हिंदू धर्म में योगिनी एकादशी की पूजा का विशेष महत्व है। यह आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी है और इसे तीनों लोकों में प्रसिद्ध एकादशी माना गया है। ऐसी मान्यता है कि योगिनी एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति को समस्त पापों से मुक्ति मिलती है। यह व्रत पापों को शांत कर जीवन को सुखी बनाता है। यह एकादशी उन लोगों के लिए विशेष रूप से फलदायी मानी जाती है जो किसी श्राप या शाप से पीड़ित हैं। माना जाता है कि इस व्रत के प्रभाव से ऐसे श्रापों का निवारण होता है और व्यक्ति को शांति प्राप्त होती है। इसके अलावा, यह एकादशी शारीरिक कष्टों से मुक्ति दिलाने और अच्छे स्वास्थ्य का आशीर्वाद देने वाली भी मानी जाती है। आपको बता दें, यह व्रत रोग संहारक वाला माना जाता है। आइए इस लेख में इस एकादशी व्रत के बारे में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं।
योगिनी एकादशी को क्यों कहा जाता है रोग संहारक व्रत?
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, योगिनी एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। पापों का नाश होने से शारीरिक और मानसिक कष्टों से भी मुक्ति मिलती है, क्योंकि कई रोगों का कारण पूर्व जन्म के कर्म या पाप माने जाते हैं। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है। भगवान विष्णु को सृष्टि का पालनहार माना जाता है और उनकी कृपा से सभी प्रकार के दुख, कष्ट और रोग दूर होते हैं।
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योगिनी एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना और व्रत करने से उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है, जिससे आरोग्य का वरदान मिलता है। आपको बता दें, योगिनी एकादशी को रोग संहारक व्रत कहे जाने के पीछे एक कथा है। कहा जाता है कि स्वर्ग का एक माली हेममाली, जो भगवान शिव का भक्त था। वह अपनी पत्नी के वियोग में कोढ़ी हो गया था। तब नारद मुनि के कहने पर उसने योगिनी एकादशी का व्रत विधि-विधान से किया। इस व्रत के प्रभाव से हेममाली को न केवल कुष्ठ रोग से मुक्ति मिली, बल्कि उसे अपना सुंदर रूप वापस मिल गया और वह अपने परिवार व स्वामी के पास लौट सका।
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यह कथा बताता है कि योगिनी एकादशी का व्रत गंभीर से गंभीर शारीरिक रोगों का नाश करने की शक्ति रखता है। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत का पालन करने से 18 प्रकार के कुष्ठ रोग और शारीरिक व्याधियां दूर होती हैं।
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Image Credit- HerZindagi
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