उत्तराखंड के हरिद्वार में एक जगह कनखल है, जिसे राजा दक्ष ने अपनी राजधानी बनाई थी। यह हिंदुओं का प्रसिद्ध तीर्थस्थल भी है। ऐसा माना जाता है कि सावन में भगवान शिव कैलाश पर्वत से उठकर कनखल आ जाते हैं और यहीं पर एक महीने तक निवास करते हैं। यहां स्थित काफी पुराना एक दक्षेश्वर महादेव मंदिर है, जो सालों से श्रद्धालुओं के आस्था का केंद्र बना हुआ है। सावन के महीने में हर दिन लाखों के तादात में श्रद्धालु आते हैं। हिंदू धर्म ग्रंथों के मुताबिक, भोलेनाथ के सावन महीने में अपने ससुराल कनखल निवास करने को लेकर एक कथा भी है। आइए इस बारे में विस्तार से जानते हैं।
राजा दक्ष ने किया भोलेनाथ का अपमान
मान्यता है कि राजा दक्ष ने कनखल में एक बड़े यज्ञ का आयोजन किया था। इसके लिए अपनी बेटी सती और भगवान शिव को यज्ञ में निमंत्रण नहीं दिया था। फिर भी माता सती अपने मायके कनखल गई थीं। यहां देवी-देवताओं और ऋषि मुनी आदि आमंत्रित थे, लेकिन पति भोलेनाथ के लिए कोई स्थान न देख माता सती को अच्छा नहीं लगा। तब पुत्री सती ने पिता से इसका कारण पूछा तो उन्होंने भगवान शिव के लिए बुरे शब्दों का इस्तेमाल किया।
भगवान शिव को आया क्रोध
पति शिव के लिए ऐसे शब्दों का उपयोग देख माता सती यज्ञ कुंड की धधकती अग्नि में कूद कर अपने प्राणों की आहूति दे दी। इसकी जानकारी मिलते ही भगवान शिव क्रोधित हो गए और उनकी क्रोधाग्नि से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। शिव ने क्रोध में वीरभद्र को प्रकट किया और बदला लेने के लिए कनखल भेज दिया। वीरभद्र वहां जाने के बाद राजा दक्ष के सिर काट कर धड़ से अलग कर दिया। इस घटना ने पूरी राजधानी कनखल में कोहराम मचा दी। फिर सभी देवी-देवता आग्रह करने के लिए भगवान शिव के पास गए और उनसे ब्रह्मांड को बचाने की प्रार्थना की। इसके बाद, भगवान शिव स्वयं अपने ससुराल कनखल आए और राजा दक्ष के शरीर पर बकरे का सिर लगाकर उन्हें पुनः जीवन दान दिया। इसके बाद, राजा दक्ष ने शिव का अपमान किए जाने पर उनसे क्षमा भी मांगी, तभी जाकर विध्वंस रुका।
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साल में एक महीने क्यों कनखल रहते हैं भोलेनाथ?
राजा दक्ष पुनर्जीवित होने के बाद उनकी पत्नी ने अपने दामाद भगवान शिव से अनुरोध किया कि वह श्रावण माह में एक महीना अपने ससुराल कनखल में ही वास करें। इसपर भगवान शिव ने अपनी सास के अनुरोध का सम्मान किया और उसे स्वीकार करते हुए भोलेनाथ एक महीने अपने ससुराल में ही रहें। तब से लेकर आज तक हर साल श्रावण माह में भगवान शिव अपने ससुराल कनखल में ही निवास करने लगे।
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ऐसे बना दक्षेश्वर महादेव मंदिर
राजा दक्ष को जीवन प्रदान करने के बाद भोलेनाथ शिवलिंग के रूप में कनखल में प्रकट हुए। उनका यही शिवालय आगे चलकर दक्षेश्वर महादेव के नाम से मशहूर हुआ। मान्यता है कि यह शिवलिंग ब्रह्मांड का पहला ऐसा स्वयंभू शिवलिंग है, जो भक्तों को अभय प्रदान करता है। कहते हैं सावन में कनखल के दक्षेश्वर महादेव मंदिर में जो भी भक्त इस शिवलिंग का गंगाजल से अभिषेक करके उनपर बेलपत्र, दूध, दही, शहद और पंचगव्य से पूजा अर्चन करते हैं, उनके सारे कष्ट दूर हो सकते हैं।
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