राधा रानी को प्रेम की सर्वोच्च देवी माना जाता है। उनका और कृष्ण का प्रेम अमर प्रेम का प्रतीक है। राधा कृष्ण के प्रति अटूट भक्ति का प्रतीक हैं। उनकी भक्ति भावना सभी भक्तों के लिए आदर्श है। शास्त्रों में राधा रानी को मूल प्रकृति यानी सर्वोच्च देवी के रूप में भी वर्णित किया गया है। राधा रानी को लक्ष्मी का अवतार भी माना जाता है। आपको बता दें, राधारानी सिर्फ एक देवी ही नहीं बल्कि प्रेम, भक्ति और आध्यात्मिक एकता का प्रतीक हैं। क्या आप जानते हैं कि श्री राधा रानी का अवतरण धरती पर क्यों हुआ था। आइए इस लेख में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं।
श्री राधा रानी का क्यों हुआ था धरती पर अवतरण?
बरसाना को राधा रानी का जन्मभूमि माना जाता है। स्कंद पुराण के हिसाब श्री राधा रानी भगवान श्रीकृष्ण की आत्मा हैं। इसी कारण श्रीकृष्ण को राधारमण भी बुलाया जाता है। वहीं पद्म पुराण में परमानंद रस को राधा-कृष्ण का युगल स्वरूप माना गया है। वहीं भविष्य पुराण और गर्ग संहिता के अनुसार द्वापर युग में जब भगवान श्रीकृष्ण धरती पर अवतरित हुए थे। वहीं भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष में महराज वृषभानु की पत्नी कीर्ति को श्री राधा पुत्री के रूप में मिली। तब से भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन राधाष्टमी मनाई जाती है।
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बेहद रोचक है श्री राधा रानी की अवतरण की कथा
ब्रह्मवैवर्त पुराण में श्री राधा रानी भगवान श्रीकृष्ण के साथ गोलेक में निवास करती थीं। एक बार देवी राधा गोलोक में नहीं थी। तब श्रीकृष्ण अपनी एक अन्य पत्नी विराजा के साथ थे। श्री राधा को इसके बारे में जैसे ही पता चला। वह गोलोक पास लौट आई। वह विरजा और कृष्ण को भला बुरा कहने लगी। वहीं राधा रानी को क्रोधित देखर विरजा नदी में में समाकर वहां से चली गई।
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कृष्ण को बुरा कहने पर मित्र सुदामा बेहद क्रोधित हुए। उन्होंने देवी राधा का अपमान कर दिया। जिससे देवी राधा और अधिक क्रोधित हो गईं और उन्होंने श्रीदामा को राक्षस कुल में जन्म लेने के लिए शाप दे दिया। वहीं श्रीदामा भी आवेश में आकर देवी राधा तो पृथ्वी पर मनुष्य रूप में जन्म लेने का श्राप दे दिया। इस श्राप के कारण श्रीदामा शंखचूड़ नामक असुर बना। देवी राधा को कीर्ति और वृषभानु जी के पुत्री के रूप में जन्म लेना पड़ा।
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Image Credit- HerZindagi
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