jaya ekadashi 2025 katha

Jaya Ekadashi Vrat Katha 2025: जय प्राप्ति के लिए जया एकादशी के दिन पढ़ें ये व्रत कथा

माना जाता है कि जहां एक ओर भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी के पूजन से घर में सुख-समृद्धि आती है तो वहीं, कैसी भी परिस्थिति में जीत हासिल करने के लिए अजय एकादशी के दिन व्रत कथा का श्रवण या पाठन अवश्य करना चाहिए। 
Editorial
Updated:- 2025-02-07, 23:00 IST

माघ माह के शुक्ल पक्ष की जया एकादशी इस साल 8 फरवरी को मनाई जाएगी। जया एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से जय की प्राप्ति होती है। इसके अलावा, इस दिन मां लक्ष्मी की आराधना करने का भी विधान है। माना जाता है कि जहां एक ओर भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी के पूजन से घर में सुख-समृद्धि आती है तो वहीं, कैसी भी परिस्थिति में जीत हासिल करने के लिए अजय एकादशी के दिन व्रत कथा का श्रवण या पाठन अवश्य करना चाहिए। आइये जानते हैं ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से जया एकादशी की व्रत कथा के बारे में विस्तार से।

जया एकादशी 2025 की व्रत कथा (Jaya Ekadashi 2025 Ki Vrat Katha)

jaya ekadashi ki katha

जया एकादशी की व्रत कथा के अनुसार, एक बार स्वर्ग के देवता इंद्र देव की सभा में उत्सव हो रहा था, जिसमें सभी देवता और संत उपस्थित थे। इस उत्सव के दौरान गंधर्व गीत गा रहे थे और गंधर्व कन्याएं नृत्य कर रही थीं। इन गंधर्वों में से एक गंधर्व था, जिसका नाम माल्यवान था, और वह बहुत मधुर गीत गाता था। वहीं, गंधर्व कन्याओं में एक रूपवान नृत्यांगना थी, जिसका नाम पुष्यवती था।

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जब इस उत्सव में पुष्यवती और माल्यवान की नजरें आपस में मिलीं, तो दोनों अपनी सुध-बुध खो बैठे। इस कारण वे अपनी लय और ताल से भटक गए। यह देखकर देवराज इंद्र क्रोधित हो गए और उन्होंने दोनों को स्वर्ग से वंचित कर पृथ्वी पर पिशाचों जैसा जीवन जीने का श्राप दे दिया। इंद्रदेव के श्राप के प्रभाव से वे दोनों प्रेत योनि को प्राप्त हुए और हिमालय के पर्वत पर एक वृक्ष पर रहते हुए कष्ट भोगने लगे।

jaya ekadashi ki vrat katha

पिशाच जीवन अत्यंत दुखदायी था, और वे दुखी रहते थे। एक दिन माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को उन दोनों ने सिर्फ फलाहार किया और रात में भगवान से प्रार्थना करते हुए अपनी भूल के लिए पश्चाताप किया। ठंड के कारण उनकी मृत्यु हो गई, लेकिन उन्होंने अनजाने में ही सही, जया एकादशी का व्रत पूरा किया था। इस व्रत के कारण उन्हें पिशाच योनि से मुक्ति मिल गई और वे फिर से स्वर्ग लोक को प्राप्त हुए।

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