भद्रा कौन हैं और इन्हें क्यों माना जाता है अशुभ?

भद्रा हिंदू पंचांग में एक ऐसा मुहूर्त है जिसे अशुभ माना जाता है। इस दौरान कोई भी शुभ कार्य शुरू करना वर्जित होता है। आइए इस लेख में भद्रा के बारे में विस्तार से जानते हैं। 

Why Bhadra is considered inauspicious ()

सनातन धर्म में कोई भी पूजा-अनुष्ठान या फिर मांगलिक कार्य शुभ मुहूर्त को देखकर ही किए जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि शुभ मुहूर्त में किया गया कार्य अवश्य सफल होता है और सभी देवताओं का आशीर्वाद भी प्राप्ति होता है। पंचांग में कुछ अशुभ मुहूर्त भी होता है। जिसमें शुभ कार्य करने की मनाही होती है। इसमें सबसे पहला नाम भद्रा का आता है। भद्रा काल को अशुभ माना गया है और इस दौरान किसी भी प्रकार के शुभ कार्य करने की मनाही होती है। वहीं सबसे महत्वरूपूर्ण बात है कि रक्षाबंधन के दिन भाई को भद्रा काल में राखी बांधने की मनाही होती है। अब ऐसे में भद्रा कौन हैं और इन्हें शुभ क्यों माना जाता है। इसके बारे में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं।

भद्रा कौन हैं?

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धार्मिक पुराणों के अनुसार भद्रा काल सूर्यदेव और शनिदेव से गहरा नाता माना गया है। भद्रा भगवान सूर्य की पुत्री और शनिदेव की बहन है। भद्रा को स्वभाव से बेहद कठोर माना गया है और भद्रा का स्वाभव भा उथल-पुथल करना वाला होता है। वैदिक पंचांग के अनुसार भद्रा को काल गणना में विशेष माना गया है। इनके कठोर स्वभाव के कारण शुभ और मांगलिक कार्य हमेशआ भद्रा से पहले या बाद में करने की सलाह दी जाती है।

भद्रा को अशुभ क्यों माना जाता है?

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वैदिक पंचांग के हिसाब से भद्रा को अशुभ माना गया है। भद्रा काल में कोई भी शुभ और मांगलिक कार्य करना शुभ नहीं माना जाता है। पुराणों के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि भद्रा के कठोर स्वभाव को नियंत्रित करने के लिए ब्रह्मा जी ने उन्हें कालगणना या पंचांग के एक प्रमुख अंग विष्टी करण में स्थान दिया।

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भद्रा कई अलग-अलग स्थानों पर होती हैं। जब भद्रा मुख में होती है, तो कार्य का नाश होने लग जाता है। अगर भद्रा कंठ में बैठी हो, तो धन का नाश होता है। वहीं अगर भद्रा हृदय में बैठी हों, तो प्राण का नाश होता है, लेकिन अगर भद्रा पुच्छ में है, तो उस दौन किए गए कार्यों में सफलता मिलता है। ऐसे में शुभ कार्य करने से पहले भद्रा काल के साथ ही भद्रा का स्थान भी देखा जाता है।

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Image Credit- HerZindagi

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