु के लिए शुभ हों और नक्षत्र के प्रभाव को सकारात्मक दिशा दें। नाम शिशु के भाग्य और व्यक्तित्व पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।
सामान्य उपाय
मूल शांति पूजा के अतिरिक्त, आप कुछ सरल उपाय अपना सकती हैं। इसके लिए घर में नियमित रूप से छोटे हवन या पूजन अनुष्ठान कराना शुभ माना जाता है। गाय को चारा या गुड़ खिलाएं और यह दोषों को शांत करने में सहायक होता है। जरूरतमंदों को भोजन या दान दें। इसके अलावा संबंधित ग्रह या देवता के मंत्रों का जाप करें।
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