Dakshineswar Kali Temple: दक्षिणेश्वर मंदिर से जुड़े ये रहस्य नहीं जानते होंगे आप

भारत को मंदिरों का देश कहा जाता है। क्यों कि हर जगह-जगह मंदिर ही मंदिर हैं। कुछ मंदिर रहस्यों से भरा हुआ है। आइए इस लेख में विस्तार से दक्षिणेश्वर मंदिर के बारे में जानते हैं।
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बंगाल, भारत का एक ऐसा राज्य है जो अपनी समृद्ध संस्कृति और धार्मिक विरासत के लिए जाना जाता है। यहां सदियों से बने हुए अनेक मंदिर हैं जो न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं बल्कि वास्तुकला के नमूने भी हैं। सभी मंदिरों में प्राचीन समय के अनुसार नियमित रूप में पूजा-अर्चना करने की मान्यता है। अब ऐसे में कुछ मंदिर ऐसे हैं, जो अपने दृश्य और वास्तुकला के अनुसार भक्तों को अकर्षित करते हैं। वहीं कुछ मंदिरें ऐसी है, जो अभी रहस्य बनें हुए हैं। आइए इस लेख में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से दक्षिणेश्वर मंदिर के रहस्य के बारे में जानते हैं।

क्या है दक्षिणेश्वर काली मंदिर बनने के पीछे की कहानी

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दक्षिणेश्वर काली मंदिर भारत के सबसे प्रसिद्ध और पवित्र मंदिरों में से एक है। यह मंदिर कोलकाता के पास हुगली नदी के तट पर स्थित है। इस मंदिर की स्थापना एक साधारण सी महिला, रानी रासमणि ने करवाई थी। उनके जीवन की एक घटना ने इस भव्य मंदिर के निर्माण का बीज बोया। रानी रासमणि को एक स्वप्न आया जिसमें माँ काली ने उन्हें दर्शन दिए और उन्हें एक मंदिर बनाने का आदेश दिया। रानी रासमणि इस स्वप्न से इतनी प्रभावित हुईं कि उन्होंने मां काली के इस आदेश को मानने का दृढ़ निश्चय कर लिया। उन्होंने अपनी समस्त संपत्ति और धन का उपयोग करके इस भव्य मंदिर का निर्माण करवाया। इसी मंदिर में रामकृष्ण परमहंस ने कई वर्षों तक तपस्या की और अपनी शिक्षाओं से लाखों लोगों को प्रेरित किया। मंदिर की वास्तुकला बंगाली शैली की है और यह बेहद भव्य और आकर्षक है।

इस मंदिर में श्रीकृष्ण की होती है खंडित प्रतिमा की पूजा

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धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, दक्षिणेश्वर मंदिर में आज भी भगवान श्रीकृष्ण के खंडित प्रतिमा की पूजा-अर्चना करने का विधान है। ऐसा कहा जाता है कि एक बात मंदिर बनकर तैयार किया गया था। फिर अगले दिन मंदिर में नंदोत्सव की धूमधाम थी। उस दौरान दोपहर के समय भगवान श्रीकृष्ण को उनके शयन कक्ष में ले जाते समय प्रतिमा धरती पर गिर गया। जिसके कारण प्रतिमा का पांव टूट गयाय़ सभी के लिए ये अमंगल माना जा रहा था। तभी रासमणी को परमहंस ने सुझाव दिया कि कि अगर घर के किसी सदस्य को चोट लग जाती है। वह विकलांग हो जाता है। तो उसे त्यागा नहीं जाता है, बलिक उनकी सेवा की जाती है। तभी तभी रासमणी को परमहंस का यह सुझाव बहुत पसंद आया और उन्होंने निश्चय किया कि भगवान श्रीकृष्ण के खंडित प्रतिमा की पूजा की जाएगी।

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Image Credit- HerZindagi

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