बिहार में ‘चमकी बुखार’का कहर ऐसा शुरू हुआ है कि वह थमने का नाम नहीं ले रहा है। इससे जुड़े मामले लगातार देखने को मिल रहे हैं। जी हां यम की नजर अभी बिहार के मुजफ्फपुर के मासूम बच्चों पर है और यह 1995 से ही है। ''जेकब जॉन और अरुण शाह के रिसर्च पेपर से पता चलता है कि मुजफ्फरपुर में होने वाली मौत का संबंध लीची, ग़रीबी और कुपोषण से है। इन्होंने 2012 में रिकॉर्ड देखा तो पता चला कि ज्यादातर बच्चों को सुबह के 6 से 7 बजे के बीच दौरे पड़ते हैं। लीची को सुबह 4 से 5 बजे तोड़ी जाता है। तोड़ने वाले गरीब मजदूर होते हैं। खाली पेट मजदूर मां बाप के साथ बच्चे भी पहुंच जाते हैं और लीची तोड़ते वक्त उसे खा लेते हैं। जब कुपोषित और खाली पेट वाला बच्चा लीची खाता है तो वह एक्यूट इंसेफेलाइटिस यानि चमकी बुखार की चपेट में आ जाता है।
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चमकी बुखार एक संक्रामक और जानलेवा बीमारी है। यह बीमारी वायरस, बैक्टीरिया और फंगस की वजह से फैलती है। चमकी बुखार से बिहार में अब तक 128 बच्चों की मौत हो चुकी है। चमकी बुखार को दिमागी बुखार ,जापानी बुखार, इंसेफेलाइटिस सिड्रोंम जैसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है। चमकी बुखार को एक खतरनाक बीमारी माना जाता है क्योंकि उपचार में थोड़ी सी लापरवाही से मरीज की जान भी जा सकती है। इसलिए आयुर्वेदिक एक्सपर्ट अबरार मुल्तानी जो समय-समय पर हमें बीमारियों से बचाव के आयुर्वेदिक उपाय बताते हैं। आज हमें चमकी बुखार के लक्षण, बचाव और कुछ आयुर्वेदिक नुस्खों के बारे में बता रहे हैं।
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