अनंत चतुर्दशी का पर्व गणेश उत्सव के समापन का प्रतीक है। इस दिन भगवान गणेश की मूर्तियों का विसर्जन किया जाता है। माना जाता है कि भगवान गणेश अपने भक्तों के दुखों और परेशानियों को अपने साथ ले जाकर समुद्र या जल में विलीन कर देते हैं। इसके अलावा, अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु के अनंत रूप की भी पूजा होती है और व्रत रखा जाता है। इस दिन लोग अपने जीवन में सुख-समृद्धि और सुरक्षा के लिए 14 गांठों वाला एक धागा जिसे अनंत सूत्र कहते हैं, अपनी कलाई पर बांधते हैं जो भगवान विष्णु के अनंत आशीर्वाद का प्रतीक माना जाता है। ऐसे में वृंदावन के ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से आइये जानते हैं कि इस साल कब पड़ रही है अनंत चतुर्दशी। साथ ही, अनंत चतुर्दशी के दिन स्नान-दान, पूजा और दीप दान के शुभ मुहूर्त एवं महत्व के बारे में भी जानेंगे।
भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि का आरंभ 5 सितंबर, शुक्रवार के दिन रात 03 बजकर 12 मिनट पर होगा। वहीं, इसका समापन 6 सितंबर, शनिवार के दिन रात 01 बजकर 41 मिनट पर होगा। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, अनंत चतुर्दशी का व्रत 6 सितंबर को रखा जाएगा। इसी दिन भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा होगी।
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अनंत चतुर्दशी के दिन स्नान-दान का बहुत महत्व माना जाता है। ऐसे में 6 सितंबर को सुबह 07 बजकर 30 मिनट से सुबह 09 बजे तक का समय पवित्र नदी में स्नान और जरूरतमंदों में दान के लिए बहुत शुभ है।
अनंत चतुर्दशी के दिन 16 गांठों वाला रक्षा सूत्र बांधा जाता है। ऐसा में इस दिन अनंत सूत्र बांधने का शुभ मुहूर्त शाम 06 बजे से रात 07 बजकर 30 मिनट तक रहेगा। रक्षा सूत्र बांधने से बुरी ऊर्जा आपसे दूर रहेगी।
अनंत चतुर्दशी के दिन 14 दीपक जलाए जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि ये 14 दीपक जलाने से 14 रत्नों का सुख प्राप्त होता है। इस दिन दीप दान का शुभ मुहूर्त शाम 05 बजकर 32 मिनट से शाम 07 बजकर 08 मिनट रहेगा।
अनंत चतुर्दशी के दिन साध्य योग और शुभ योग का निर्माण भी हो रहा है। इसके अलावा, अभिजीत मुहूर्त और अमृत काल भी बन रहे हैं। ज्योतिष गणना के अनुसार, 6 सितंबर को शतभिषा नक्षत्र पूरे दिन बना रहेगा जिसे अत्यधिक शुभ माना जाता है।
अनंत चतुर्दशी का व्रत भगवान विष्णु के अनंत रूप को समर्पित है जिससे कुंडली में गुरु ग्रह मजबूत होते हैं। गुरु ग्रह को ज्ञान, धन, विवाह और संतान का कारक माना जाता है। इस व्रत को रखने से व्यक्ति को इन सभी क्षेत्रों में लाभ मिलता है। इसके अलावा, यह व्रत कालसर्प दोष और पितृ दोष जैसे अशुभ योगों के प्रभाव को कम करने में भी सहायक होता है।
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