हरतालिका तीज का पर्व हमारे देश में विधि-विधान के साथ मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं पति की दीर्घायु की कामना में निर्जला व्रत करती हैं और भगवान शिव के साथ माता पार्वती का पूजन करती हैं। यही नहीं इस दिन की पूजा विधि भी कुछ ख़ास होती है और मुख्य रूप से इस दिन पार्थिव शिवलिंग बनाकर पूजन करने का विधान है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन यदि घर पर मिट्टी के शिवलिंग का निर्माण किया जाए और उसी की पूजा की जाए तो सभी मनोकामनाओं की पूर्ति हो सकती है। यह पर्व हर साल भाद्रपक्ष माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। मुख्य रूप से यह सुहागिन महिलाओं का व्रत होता है। इस दिन सुहागिन महिलाएं अच्छे वैवाहिक जीवन और पति की लंबी उम्र की कामना के साथ व्रत करती हैं और कुंवारी लड़कियां अच्छे पति की चाह में व्रत-उपवास करती हैं। इस साल हरतालिका तीज का व्रत 26 अगस्त को रखा जाएगा। आइए ज्योतिर्विद पंडित रमेश भोजराज द्विवेदी से जानें हरतालिका तीज के दिन मिट्टी का शिवलिंग बनाने और उसकी पूजा करने का क्या महत्व है।
हरतालिका तीज का संबंध माता पार्वती की कठोर तपस्या से जुड़ा है। एक पौराणिक कथा के अनुसार, माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था। इसी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने माता पार्वती को अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया। ऐसा कहा जाता है कि माता पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकृति हरतालिका तीज के दिन ही मिली थी। इसी वजह से आज भी कुंवारी और विवाहित स्त्रियां आज भी माता-पार्वती और भगवान शिव की कृपा पाने के लिए हरतालिका व्रत करती हैं।
हरतालिका तीज पर मिट्टी का शिवलिंग बनाने की परंपरा अत्यंत प्राचीन है। प्राचीन समय से ही घर के आंगन या पूजा के स्थान पर मिट्टी का शिवलिंग बनाकर पूजन किया जाता है। उसके बाद इसी शिवलिंग की पूजा बड़े ही श्रद्धा भाव से की जाती है और इस पर बेल पत्र, धतूरा, शमी के पत्ते आदि चीजें चढ़ाई जाती हैं। आज भी ऐसा माना जाता है कि मिट्टी धरती का प्रतीक है और भगवान शिव स्वयं पंचतत्वों से बने हैं। इसलिए मिट्टी का शिवलिंग बनाकर हरतालिका तीज की पूजा विधि पूर्ण मानी जाती है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, माता सती के देह त्याग के बाद उनका पुनर्जन्म हिमवान और उनकी पत्नी मैना के घर हुआ। उस जन्म में वो माता पार्वती के रूप में प्रकट हुईं। बचपन से ही माता पार्वती का मन भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए एकाग्र था।
उन्होंने बहुत कम उम्र में कठोर तपस्या का संकल्प लिया, जिससे उनके माता-पिता गहरी चिंता में पड़ गए। जब उनसे विवाह के विषय में पूछा गया, तो उन्होंने स्पष्ट कह दिया कि वे केवल महादेव को ही अपना पति मानेंगी। अपनी सखी की सलाह पर माता पार्वती घने जंगल की एक गुफा में चली गईं और वहां निरंतर भगवान शिव की साधना करने लगीं। कठोर व्रत और तप के दौरान, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि, जब हस्त नक्षत्र का संयोग आया तब उस दिन पार्वती जी ने मिट्टी से शिवलिंग का निर्माण किया और उसकी विधिपूर्वक पूजा की। साथ ही उन्होंने रात्रि भर जागरण किया। उनकी इस अनन्य भक्ति और तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार कर लिया। उसी समय से हरतालिका तीज पर मिट्टी का शिवलिंग बनाकर उसकी पूजा करने और व्रत रखने की परंपरा आरंभ हुई, जिसे आज भी श्रद्धा और भक्ति भाव से निभाया जाता है।
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ऐसा माना जाता है क़ि हरतालिका तीज के दिन विधि पूर्वक पूजा का हिस्सा मिट्टी का शिवलिंग बनाना है। आपको यह स्टोरी अच्छी लगी हो तो इसे फेसबुक पर शेयर और लाइक जरूर करें। इसी तरह और भी आर्टिकल पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी से। अपने विचार हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।
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