धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि देवशयनी एकादशी से भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं. इस दौरान सृष्टि का संचालन भगवान शिव करते हैं. चूंकि भगवान विष्णु सृष्टि के पालनकर्ता हैं, उनके शयन में जाने से पृथ्वी पर शुभ कार्यों की गति धीमी हो जाती है। यही कारण है कि चातुर्मास में कोई भी मांगलिक कार्य नहीं किए जाते, क्योंकि इन कार्यों के लिए भगवान विष्णु का आशीर्वाद आवश्यक माना जाता है. इस दिन व्रत रखने और भगवान विष्णु की पूजा करने से जाने-अनजाने में हुए पापों से मुक्ति मिलती है। यह तिथि आत्म-शुद्धि का एक महत्वपूर्ण अवसर है. भगवान विष्णु की कृपा से घर में सुख, शांति और समृद्धि आती है. परिवार में खुशहाली बनी रहती है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। अब ऐसे में देवशयनी एकादशी के दिन श्रीहरि की पूजा किस विधि से करने से लाभ हो सकता है। आइए इस लेख में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं।
देवशयनी एकादशी के दिन विष्णु की पूजा के लिए सामग्री
भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र
चौकी
लाल या पीला कपड़ा
जनेऊ
कपूर
मिट्टी का दीया और घी
धूप-धूपबत्ति
चंदन
अक्षत
कुमकुम
तुलसी के पत्ते
गेंदा के फूल या पीले फूल: भगवान को अर्पित करने के लिए (पीले फूल विशेष रूप से शुभ माने जाते हैं)।
आम के पत्ते
गंगा जल
पंचामृत
सूखे मेवे, फल, नारियल
मिठाई
देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु किस विधि से करें?
पूजा शुरू करने से पहले हाथ में जल, फूल और अक्षत लेकर व्रत या पूजा का संकल्प लें। मन ही मन भगवान विष्णु का ध्यान करें और अपनी मनोकामना बताएं।
भगवान विष्णु की प्रतिमा या तस्वीर को स्थापित करें। उन्हें आसन पर बिठाएं।
पूजा स्थल और पूजन सामग्री पर गंगाजल छिड़ककर शुद्ध करें।
भगवान विष्णु को चंदन या रोली का तिलक लगाएं।
उन्हें पीले फूल और फूलों की माला अर्पित करें। पीला रंग भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है।
यदि संभव हो, तो भगवान को पीतांबर वस्त्र और आभूषण अर्पित करें।
धूप जलाएं और दीपक प्रज्वलित करें। ध्यान रखें कि दीपक घी का हो।
भगवान विष्णु को तुलसी दल अर्पित करना बहुत शुभ माना जाता है। बिना तुलसी के भगवान विष्णु की पूजा अधूरी मानी जाती है।
भगवान को फल, मिठाई, पंजीरी या अपनी श्रद्धा अनुसार सात्विक नैवेद्य अर्पित करें। इस बात का ध्यान रखें कि नैवेद्य में तुलसी का पत्ता अवश्य हो।
पूजा के अंत में भगवान विष्णु की आरती करें। आरती करते समय कपूर का उपयोग करना शुभ होता है।
पूजा समाप्त होने के बाद, प्रसाद को स्वयं ग्रहण करें और परिवार के सदस्यों तथा अन्य लोगों में वितरित करें।
देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा के नियम
पूजा शुरू करने से पहले हाथ में जल, फूल और अक्षत लेकर व्रत और पूजा का संकल्प लें। मन में भगवान विष्णु का ध्यान करें और उनसे अपनी मनोकामना पूर्ति की प्रार्थना करें।
जो लोग देवशयनी एकादशी का व्रत रखते हैं, वे दिनभर अन्न ग्रहण नहीं करते। वे केवल फल, दूध और पानी का सेवन कर सकते हैं।
व्रत का पारण अगले दिन द्वादशी तिथि पर सूर्योदय के बाद ही करें।
देवशयनी एकादशी के दिन दान करने का विशेष महत्व है। अपनी सामर्थ्य अनुसार अन्न, वस्त्र या धन का दान करें।
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देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा का महत्व
देवशयनी एकादशी से चातुर्मास का आरंभ होता है, यानी अगले चार महीनों के लिए भगवान विष्णु क्षीरसागर में योगनिद्रा में चले जाते हैं. ऐसे में, इन चार महीनों में भगवान शिव और अन्य देवी-देवताओं की पूजा का महत्व बढ़ जाता है, लेकिन विष्णु जी की पूजा का विशेष फल मिलता है क्योंकि वे विश्राम कर रहे होते हैं। मान्यता है कि देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की सच्चे मन से पूजा करने और व्रत रखने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है. इस दिन की गई पूजा व्यक्ति को मृत्यु के बाद मोक्ष प्रदान करती है और जन्म-मृत्यु के चक्र से बाहर निकालती है।
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