भगवान जगन्नाथ की महिमा और उनके मंदिर से जुड़े रहस्य बहुत मनोरम और दिव्य माने जाते हैं। वहीं, जब भगवान जगन्नाथ मंदिर से बाहर आते हैं और यात्रा निकलती है तब तो मानों मनुष्यों के अलावा साक्षात देवी-देवताओं का वास पूरी में स्थापित होने लगता है। इसलिए जगन्नाथ रथ यात्रा को धार्मिक पर्वों का सबसे बड़ा केंद्र माना जाता है। एक ओर जहां जगन्नाथ रथ यात्रा आस्था का सैलाब लेकर आती है तो वहीं, इस यात्रा से जुड़े कई ऐसे रोचक तथ्य हैं जिनके बारे में जानना व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति को बढ़ाता है।
इसी कड़ी में ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स ने हमें जगन्नाथ रथ यात्रा के आरे में बताते हुए हमसे यह प्रश्न किया कि जिस प्रकार रथ का एक सारथी होता है ठीक ऐसे ही भगवान जगन्नाथ के रथ का सारथी कौन है यानी कि भगवान जगन्नाथ का रथ कौन चलाता है और भगवान जगन्नाथ के रथ की रस्सी का क्या नाम है। हमें तो इस प्रश्न का उत्तर नहीं पता था, लेकिन हमारे एक्सपर्ट के माध्यम से हम आपको इस बारे में जानकारी अवश्य देंगे।
भगवान जगन्नाथ के रथ को यात्रा के दौरान दारुक खींचते हैं यानी कि भगवान जगन्नाथ के सारथी दारुक हैं। भगवान जगन्नाथ के रथ को खींचने वाली रस्सी का नाम शंखचूढ़ है। यह रस्सी एक राक्षस की रीढ़ की हड्डी से बनी है।
शंखचूढ़ का वध जब भगवान शिव के द्वारा हुआ था तब भगवान विष्णु की भक्ति के कारण उसे भगवान के रथ की रस्सी बनने का अवसर प्राप्त हुआ। जगन्नाथ भगवान के रथ की रस्सी को खींचना दोषों से मुक्ति का प्रतीक है।
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भगवान बलभद्र के रथ की रस्सी का नाम वासुकी है यानी कि भगवान शिव के गले में स्थापित वासुकी नाग जो भगवान बलभद्र के मूल स्वरूप यानी कि शेषनाग के भाई हैं।
भाई के प्रति प्रेम और समर्पण के कारण वासुकी बलभद्र जी के रथ की रस्सी बने और इसी बात का प्रतीक भी मानी जाती है यह रस्सी। बलभद्र भगवान की रस्सी को खींचने से सौभाग्य जागता है, पारिवारिक रिश्तों का सुख मिलता है और भगवान का सानिध्य प्राप्त होता है।
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देवी सुभद्रा के रथ की रस्सी का नाम स्वर्णचूढ़ है। यह रस्सी माया और मोह को दर्शाती है। देवी सुभद्रा की रस्सी इस बात का प्रतीक है कि मनुष्य माया और मोह में होने के कारण ही सांसारिक रिश्तों को निभा पाता है और अपने कर्मों का निर्वाहन कर पाता है। वहीं, अगर इस रस्सी को भक्ति से खींचा जाए तो यह आपको भगवान के समीप ले जाती है और उनका साक्षातकार करवाती है।
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