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46 फीसदी लोग डिप्रेशन के मरीजोंं से बनाकर रखना चाहते हैं दूरी- सर्वे

डिप्रेशन एक चुप्पी की महामारी है। मतलब की जितना आप चुप रहेंगे उतना यह अधिक घातक होगी। शायद लोग अपने डिप्रेस होने की सच्चाई इसलिए भी छुपाते हैं क्योंकि 62 फीसदी लोग डिप्रेशन के मरीजों को गाली देते हैं। 
Her Zindagi Editorial
Updated:- 2018-07-04, 11:24 IST

डिप्रेशन एक चुप्पी की महामारी है। मतलब की जितना आप चुप रहेंगे उतना यह अधिक घातक होगी। शायद लोग अपने डिप्रेस होने की सच्चाई इसलिए भी छुपाते हैं क्योंकि 62 फीसदी लोग डिप्रेशन के मरीजों को गाली देते हैं। यह आंकड़ा हाल ही में किए गए एक सर्वे में निकल कर आया है। 

आज के जमाने में डिप्रेशन एक ऐसी बीमारी हो गई है जो महामारी का रुप लेने लगी है। हर दूसरा इंसान डिप्रेशन से घिरा हुआ है। हर किसी को मालूम है कि दीपिका पादुकोण भी डिप्रेशन का शिकार हो चुकी हैं और जिसके कारण वह इस बीमारी पर खुल कर बोलती हैं। उनका संगठन लिव-लव-लाफ फाउंडेशन डिप्रेशन के मामले में काम भी करता है। 

डिप्रेशन पर किया गया सर्वे

हाल ही में दीपिका पादुकोण ने एक सर्वे की रिपोर्ट जारी की है जिसे उनके संगठन ने कंडक्ट कराया था। यह सर्वे देश के मेंटल हेल्थ पर किया गया था। डिप्रेशन पर काम करने वाली उनकी संगठन लिव-लव-लाफ फाउंडेशन ने दिल्ली सहित देश के 9 बड़े शहरों में इस सर्वे के लिए अध्ययन किया था जिसमें 3 हजार 556 लोगों को शामिल किया गया था। 

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डिप्रेशन का सर्वे 

इस सर्वे में कई जरूरी बातें निकल कर आई हैं और इन आंकड़ों के द्वारा आप खुद भी अनुमान लगा सकते हैं कि क्यों डिप्रेशन हमारे देश में लाइलाज बीमारी बन जा रही है। इस सर्वे के अनसार 62 फीसदी लोग डिप्रेशन के मरीजों को गाली देते हैं और 46 फीसदी लोगों डिप्रेशन के मरीज से दूर रहना चाहते हैं। शायद ही इसी कारण लोग अपने डिप्रेशन के बीमारी के बारे में खुलकर बात नहीं करते हैं। 

वहीं 71 फीसदी लोग इस बीमारी को सोशल स्टिगमा मानते हैं और 41 फीसदी लोग डिप्रेशन को संक्रामक बीमारी मानते हैं।

नहीं है यह सोशल स्टिगमा 

कहीं ना कहीं ये आंकड़े डिप्रेशन की सच्चाई ही बयां करते हैं। क्योंकि हमारे समाज में डिप्रेशन को पागलपन से जोड़ लिया जाता है। जबकि लोगों को समझना चाहिए कि यह भी एक बीमारी है जिसका इलाज किया जा सकता है। 

केवल 12 फीसदी लोग करा पाते हैं इलाज

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डिप्रेशन एक ऐसी बीमारी है जिसके बारे में किसी को तब तक मालूम नहीं चलता जब तक की इसके लक्षण पूरी तरह से मरीज पर दिखने नहीं लगते। कई बार तो समझ में ही नहीं आता कि सामने वाला इंसान डिप्रेशन में है कि नहीं। क्योंकि डिप्रेशन में कई बार व्यक्ति काफी नॉर्मल और सबकी हां में हां मिलाकार बात करता है। ऐसे में पता लगाना मुश्किल हो जाता है कि सामने वाला इंसान डिप्रेशन में है कि नहीं। 

पिछले दिनों विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपनी रिपोर्ट पेश कर कहा था कि इंडिया में जिस तरह से बेरोजगारी और अन्य चीजों का प्रेशर बढ़ रहा है उसके अनुसार 20 फीसदी आबादी डिप्रेशन के दायरे में आ सकती है। वहीं केंद्र सरकार ने पिछले साल नैशनल मेंटल हेल्थ सर्वे किया था जिसके अनुसार देश में डिप्रेशन के कुल मरीजों में केवल 10 से 12 फीसदी लोग ही इलाज के लिए सामने आते हैं और इलाज करवाते हैं।

उम्मीद अब भी कायम

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इस सर्वे द्वारा कराया गया आंकड़ा भले ही हमें हताश करता हो लेकिन इसमें अब भी उम्मीद कायम है। क्योंकि इस सर्वे में कुछ उम्मीद दिखाने वाले बी आंकड़े निकल कर आए हैं। इस सर्वे के अनुसार 54 फीसदी लोगों ने माना कि डिप्रेशन के मरीज इाज करा कर पूरी तरह ठीक हो सकते हैं। वहीं 56 फीसदी लोग मरीजों को सहयोग देना चाहते हैं और 76 फीसदी लोग मरीजों के प्रति सहानुभूति रखते हैं। 

डिप्रेशन पर सलमान और दीपिका आमने-सामने

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पिछले दिनों डिप्रेशन पर सलमान खान और दीपिका पादुकोण भी आमने-सामने हो चुके हैँ। पिछले दिनों सलमान खान ने कहा था कि मेरे पास डिप्रेस होने की लग्‍जरी नहीं।

अब जब देश के सलमान भाई का ऐसा सोचना है तो बाद बाकी लोगों के बारे में अनुमान लगाया जा सकता है। इसी के जवाब में दीपिका पादुकोण ने पिछले दिनों एक इवेंट में कहा था कि कुछ लोगों को डिप्रेशन लग्‍जरी लगती है। इस गलत अवधारणा को तोड़ना होगा।

माना जा रहा है कि दीपिका का यह बयां सलमान खान को लेकर ही था। 

 

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