'अरे ये सब अब क्या कर रही है? अब ये सब अपने घर जाकर करना...' बोगनवेलिया का पौधा लगाती हुई सुनैना को मां की आवाज ने टोक दिया। सुनैना ने बॉटनी पढ़ी है और घर के बाग को ऐसे सजाया है जैसे परियों का बागान हो। हर रंग के पौधे, हर फूल, सब्जियां और ना जाने क्या-क्या। इतने सालो की मेहनत से सुनैना ने इस खूबसूरत बगिया को सजाया तो है, लेकिन मां का अचानक कह देना कि ये सब अपने घर जाकर करना उसे अच्छा नहीं लगा। अच्छा लगता भी क्यों? इतने सालों से इस घर को अपना घर जो मानकर चली है वो। सुनैना की शादी अब राहुल से तय हो गई है। राहुल बड़े घर का बेटा था और सुनैना के मां-पापा के लिए यही काफी था। दोनों की आपस में कोई बात भी नहीं हुई थी, लेकिन सुनैना की मां को लोग बार-बार बधाई दे रहे थे। यकीनन उनके लिए तो बधाई की ही बात थी। अपनी बेटी की शादी उन्होंने बड़े घर में तय कर दी थी।
सुनैना का घर उसका अपना नहीं रहने वाला था यह सोचकर ही वो उदास हो गई थी। उसके लिए तो यह बहुत दुख की बात थी। सुनैना को अपने जीवन साथी से ज्यादा कुछ नहीं चाहिए था। उसे तो बस जीवन में सुख चाहिए था, एक छोटा सा घर, एक बगीचा, एक ऐसा जीवनसाथी जो उससे प्यार करे और उसकी खूबसूरती को नहीं, बल्कि उसके मन को समझे। पर उसे हमेशा से यही सुनने को मिला था कि वह इतनी सुंदर है इसलिए उसे अच्छा पार्टनर ही मिलेगा। हमारे समाज की यही तो बुरी बात है, अगर लड़की सुंदर है, तो उसे अच्छा जीवनसाथी मिलेगा लोग यह सोच लेते हैं और अगर लड़की का रूप-रंग अच्छा नहीं, तो उसमें लाख गुण क्यों ना हों, बचपन से ही उसकी किस्मत को कोसना शुरू कर दिया जाता है।
सुनैना देखने में बेहद सुंदर थी, एक फैमिली फंक्शन में गई थी और वहां ही उसे राहुल की मां ने देख लिया था। मां-पापा ने भी ऐसे ही हां कर दी। सुनैना को एक बार राहुल से बात करनी थी। उसे भी एक बार यह जानना था कि वाकई राहुल भी उससे शादी करना चाहता है या नहीं। सुनैना के मन में हमेशा से एक ही डर था कि कहीं वो एक ट्रॉफी वाइफ बनकर ना रह जाए, पर वह अभी भी यह सोच रही थी कि शायद राहुल वैसा ना हो जैसा उसने सोचा है। शायद राहुल उसे समझे।
सुनैना और राहुल एक दूसरे से सगाई वाले दिन ही मिले। हरे रंग की साड़ी में सुनैना के नैना सपनों में खोए हुए थे। मन में एक उलझन जरूर थी कि कहीं राहुल उसकी इज्जत ना करे, तो क्या होगा, लेकिन फिर भी सुनैना ने अपने मन को मनाए रखा। जैसे ही राहुल आया उसे लगा कि मानो उसके सपने पूरे हो गए हैं। कद-काठी में राहुल रौबीला था और दिखने में सुनैना की टक्कर का। कम से कम जोड़ा तो अच्छा लग रहा था। सुनैना को अच्छा लगा, जैसे-तैसे सगाई की रस्म पूरी हुई। सुनैना राहुल से बात करना चाहती थी, लेकिन राहुल ने उसकी तरफ ध्यान ही नहीं दिया। पूरे फंक्शन में शायद गिनती के दो-चार शब्द ही बोले होंगे राहुल ने।
सुनैना ने राहुल का नंबर भी ले लिया और अगले दिन कई मैसेज किए, लेकिन राहुल का जवाब ना आया। रात में "कैसे हो, कहां हो, क्या बात कर सकते हो, तुम्हें क्या-क्या पसंद है...' जैसे सवालों के जवाब में राहुल ने लिखा था... 'बिजी हूं, गुड नाइट..' सारा दिन इंतजार करने के बाद ऐसा रूखा सा मैसेज देखकर सुनैना को अच्छा नहीं लगा। आखिर वो अपने होने वाले पति से बात ही करना चाहती थी। अगले 15 दिनों में शादी है दोनों की और दोनों को एक दूसरे के नाम के अलावा एक दूसरे के बारे में कुछ भी नहीं पता है। रोज का यही रूटीन था। सुनैना का मैसेज करना, कॉल करना और राहुल का जवाब ना देना। हालांकि, सुनैना की मम्मी और राहुल की मम्मी दोनों आपस में खूब बात करती थीं। दोनों ही अपने फैसले से खुश थीं, लेकिन जिनकी शादी करवाई जा रही थी, कोई उनसे तो पूछ लेता।
आखिर शादी का दिन भी आ ही गया। सुनैना लाल रंग के शादी के जोड़े में बेहद सुंदर लग रही थी। ना जाने कितने लोग उसकी बलाएं ले रहे थे, ना जाने कितने लोग उसकी तारीफ कर रहे थे, पर उसके मन में अभी भी एक अजीब सी कशमकश थी। आखिर क्यों राहुल उससे बात नहीं कर रहा। शादी के फेरे लेते समय राहुल ने कुछ ऐसा कह दिया जिससे सुनैना को बहुत बुरा लगा। पंडित जी वचन पढ़वाते समय थोड़ा हंसी-मजाक कर रहे थे, ऐसे में राहुल ने कहा, 'पंडित जी जल्दी शादी करवा दीजिए... इतना समय ना लीजिए...' सबको लगा कि राहुल को शादी की जल्दी है, सब हंसी-ठिठोली करने लगे, लेकिन सुनैना को लगा कि राहुल उसके बगल में जरा देर भी नहीं बैठना चाहता है।आखिर विदाई हुई, सुनैना मां-पापा के गले लगकर खूब रोई और फिर उसने पलट कर अपने घर और अपने बगीचे की ओर देखा, वो बगीचा जो देखने में एकदम से ही वीरान लगने लगा था। मानो उसने भी मान लिया हो कि सुनैना अब पराई हो गई है। ये उसका घर नहीं है।आखिर सुनैना नए घर में आ ही गई... सुंदर सा घर जैसे कोई महल, लेकिन बिल्कुल अकेला। सुनैना ने घर में कदम रखा और धीरे-धीरे इसे देखने लगी, तभी राहुल की कोई रिश्तेदार बोली.. 'ये घर तुम्हारे घर से थोड़ा बड़ा ही है। भाग खुल गए तुम्हारे तो, अब इस घर की बहु बन गई तुम...'
'बहु, तुम्हारे घर पर जो भी तुम्हें पसंद था, वो बता दो.. हम वैसा ही इंटीरियर यहां करवाने की कोशिश करेंगे।' सुनैना की सास ने कहा। वैसे तो उसकी सास उसके भले के लिए ही बोल रही थीं, लेकिन फिर भी पता नहीं क्यों सुनैना को अपने घर की तलाश थी। क्या शादी के बाद बेटी का कोई अपना घर नहीं होता?
आखिर रात होते-होते सुनैना और राहुल एक कमरे में आए। अब तो शादी हो चुकी थी, अब तो राहुल के साथ जिंदगी भर का साथ था, अब तो राहुल को सुनैना से बात करनी ही थी। सुनैना ने राहुल की तरफ देखा और कहा, 'क्या आज, हम दोनों एक दूसरे के बारे में थोड़ा जान सकते हैं?' भोलेपन में सुनैना ने ये कह तो दिया, लेकिन उसका रिएक्शन अच्छा नहीं था। 'तुम्हारे घर में इतना नहीं सिखाया गया, जब कोई बिजी हो, तो उसे डिस्टर्ब नहीं करते... मैं थका हुआ हूं और सोना चाहता हूं। आते ही बातें करने का शौक नहीं है मुझे।' राहुल ने बेरुखी से जवाब दिया और बस, मुंह फेरकर सो गया। 'तुम्हारा घर?' मां ने तो कहा था कि अब यही घर उसका अपना होगा, लेकिन यहां तो मां के घर को उसका घर बताया जा रहा है। हर कोई सुनैना को यही याद दिला रहा था कि ये उसका अपना घर नहीं था।
अगले दिन सुबह सुनैना ने जल्दी उठकर बगीचे की सैर करने का सोचा, एक पौधा बिल्कुल मुरझा रहा था, सुनैना ने माली से कहा कि इसकी मिट्टी खोदकर थोड़ा पानी दे दे। फिर खाद डाल दे.. सुनैना को बगीचा देखकर अच्छा नहीं लगा। कहने को माली उसकी देख-रेख करता था, लेकिन जिस हालत में वो था, सुनैना उससे बहुत कुछ कर सकती थी।
बगीचे की सैर करके वो घर के अंदर आई और रसोई घर में चली गई। आज अपने हाथों से उसने राहुल के लिए पराठे बनाए... उसने नाश्ते की टेबल पर सबसे लिए ये लगा दिए, लेकिन राहुल ने सुनैना से ऐसा कुछ कह दिया कि बेचारी नई बहू की सारी उम्मीदें टूट गईं। राहुल ने ऐसा क्या कहा सुनैना से? आखिर क्यों राहुल ऐसा व्यवहार कर रहा था? जानने के लिए पढ़ें कहानी का अगला भाग , घर की मालकिन- पार्ट 2।
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