सनातन धर्म में आषाढ़ माह की पूजा का विशेष विधान है। ऐसी मान्यता है कि इस माह में भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं। इसलिए इस माह में भगवान शिव की पूजा करने का विधान है। अगर आप इस माह में भगवान शिव की पूजा कर रहे हैं तो विधिवत रूप से करने का विधान है। आपको बता दें, देवशयनी एकादशी के दिन से ही भगवान विष्णु शयन करने चले जाते हैं और इसी से मांगलिक कार्यों में रोक लगा दी जाती है। अब ऐसे में आषाढ़ महीने में अगर आप शिव पूजन कर रहे हैं तो किस मुहूर्त में करना शुभ माना जाता है और पूजा का नियम क्या है। इसके बारे में इस लेख में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं।
आषाढ़ माह में भगवान शिव की पूजा के लिए कई शुभ मुहूर्त होते हैं। खासकर मासिक शिवरात्रि और प्रदोष व्रत के दिन माना जाता है। आषाढ़ माह 12 जून 2025 को शुरू हुआ है और 10 जुलाई 2025 को समाप्त होगा। इसलिए इस दौरान भगवान शिव की पूजा सही मुहूर्त में करने का विधान है।
पूजा का शुभ मुहूर्त -
ब्रह्म मुहूर्त: प्रात- काल 04:10 से लेकर 04:58 मिनट तक
अभिजीत मुहूर्त- दोपहर में 12:02 से लेकर 12:55 मिनट तक
अमृत काल- दोपहर 01:06 से लेकर 02:33 मिनट तक
आषाढ़ माह चतुर्मास के आरंभ का प्रतीक होता है, जो भगवान विष्णु के शयन काल के रूप में जाना जाता है। इस दौरान सृष्टि का संचालन भगवान शिव करते हैं, इसलिए शिव जी की पूजा का विशेष महत्व होता है।
पूजा से पहले स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। मन और शरीर दोनों से पवित्रता बनाए रखें।
पूजा करते समय अपना मुख पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रखें।
आषाढ़ माह के सभी सोमवार भगवान शिव की पूजा के लिए अत्यंत शुभ माने जाते हैं। इस दिन व्रत रखने और शिव मंदिर जाकर पूजा करने से विशेष फल मिलता है।
भगवान शिव को अभिषेक अत्यंत प्रिय है। आषाढ़ माह में शिवलिंग पर विभिन्न द्रव्यों से अभिषेक करने का विशेष महत्व है। सामान्य जल से अभिषेक करने से मन को शांति मिलती है। गंगाजल से अभिषेक करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है। दूध से अभिषेक करने से संतान प्राप्ति होती है और रोग-दोष दूर होते हैं। दही से अभिषेक करने से आर्थिक समृद्धि आती है। घी से अभिषेक करने से स्वास्थ्य लाभ होता है और शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। शहद से अभिषेक करने से मधुर वाणी और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। गन्ने के रस से अभिषेक करने से धन-धान्य में वृद्धि होती है। दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल को मिलाकर पंचामृत से अभिषेक करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
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आषाढ़ माह से वर्षा ऋतु का आगमन होता है। भगवान शिव को प्रकृति और सृष्टि का नियंत्रक माना जाता है। जल और वर्षा सीधे तौर पर शिव से जुड़े हैं। जिस प्रकार शिव अपने जटाओं में गंगा को धारण करते हैं, उसी प्रकार वर्षा भी पृथ्वी पर जीवन का संचार करती है। आषाढ़ में शिव की पूजा करके भक्त अच्छी वर्षा और कृषि की समृद्धि की कामना करते हैं। आषाढ़ माह में भगवान शिव की विधि-विधान से पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। चाहे वह वैवाहिक जीवन से जुड़ी हो, संतान प्राप्ति की इच्छा हो, या धन-धान्य की कामना हो, शिव अपनी कृपा अवश्य बरसाते हैं।
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Image Credit- HerZindagi
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