दिवाली के त्योहार पर जब घर की सजावट की बात आती है तो घर की महिलाएं सबसे पहले घर के द्वार पर रंगबिरंगी रंगोली बनाकर घर को संवारना शुरू करती हैं। रंगोली से घर की रौनक में चार-चांद लग जाते हैं। रंगोली के रंग त्योहार के उत्साह को चौगना कर देते हैं। रंगोली से घर की खूबसूरती तो बढ़ती ही है साथ ही इससे रंगोली बनाने वाली महिला और उसके परिवार की सेहत भी दुरुस्त रहती है।
हिंदू धर्म में रंगोलों को धर्म अध्यात्म से जोड़ा जाता है। रंगोली शब्द की उत्पत्ति ‘रंगावली’ से हुई है। यह एक संस्कृत शब्द है और इसका अर्थ है रंगों की पंक्ति। देश के अलग-अलग राज्यों में इसे अलग-अलग नाम से पुकारा जाता है। कहीं इसे कोल्लम, अल्पना, मांडना कहा जाता है तो कहीं इसे चौक, संस्कार भारती और साथिया कहा जाता है। मगर, इसे बनाने का महत्व हर जगह दिखाई पड़ता है। ऐतिहासिक नज़रिये से देखें तो ऐसा माना जाता है कि भारत में रंगोली का आगमन मोहन जोदड़ो और हड़प्पा सभ्यता से जुड़ा है। इन दोनों सभ्यताओं में मांडी हुई अल्पना के निशान मिलते हैं। रंगोली एक संस्कृत का शब्द है, जिसका मतलब है रंगों के जरिये भावनाओं को अभिव्यक्त करना है।
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रंगोली बनाने से कई लोकप्रीय कथाएं जुड़ी। कुछ कथाओं के बारें में हम आपको बताते हैं।
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गौरतलब है कि बदलते वक्त के साथ-साथ रंगोली बनाने की इस लोक कला में भी काफी बदलाव आए हैं. मगर हकीकत यह है कि इसका महत्व आज भी बरकरार है।
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