सावन का महीना भगवान शिव को समर्पित है और इस महीने में किए गए हर व्रत और पूजा का विशेष फल मिलता है। जहां एक ओर सावन का महीना 9 अगस्त को पूर्णिमा तिथि के साथ समाप्त हो जाएगा तो वहीं, दूसरी ओर 6 अगस्त को सावन का आखिरी प्रदोष व्रत है। ऐसे में सावन के आखिरी प्रदोष व्रत के दिन शिव जी की पूजा के बाद ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स द्वारा बताई गई इस व्रत से जुड़ी कथा अवश्य पढ़ें। इससे पूजा का चौगुना फल आपको प्राप्त होगा।
सावन प्रदोष व्रत कथा
प्राचीन काल में एक गरीब ब्राह्मण था जो बहुत धर्म-परायण और शांत स्वभाव का था। उसकी एक पत्नी थी जो अपने पति के साथ मिलकर जीवन व्यतीत करती थी। वे दोनों बहुत गरीब थे, लेकिन भगवान शिव की भक्ति में लीन रहते थे। एक दिन, वे अपनी दिनचर्या के अनुसार जीवन जी रहे थे तभी एक राजकुमार घोड़े पर सवार होकर उनके पास आया। वह राजकुमार बहुत दुखी था क्योंकि उसके राज्य में बहुत परेशानियां थीं और उसके पिता की मृत्यु हो गई थी।
ब्राह्मण ने राजकुमार की हालत देखकर उससे पूछा, 'तुम इतने दुखी क्यों हो पुत्र? क्या हुआ है?' राजकुमार ने अपनी सारी कहानी बताई। ब्राह्मण ने उसे सावन के प्रदोष व्रत के बारे में बताया और कहा कि यह व्रत करने से तुम्हारी सारी परेशानियां दूर हो जाएंगी। उसने राजकुमार को बताया कि इस व्रत को करने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है।
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ब्राह्मण की सलाह पर राजकुमार ने विधि-विधान से सावन का आखिरी प्रदोष व्रत रखा। उसने भगवान शिव की पूजा की और प्रदोष काल में ध्यान किया। भगवान शिव उसकी भक्ति से बहुत प्रसन्न हुए और उसे दर्शन दिए। भगवान शिव ने राजकुमार से कहा, 'तुम्हारी भक्ति से मैं बहुत प्रसन्न हूं। मैं तुम्हारी सारी मनोकामनाएं पूरी करूंगा।' भगवान शिव के आशीर्वाद से राजकुमार के राज्य में समृद्धि लौट आई और उसके जीवन के सारे दुख समाप्त हो गए।
राजकुमार ने वापस आकर ब्राह्मण को धन्यवाद दिया और उसे अपने राज्य में उच्च पद दिया। इसके बाद ब्राह्मण भी अपनी पत्नी के साथ सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगा। इस कथा का सार यह है कि जो भी व्यक्ति सच्चे मन से प्रदोष व्रत करता है, उसे भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है और उसके जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। यह व्रत धन, सुख और शांति प्रदान करता है।
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