हिंदू धर्म में भगवान श्रीकृष्ण और राधारानी की जोड़ी को प्रेम, भक्ति और सौंदर्य का सर्वोच्च प्रतीक माना गया है। यही वजह है कि ज्यादातर लोग अपने मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण और राधारानी की जोड़ी स्थापित करते हैं। राधा-कृष्ण की मूर्ति न सिर्फ घर के मंदिर की शोभा बढ़ाती हैं, बल्कि सकारात्मक ऊर्जा, सौहार्द और आध्यात्मिक शांति का संचार भी करती हैं। जब भी कोई भक्त अपने घर में मंदिर स्थापित करता है या नया मंदिर बनवाता है तो राधा-कृष्ण की सुंदर युगल जोड़ी स्थापित करने की इच्छा रखता है। लेकिन, क्या सिर्फ मूर्ति लाना ही पर्याप्त होता है? तो इसका जवाब है नहीं।
मान्यताओं के अनुसार, राधा-कृष्ण की जोड़ी अपने घर में लाना ही गहरी जिम्मेदारी और भक्ति का विषय है। अगर आप युगल जोड़ी घर लाने के बारे में सोच रही हैं, तो बता दें इसके साथ सेवा, नियम और पूजा-विधि भी जुड़ी होती है। जिनका पालन करना जरूरी माना जाता है। वरना मूर्ति स्थापित करने के बाद भी घर में सकारात्मक ऊर्जा और भगवान का आशीर्वाद नहीं मिल पाता, जिसकी कामना हर भक्त करता है। युगल जोड़ी की सेवा और पूजा विधि के बारे में हमें पंडित श्रीराधे श्याम मिश्रा ने बताया है।
राधा-कृष्ण की युगल जोड़ी घर लाने से पहले उनकी सेवा और पूजा विधि के बारे में जानना बहुत जरूरी है, क्योंकि यह साधारण नहीं बल्कि श्रद्धा और नियमों से जुड़ा होता है। आइए, यहां जानते हैं कि युगल जोड़ी की मूर्ति स्थापना की विधि से लेकर रोजाना की सेवा जुड़े नियमों के बारे में।
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आप जब भी युगल जोड़ी लेने के लिए जाएं तो सबसे पहले ऐसी मूर्ति देखें जिसमें राधारानी, भगवान कृष्ण की बाईं तरफ हों। इसके अलावा पीतल, कांस्य और काले पत्थर की मूर्तियां प्रचलित और शुभ मानी जाती हैं। युगल जोड़ी की स्थापना उत्तर या पूर्व दिशा की तरफ मुख करके ही स्थापित करें, ऐसा करना वास्तु के अनुसार शुभ माना जाता है।
राधा-कृष्ण की मूर्ति को घर में स्थापित करने से पहले शुभ मुहूर्त निकलवा लेने की सलाह दी जाती है। इसके अलावा आप चाहें तो गुरुवार, शुक्रवार या एकादशी-पूर्णिमा आदि पर भी युगल जोड़ी की स्थापना कर सकते हैं।
हालांकि, युगल जोड़ी की स्थापना करने से पहले मंदिर या पूजा स्थल की सफाई और शुद्धिकरण जरूर करें।
शाम के समय युगल जोड़ी को अगर आपने कोई जेवर या माला पहनाई है, तो उसे निकाल दें। जिस तरह से सोने से पहले आप जेवर और माला आदि निकाल देते हैं, उसी तरह राधा-कृष्ण की मूर्ति को भी साधारण वस्त्रादि पहनाएं।
इसके बाद उन्हें फल या दूध का भोग लगाएं। आप चाहें तो भजन या भगवान कृष्ण की लीलाओं का पाठ भी कर सकते हैं।
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