शीतला अष्टमी का यह पर्व माता शीतला को समर्पित है। माता शीतला को पार्वती का ही रूप माना गया है। हर साल चैत्र मास की अष्टमी तिथि के दिन यह व्रत रखा जाता है। शीतला माता को आरोग्य की देवी कहा गया है। शीतला माता को ठंडा यानी शीतल भोग अत्यंत प्रिय है, इसलिए लोग माता की पूजा में उन्हें बासी भोग चढ़ाते हैं। शीतला माता की पूजा का भोग सप्तमी तिथि को तैयार किया जाता है और पूजन एवं कथा के बाद व्रती इसका सेवन कर व्रत खोलता है। यह तो रही पूजा और भोग की बात, लेकिन क्या आपको पता है कि शीतला माता की पूजा इस कथा के बिना अधूरी है।
शीतला अष्टमी व्रत कथा के अनुसार एक बार जब माता शीतला को पृथ्वी भ्रमण की इच्छा हुई तो उन्होंने यह सोचा कि इस संसार में कौन-कौन उनती पूजा करता है, कौन-कौन उन्हें मानता है? यह जानने के लिए शीतला माता बुढ़िया का रूप धारण कर धरती पर आई। शीतला माता आस-पास देखने लगी कि कहीं मंदिर हो, लेकिन उन्हें न मंदिर मिली और न ही कोई उनका पूजा करते हुए दिखा। शीतला माता गलियों में घूम रही थीं कि तभी एक मकान से किसी ने चावल का उबला हुआ पानी बाहर फेंक दिया। चावल का पानी शीतला माता के ऊपर गिरा, जिससे माता के शरीर में छाले पड़ गए। चावल के पानी से जलने के कारण माता के शरीर में ताप और जलन होने लगा। शीतला माता जलन से चिल्लाने लगीं, अरे मैं जल गई, मुझे जलन हो रहा है, कोई मदद करो। लेकिन किसी ने माता की मदद नहीं की।
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वहीं एक कुम्हारन महिला घर के बाहर बैठी थी, उसने शीतला माता को जले हुए देखा। कुम्हारन को शीतला माता के ऊपर दया आई और उन्होंने उनपर खूब सारा ठंडा पानी डाला और कहा, हे मां रात की बनी हुई राबड़ी और दही है तू ये खा ले। बूढ़ी माई ने ठंडी ज्वार आटे की राबड़ी और दही खाई, जिससे उन्हें ठंडक मिली। भोजन देने के बाद महिला की नजर जब बूढ़ी माई के सिर पर पड़ी, तो कुम्हारन ने देखा कि एक आंख बालों के अंदर छुपी है। यह देख कुम्हारन डरकर भागने लगती है। तब बूढ़ी माई उससे कहती है, रुक जा बेटी, डर मत। मैं कोई भूत या चुड़ैल नहीं हूं। मैं शीतला देवी हूं, मैं यहां यह देखने आई थी कि कौन-कौन मुझे पूजता और मानता है। इतना कहते हुए चार भुजाओं वाली हीरे-जवाहरात के आभूषणों से सजी हुई माता अपने असली रूप में प्रकट हो जाती हैं।
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माता का दर्शन कर महिला सोचने लगती हैं, कि मैं तो गरीब हूं, इस माता को कहां बिठाऊं? वह माता से कहती है कि मेरे घर आपको बैठाने की जगह नहीं है मैं आपकी कैसे सेवा करूं? शीतला माता कुम्हार के सेवा भाव से प्रसन्न होकर उसके घर पर खड़े गधे के ऊपर जाकर बैठ गईं। माता अपने एक हाथ में झाड़ू और दूसरे हाथ में डलिया लेकर कुम्हारन के घर की दरिद्रता को झाड़कर डलिया में भरकर फेंक दिया, इसके अलावा उन्होंने वरदान मांगने को भी कहा। कुम्हारन हाथ जोड़कर माता से कहती है कि आप इसी गांव में स्थापित होकर रह जाइए। इसके अलावा कुम्हारन ने माता से कहा कि होली के बाद पड़ने वाली अष्टमी के दिन जो भी आपकी पूजा कर आपको ठंडा जल, दही और बासी भोजन अर्पित करेगा उसकी दरिद्रता दूर करो (पूजा विधि) ।
शीतला माता कुम्हारन को आशीर्वाद देती है और कहती है कि इस पृथ्वी पर उनकी पूजा का अधिकार सिर्फ कुम्हार जाति का होगा। माता कुम्हारन के गांव में स्थापित हो गई, माता अपने नाम की तरह शीतल हैं और अपने भक्तों के कष्ट को दूर करती हैं।
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Image Credit: Herzindagi
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