शारदीय नवरात्रि के आंठवें दिन यानी कि दुर्गाष्टमी तिथि पर मां महागौरी की पूजा की जाती है। अष्टमी तिथि के दिन मां महा गौरी को गुलाबी रंग के वस्त्र पहनाए जाते हैं। साथ ही, इस दिन मां महा गौरी को ब्रह्म कमल का फूल भी चढ़ाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि नवरात्रि की अष्टमी के दिन व्रत रख कन्या पूजन करने और मां महा गौरी की आराधना से व्यक्ति को आत्मिक एवं मानसिक बल की प्राप्ति होती है। वहीं, इस दिन मां की पूजा के बाद उनकी व्रत कथा को सुनना भी शुभ माना जाता है। ऐसे में ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से आइये जानते हैं मां महा गौरी की व्रत कथा के बारे में विस्तार से।
मां महागौरी की व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए घोर तपस्या की थी। 12 हजार वर्षों तक चलने वाली इस तपस्या के दौरान माता पार्वती ने सिर्फ बेलपत्र ही भोजन के रूप में ग्रहण किये थे।
जब भगवान शिव ने माता की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए तब माता का तप पूर्ण हुआ। भगवान शिव ने जब माता पार्वती को देखा तो वह प्रसन्न भी हुए और दुखी भी क्योंकि माता का तेज बहुत क्षीण हो गया था।
इसके बाद भगवान शिव ने माता पार्वती को कांति प्रदान की जिसके बाद माता पार्वती में दिव्य तेज उत्पन्न हुआ और माता का सौंदर्य देखने योग्य था। माता का इतना सुंदर स्वरूप महा गौरी के नाम से जाना जाने लगा।
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इस घटना के बाद से ही मां महागौरी की सौंदर्य की देवी के रूप में पूजा आरंभ हुई। ऐसी मान्यता है कि मां महा गौरी की पूजा से अपार सौंदर्य की प्राप्ति होती है और व्यक्ति के आतंरिक दोष दूर हो जाते हैं।
आप भी इस लेख में मां महा गौरी की व्रत कथा के बारे में जान सकते हैं। अगर हमारी स्टोरीज से जुड़े आपके कुछ सवाल हैं, तो वो आप हमें आर्टिकल के नीचे दिए कमेंट बॉक्स में बताएं। हम आप तक सही जानकारी पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे। अगर आपको ये स्टोरी अच्छी लगी है, तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से।
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