भगवान जगन्नाथ से जुड़े कई ऐसे रहस्य हैं जो किसी अबूझ पहेली से कम नहीं है। वहीं, भगवान जगन्नाथ की लीलाओं से जुड़ी कई ऐसी घटनाएं हैं जिनके साक्ष्य आज भी मिलते हैं। ठीक ऐसे ही आज हम बात करेंगे भगवान जगनाथ के भोग के बारे में। भगवान जगन्नाथ को 56 भोग लगाया जाता है जो पूर्ण रूप से सात्विक आहार होता है। हमारे शास्त्रों में भी यही कहा गया है कि भगवान को हमेशा सात्विक आहार ही भोग में अर्पित करना चाहिए, लेकिन हैरानी की बात यह है कि जगन्नाथ भगवान को 56 भोग के अलावा मछली भी चढ़ाई जाती है। ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से आइये जानते हैं कि आखिर क्यों भगवान जगन्नाथ को मछली का भोग लगता है।
भगवान जगन्नाथ जी को क्यों चढ़ती है मछली?
भगवान जगन्नाथ को मछली का भोग लगने की बात सुनकर कई लोग आश्चर्यचकित हो सकते हैं, क्योंकि आमतौर पर भगवान को शुद्ध शाकाहारी भोग ही लगाया जाता है। हालांकि, जगन्नाथ पुरी मंदिर में भगवान को मछली का भोग नहीं लगता है।
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार एक मछुआरिन बड़े ही श्रद्धा भाव से भगवान जगन्नाथ के दर्शनों के लिए अपने घर से निकली, लेकिन रास्ते में उसे याद आया कि भगवान को भेंट देने के लिए उसने कुछ लिया ही नहीं तो उसने रास्ते से एक मछली खरीद ली।
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मछुआरिन बड़े भाव से जगन्नाथ जी के दर्शनों के लिए पहुंची और मंदिर के गर्भ गृह में प्रवेश करने ही जा रही थी कि तभी मंदिर के पुजारियों ने उसे रोक दिया, उन्हें मछली की बदबू आ रही थी और जब उन्होंने मछुआरिन की झोली में देखा तो मछली रखी हुई थी।
पुजारियों ने मछुआरिन को मंदिर में आने से रोक दिया जिसके बाद मछुआरिन घर लौट गई, लेकिन बहुत दुखी होकर रोने लगी। तभी भगवान जगन्नाथ प्रकट हुए और भक्त की भक्ति से प्रसन्न होकर मछुआरिन द्वारा दी गई मछली को स्वीकार कर लिया।
हालांकि, सत्य यह है कि भगवान जगन्नाथ ने उस मछली को खाया नहीं था बल्कि अपने भीतर अपनी ऊर्जा में समाहित कर लिया था। मगर लोगों के बीच यह भ्रांति फैली हुई है कि भगवान जगनाथ को मछली का भोग लगता है, जबकि ऐसा नहीं है।
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जगन्नाथ भगवान को मंदिर के पुजारियों द्वारा सात्विक आहार ही भोग में लगाया जाता है। हां, कथा के अनुसार ये हुआ था कि भगवान जगन्नाथ ने मछुआरिन को यह वरदान दिया था कि साल में एक बार वह स्वयं मछुवारा समाज में दर्शन देने किसी न किसी रूप में आएंगे।
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