हिन्दू धर्म में गंगा नदी को न सिर्फ पूजनीय माना जाता है बल्कि मां का स्थान भी प्राप्त है। गंगा को लेकर ऐसा माना जाता है कि इसमें स्नान करने वाले व्यक्ति को पापों से छुटकारा मिल जाता है और उसके पुण्यों में बढ़ोतरी होती है। गंगा नदी से जुड़ी कई और भी मान्यताएं हैं जैसे कि घर में गंगाजल रखने से नकारात्मक ऊर्जा घर में प्रवेश नहीं कर पाती है।
यही कारण है कि जहां एक ओर गंगा स्नान को महत्वपूर्ण माना गया है वहीं, घर में गंगाजल रखना भी विशेष रूप से लाभकारी माना जाता है। गंगा नदी से जुड़ी ऐसी ही मान्यताओं के बीच ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स ने हमें बताया कि काशी उर्फ वाराणसी में गंगा उल्टी बहती है और उसके पीछे का रहस्य भी रोचक है। आइये जानते हैं इस अबरे में विस्तार से।
काशी में कहां बहती है उल्टी गंगा?
काशी उर्फ वाराणसी में डेढ़ किलोमीटर तक गंगा का बहाव उल्टा है। वाराणसी में स्थित मणिकर्णिका घाट से तुलसी घाट तक गंगा उल्टी बहती है। इन दोनों घाटों के बीच लगभग 45 घाट और भी पड़ते हैं। यानी कि मणिकर्णिका घाट से तुलसी घाट इस डेढ़ किलोमीटर के दायरे में गंगा का बहाव आधे से एक 1 घंटे तक उल्टा रहता है।
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काशी में उल्टी गंगा बहने का क्या है भौगोलिक कारण?
भूगोल के अनुसार, काशी में गंगा दक्षिण से उत्तर की ओर बहती है, लेकिन जब गंगा नगर में प्रवेश करती है तब उसका बहाव धनुष के आकार का हो जाता है। इसके कारण गंगा दक्षिण से आकर पहले पूर्व दिशा की ओर मुड़ती है और फिर पूर्वोत्तर की ओर। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उस स्थान की बनावट घुमावदार है जिसकी वजह से भंवर बनता है।
जब गंगा में पानी ज्यादा हो जाता है, तब दशाश्वमेध घाट के पास की जमीन के ज्यादा घुमावदार होने के कारण गंगा में भंवर बनने लगता है और फिर कुछ लहरें उल्टी लौटने लगती हैं। गंगा का वेग इतना तेज होता है कि भंवर से टकराने के बाद गंगा की लहरें डेढ़ किलोमीटर उल्टी बहती चली जाती हैं। हालांकि यह कुछ समय के लिए ही होता है।
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काशी में उल्टी गंगा बहने का क्या है धार्मिक कारण?
पौराणिक कथा के अनुसार, जब गंगा स्वर्ग से पृथ्वी आईं तब वह अपने पूर्ण वेग के साथ पृथ्वी के हर एक स्थान पर जा रही थीं ताकि पृथ्वी पर आया अकाल का संकट दूर हो सके। वहीं, वाराणसी के घाट पर भगवान दत्तात्रेय तपस्या कर रहे थे। जब गंगा वहां से गुजरीं तो अपने साथ उनके कमण्डल और कुशा आसन को साथ बहा ले गईं।
डेढ़ किलोमीटर आगे आ जाने के बाद मां गंगा को इस बाद का आभास हुआ कि वह भगवान दत्तात्रेय का कमंडल और कुशा आसन अपने साथ बहा लाइ हैं। इसके बाद मां गंगा फिर से उल्टी लौटकर भगवान दत्तात्रेय के पास पहुंची और उन्हें उनकी वस्तुएं वापस करके क्षमा मांगी। जब भगवान दत्तात्रेय ने उन्हें क्षमा कर दिया तब मां गंगा पुनः सामान्य रूप से बहने लगीं।
आप भी इस लेख में दी गई जानकारी के माध्यम से यह जान सकते हैं कि आखिर काशी उर्फ वाराणसी के किस हिस्से में उल्टी बहती है गंगा और क्या है इसके पीछे का कारण। अगर हमारी स्टोरीज से जुड़े आपके कुछ सवाल हैं, तो वो आप हमें आर्टिकल के नीचे दिए कमेंट बॉक्स में बताएं। हम आप तक सही जानकारी पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे। अगर आपको ये स्टोरी अच्छी लगी है, तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से।
image credit: herzindagi
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